हम दोहा के नियमों को अच्छी तरह से देख-समझ चुके हैं जोकि अर्द्धसममात्रिक छन्द है. इसके विषम चरण में 13 मात्राएँ होती हैं जबकि इसके सम चरण की कुल मात्रा 11 होती है.
हम इस छन्द के विषम चरण पर ध्यान रखें. जिसके कुल शब्दों की मात्रा 13 होती है.
दोहा के विषम चरण को यदि दो पदों के हिसाब से चार बार लिखा जाय, यानि दो पदों में चार चरण हों और सभी तेरह मात्रिक हों तो वह छन्द उल्लाला कहलाता है.
लेकिन, पद्य साहित्य में उल्लाला छन्द के दो प्रकार मान्य हैं.
एक, जिसके चारों चरण सममात्रिक होते हैं. यानि उनके प्रति चरण दोहा छन्द के विन्यास की तरह 13 मात्राएँ होती हैं.
दो, जिसके प्रत्येक पद की यति 15-13 पर होती है. यानि छन्द का यह दूसरा प्रकार अर्द्धसम मात्रिक छन्द होता है. दूसरे प्रकार के उल्लाला छन्द में तुकान्तता सम पदों में बनती है.
हम पहले प्रकार पर ही ध्यान केन्द्रित करेंगे. क्यों कि दूसरे प्रकार में विषम चरण के प्रारम्भ में एक गुरु या दो लघु का शब्द जोड़ दिया जाता है ताकि विषम चरण पन्द्रह मात्राओं का हो जाय. बाकी सारा विधान तेरह मात्रिक वाले चरणों की तरह ही होता है.
अब पहले या मुख्य प्रकार के छन्द के मुख्य विन्दु निम्नांकित हैं -
क) दोहा छन्द के विषम चरण की तरह ही चारों चरणों का विन्यास होता है.
ख) अर्थात, सभी चरणों में 4-4-3-2 या 3-3-2-3-2 का विन्यास मान्य है. अधिक विस्तार के लिए दोहा छन्द में देखें.
ग) चरणान्त रगण (ऽ।ऽ या 212 या गुरु-लघु-गुरु) या नगण (।।। या 111 या लघु-लघु-लघु) से होना अति शुद्ध है.
घ) तुकान्तता विषम-सम चरण में मान्य है तो सम-सम चरण की तुकान्तता भी मान्य है.
उदाहरणार्थ,
सम चरण तुकान्तता -
प्रेम नेम हित चतुरई, जे न बिचारत नेकु मन
सपनेहुँ न विलम्बियै, छिन तिग हिग आनन्द घन (घनान्द)
विषम-सम चरण तुकान्तता -
उर्ध्व ब्रह्म के गर्भ में, संभव के संदर्भ में
वृत्ति चराचर व्यापती, काल-क्षितिज तक मापती (’इकड़ियाँ जेबी से’ से)
दूसरे प्रकार के उल्लाला छन्द का उदाहरण जिसके पद 15-13 की यति पर होती है. यानि विषम चरण में 15 मात्राएँ तथा सम चरण में 13 मात्राएँ होती हैं.
इस प्रकार के उल्लाला में तुकान्तता सम चरणों पर ही स्वीकार्य है -
कै शोणित कलित कपाल यह, किल कपालिका काल को
यह ललित लाल केधौं लसत, दिग्भामिनि के भाल को
अति अमल ज्योति नारायणी, कहि केशव बुड़ि जाहि बरु
भृगुनन्द सँभारु कुठार मैं, कियौ सराअन युक्त शरु (केशवदास)
उपरोक्त पदों को ध्यान से देखा जाय तो प्रत्येक विषम चरण के प्रारम्भ में एक गुरु या दो लघु हैं, जिनके बाद का शाब्दिक विन्यास तेरह मात्राओं की तरह ही है. उसी अनुरूप पाठ का प्रवाह भी है.
इसकारण, विषम चरण में पहले दो मात्राओं के बाद स्वयं एक यति बन जाती है और आगे का पाठ दोहा के विषम चरण की तरह ही होता चला जाता है.
उल्लाला छन्द का एक और नाम चंद्रमणि भी है.
एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि उल्लाला छन्द का व्यवहार छप्पय छन्द में ही अक्सर होता है. विस्तृत जानकारी हम छप्पय छन्द के क्रम में देखेंगे.
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तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है
उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।
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