For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लेखमाला: जगवाणी हिंदी का वैशिऽष्टय् छंद और छंद विधान: 1 --आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल

आत्मीय!

वन्दे मातरम.

इस विषय पर कुछ सामग्री पहले प्रेषित की थी. उसे संशोधित-परिवर्तित कर पुनः भेज रहा हूँ. कृपया पूर्व सामग्री को निरस्त कर उपयुक्त प्रतीत होने पर इसे प्रयोग करें.


लेखमाला:

              जगवाणी हिंदी का वैशिऽष्टय् छंद और छंद विधान: 1
                                                 आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

          वेद को सकल विद्याओं का मूल माना गया है । वेद के 6 अंगों 1. छंद, 2. कल्प, 3. ज्योतिऽष , 4. निरुक्त, 5. शिक्षा तथा 6. व्याकरण में छंद का प्रमुख स्थान है ।

                    

छंदः पादौतु वेदस्य हस्तौ कल्पोऽथ कथ्यते ।                                                         

ज्योतिऽषामयनं नेत्रं निरुक्तं श्रोत्र मुच्यते ।।

शिक्षा  घ्राणंतुवेदस्य  मुखंव्याकरणंस्मृतं                                                            

तस्मात्  सांगमधीत्यैव  ब्रम्हलोके  महीतले ।।


           वेद का चरण होने के कारण छंद पूज्य है । छंदशास्त्र का ज्ञान न होने पर मनुष्य पंगुवत है, वह न तो काव्य की यथार्थ गति समझ सकता है न ही शुद्ध रीति से काव्य रच सकता है । छंदशास्त्र को आदिप्रणेता महर्षि पिंगल के नाम पर पिंगल तथा पर्यायवाची ब्दों सर्प, फणि, अहि, भुजंग आदि नामों से संबोधित कर शेषावतार माना जाता है  । जटिल से जटिल विषय छंदबद्ध होने पर सहजता से कंठस्थ ही हीं हो जाता, आनंद भी देता है ।

                                      नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा ।

                                     कवित्वं दुर्लभं तत्र, शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा ।।

           अर्थात संसार में नर तन दुर्लभ है, विद्या अधिक दुर्लभ, काव्य रचना और अधिक दुर्लभ तथा सुकाव्य-सृजन की शक्ति दुर्लभतम है । काव्य के पठन-पाठन अथवा श्रवण से अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है । 

                                  काव्यशास्त्रेण विनोदेन कालो गच्छति धीमताम ।

                                        व्यसने नच मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ।।

           विश्व की किसी भी भाषा का सौंदर्य उसकी कविता में निहित है । प्राचीन काल में शिक्षा का प्रचार-प्रसार कम होने के कारण काव्य-सृजन केवल कवित्व क्ति संपन्न प्रतिभावान महानुभावों द्वारा किया जाता था जो श्रवण परंपरा से छंद की लय व प्रवाह आत्मसात कर अपने सृजन में यथावत अभिव्यक्त कर पाते थे । वर्तमान काल में शिक्षा का सर्वव्यापी प्रचार-प्रसार होने तथा भाषा या काव्यशास्त्र से आजीविका के साधन न मिलने के कारण सामान्यतः अध्ययन काल में इनकी उपेक्षा की जाती है तथा कालांतर में काव्याकर्षण होने पर भाषा का व्याकरण- पिंगल समझे बिना छंदहीन तथा दोषपूर्ण काव्य रचनाकर आत्मतुष्टि पाल ली जाती है जिसका दुष्परिणाम आमजनों में कविता के प्रति अरुचि के रूप में दृष्टव्य है । काव्य के तत्वों रस, छंद, अलंकार आदि से संबंधित सामग्री व उदाहरण पूर्व प्रचलित भाषा / बोलियों में होने के कारण उनका आय हिंदी के  वर्तमान रूप से परिचित छात्र पूरी तरह समझ नहीं पाते । प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा के चलन ने हिंदी की समझ और घटायी है । 


छंद विषयक चर्चा के पूर्व हिंदी भाषा की आरंभिक जानकारी दोहरा लेना लाभप्रद होगा ।      

भाषा :
            अनुभूतियों से उत्पन्न भावों को अभिव्यक्त करने के लिए भंगिमाओं या ध्वनियों की आवश्यकता होती है भंगिमाओं से नृत्य, नाट्य, चित्र आदि कलाओं का विकास हुआ ध्वनि से भाषा, वादन एवं गायन कलाओं का जन्म हुआ

                                      चित्र गुप्त ज्यों चित्त का, बसा आप में आप
                                       भाषा सलिला निरंतर करे अनाहद जाप।।


            भाषा वह साधन है जिससे हम अपने भाव एवं विचार अन्य लोगों तक पहुँचा पाते हैं अथवा अन्यों के भाव और विचार गृहण कर पाते हैं यह आदान-प्रदान वाणी के माध्यम से (मौखिक) या लेखनी के द्वारा (लिखित) होता है

                                        निर्विकार अक्षर रहे मौन, शांत निः शब्द
                                      भाषा वाहक भाव की, माध्यम हैं लिपि-शब्द
 


व्याकरण ( ग्रामर ) -

            व्याकरण ( वि + आ + करण ) का अर्थ भली-भाँति समझना है. व्याकरण भाषा के शुद्ध एवं परिष्कृत रूप सम्बन्धी नियमोपनियमों का संग्रह है भाषा के समुचित ज्ञान हेतु वर्ण विचार (ओर्थोग्राफी) अर्थात वर्णों (अक्षरों) के आकार, उच्चारण, भेद, संधि आदि, शब्द विचार (एटीमोलोजी) याने शब्दों के भेद, उनकी व्युत्पत्ति एवं रूप परिवर्तन आदि तथा वाक्य विचार (सिंटेक्स) अर्थात वाक्यों के भेद, रचना और वाक्य विश्लेष्ण को जानना आवश्यक है

वर्ण शब्द संग वाक्य का, कविगण करें विचार
तभी पा सकें वे 'सलिल', भाषा पर अधिकार


वर्ण / अक्षर :

            वर्ण के दो प्रकार स्वर (वोवेल्स) तथा व्यंजन (कोंसोनेंट्स) हैं

अजर अमर अक्षर अजित, ध्वनि कहलाती वर्ण
स्वर-व्यंजन दो रूप बिन, हो अभिव्यक्ति विवर्ण


स्वर ( वोवेल्स ) :

             स्वर वह मूल ध्वनि है जिसे विभाजित नहीं किया जा सकता. वह अक्षर है स्वर के उच्चारण में अन्य वर्णों की सहायता की आवश्यकता नहीं होती यथा - अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ:. स्वर के दो प्रकार १. हृस्व ( अ, इ, उ, ऋ ) तथा दीर्घ ( आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: ) हैं

अ, इ, उ, ऋ हृस्व स्वर, शेष दीर्घ पहचान
मिलें हृस्व से हृस्व स्वर, उन्हें दीर्घ ले मान


व्यंजन (कांसोनेंट्स) :

           व्यंजन वे वर्ण हैं जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते व्यंजनों के चार प्रकार १. स्पर्श (क वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ्), (च वर्ग - च, छ, ज, झ, ञ्.), (ट वर्ग - ट, ठ, ड, ढ, ण्), (त वर्ग त, थ, द, ढ, न), (प वर्ग - प,फ, ब, भ, म) २. अन्तस्थ (य वर्ग - य, र, ल, व्, श), ३. (उष्म - श, ष, स ह) तथा ४. (संयुक्त - क्ष, त्र, ज्ञ) हैं अनुस्वार (अं) तथा विसर्ग (अ:) भी व्यंजन हैं

भाषा में रस घोलते, व्यंजन भरते भाव
कर अपूर्ण को पूर्ण वे मेटें सकल अभाव


शब्द :

                                            अक्षर मिलकर शब्द बन, हमें बताते अर्थ

मिलकर रहें न जो 'सलिल', उनका जीवन व्यर्थ


            अक्षरों का ऐसा समूह जिससे किसी अर्थ की प्रतीति हो शब्द कहलाता है यह भाषा का मूल तत्व है शब्द के निम्न प्रकार हैं-

१. अर्थ की दृष्टि से :

सार्थक शब्द : जिनसे अर्थ ज्ञात हो यथा - कलम, कविता आदि एवं

निरर्थक शब्द : जिनसे किसी अर्थ की प्रतीति न हो यथा - अगड़म बगड़म आदि

२. व्युत्पत्ति (बनावट) की दृष्टि से :

रूढ़ शब्द : स्वतंत्र शब्द - यथा भारत, युवा, आया आदि

यौगिक शब्द : दो या अधिक शब्दों से मिलकर बने शब्द जो पृथक किए जा सकें यथा - गणवेश, छात्रावास, घोडागाडी आदि एवं

योगरूढ़ शब्द : जो दो शब्दों के मेल से बनते हैं पर किसी अन्य अर्थ का बोध कराते हैं यथा - दश + आनन = दशानन = रावण, चार + पाई = चारपाई = खाट आदि

३. स्रोत या व्युत्पत्ति के आधार पर:

तत्सम शब्द : मूलतः संस्कृत शब्द जो हिन्दी में यथावत प्रयोग होते हैं यथा - अम्बुज, उत्कर्ष आदि

तद्भव शब्द : संस्कृत से उद्भूत शब्द जिनका परिवर्तित रूप हिन्दी में प्रयोग किया जाता है यथा - निद्रा से नींद, छिद्र से छेद, अर्ध से आधा, अग्नि से आग आदि

अनुकरण वाचक शब्द : विविध ध्वनियों के आधार पर कल्पित शब्द यथा - घोड़े की आवाज से हिनहिनाना, बिल्ली के बोलने से म्याऊँ आदि

देशज शब्द : आदिवासियों अथवा प्रांतीय भाषाओँ से लिये गये शब्द जिनकी उत्पत्ति का स्रोत अज्ञात है यथा - खिड़की, कुल्हड़ आदि

विदेशी शब्द : संस्कृत के अलावा अन्य भाषाओँ से लिये गये शब्द जो हिन्दी में जैसे के तैसे प्रयोग होते हैं यथा - अरबी से - कानून, फकीर, औरत आदि, अंग्रेजी से - स्टेशन, स्कूल, ऑफिस आदि

४. प्रयोग के आधार पर:

विकारी शब्द : वे शब्द जिनमें संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया या विशेषण के रूप में प्रयोग किये जाने पर लिंग, वचन एवं कारक के आधार पर परिवर्तन होता है यथा - लड़का, लड़के, लड़कों, लड़कपन, अच्छा, अच्छे, अच्छी, अच्छाइयाँ  आदि

अविकारीशब्द : वे शब्द जिनके रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता इन्हें अव्यय कहते हैं यथा - यहाँ, कहाँ, जब, तब, अवश्य, कम, बहुत, सामने, किंतु, आहा, अरे आदि   इनके प्रकार क्रिया विशेषण, सम्बन्ध सूचक, समुच्चय बोधक तथा विस्मयादि बोधक हैं

नदियों से जल ग्रहणकर, सागर करे किलोल
विविध स्रोत से शब्द ले, भाषा हो अनमोल।।


कविता के तत्वः

कविता के 2 तत्व बाह्य तत्व (लय, छंद योजना, ब्द योजना, अलंकार, तुक आदि) तथा आंतरिक तत्व (भाव, रस, अनुभूति आदि) हैं ।

कविता के बाह्य तत्वः

लयः

           भाषा के उतार-चढ़ाव, विराम आदि के योग से लय बनती है । कविता में लय के लिये गद्य से कुछ हटकर ब्दों का क्रम संयोजन इस प्रकार करना होता है कि वांछित अर्थ की अभिव्यक्ति भी हो सके । 


छंदः

           मात्रा, वर्ण, विराम, गति, लय तथा तुक (समान उच्चारण) आदि के व्यवस्थित सामंजस्य को छंद कहते हैं । छंदबद्ध कविता सहजता से स्मरणीय, अधिक प्रभावशाली हृदयग्राही होती है । छंद के 2 मुख्य प्रकार मात्रिक (जिनमें मात्राओं की संख्या निश्चित रहती है)  तथा वर्णिक (जिनमें वर्णों की संख्या निश्चित तथा गणों के आधार पर होती है) हैं । छंद के असंख्य उपप्रकार हैं जो ध्वनि विज्ञान तथा गणितीय समुच्चय-अव्यय पर आधृत हैं ।

ब्दयोजनाः 

           कविता में ब्दों का चयन विषय के अनुरूप, सजगता, कुलता से इस प्रकार किया जाता है कि भाव, प्रवाह तथा गेयता से कविता के सौंदर्य में वृद्धि हो ।

तुकः

          काव्य पंक्तियों में अंतिम वर्ण तथा ध्वनि में समानता को तुक कहते हैं । अतुकांत कविता में यह तत्व नहीं होता । मुक्तिका या ग़ज़ल में तुक के 2 प्रकार तुकांत व  पदांत होते हैं जिन्हें उर्दू में क़ाफि़या व रदीफ़ कहते हैं । 

अलंकारः

          अलंकार से कविता की सौंदर्य-वृद्धि होती है और वह अधिक चित्ताकर्षक प्रतीत होती है । अलंकार की न्यूनता या अधिकता दोनों काव्य दोष माने गये हैं । अलंकार के 2 मुख्य प्रकार ब्दालंकार व अर्थालंकार तथा अनेक भेद-उपभेद हैं ।

कविता के आंतरिक तत्वः


रस:

          कविता को पढ़ने या सुनने से जो अनुभूति (आनंद, दुःख, हास्य, शांति आदि) होती है उसे रस कहते हैं । रस को कविता की आत्मा (रसात्मकं वाक्यं काव्यं), ब्रम्हानंद सहोदर आदि कहा गया है । यदि कविता पाठक को उस रस की अनुभूति करा सके जो कवि को कविता करते समय हुई थी तो वह सफल कविता कही जाती है । रस के 9 प्रकार श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, भयानक, वीर, वीभत्स, शांत तथा अद्भुत हैं । कुछ विद्वान वात्सल्य को दसवां रस मानते हैं ।

अनुभूतिः

           गद्य की अपेक्षा पद्य अधिक हृद्स्पर्शी होता है चूंकि कविता में अनुभूति की तीव्रता अधिक होती है इसलिए कहा गया है कि गद्य मस्तिष्क को शांति देता है कविता हृदय को ।

भावः

           रस की अनुभूति करानेवाले कारक को भाव कहते हैं । हर रस के अलग-अलग स्थायी भाव इस प्रकार हैं । श्रृंगार-रति, हास्य-हास्य, करुण-शोक, रौद्र-क्रोध, भयानक-भय, वीर-उत्साह, वीभत्स-जुगुप्सा/घृणा, शांत-निर्वेद/वैराग्य, अद्भुत-विस्मय तथा वात्सल्य-ममता ।

           इन प्रसंगों पर पाठकों से जानकारियाँ और जिज्ञासाएँ आमंत्रित हैं। इस आधारभूत प्राथमिक जानकारी के पश्चात् आगामी सत्र में किस प्रसंग पर हो? सुझाइए।

                                                              ******************

Views: 3329

Replies to This Discussion

जगवाणी हिंदी का वैशिऽष्टय् छंद और छंद विधान: 1 --आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल

बहुत सुंदर  वयाख्या  की गयी है . आजकल अच्छे-अच्छे स्कूलों में भी शुद्ध हिंदी पढ़ाने वाले नहीं है. 
मैं इस लेख माला को अपने अख़बार "थार एक्सप्रेस " के माध्यम से पाठकों तक पहुंचना चाहता  हूँ 
आप स्वीकृति दें तो प्रकाशित करूँगा. तथा निवेदन है कि आप लेख माला बराबर भेजते रहें. 
धन्यवाद
लूण करण छाजेड
सम्पादक 
थार एक्सप्रेस  (पाक्षिक )
lkchhajer@yahoo.co.in


 

bhut hi aadr v smman se jigyasa vsh nivedn kr rha hoon ki tuk shbd kya chnd vidhan ke anrtgt hai ya is ke sthan pr antyaanupras hona chahiye tuk mere vichar se aagt shbd hai jo chnd vidhan me nhi hona chahiye shyd is ke sthan pr antyanupras hi tuk ka pryay yha uplbdh hai ise anytha n len matr jigyasa vsh hi aap ke samne upsthit hoon 

 

आदरणीय सलिलजी,

आपके श्रमसाध्य और परोपकारी प्रयोजन से नवोदित क साथ-साथ स्थापित रचनाधर्मियों को भी अमुल्य लाभ होगा. लेखमाला का प्रारम्भ आपने अक्षर वेद से प्रारम्भ कर हमारा शास्त्र के मूल से ही परिचय कराया है.

 

आपने सही कहा है कि जटिल से जटिल विषय छंदबद्ध होने पर सहजता से कंठस्थ ही हीं हो जाता, आनंद भी देता है ।

कहना समीचीन होगा कि इसीकारण से प्राचीनकाल के गणितज्ञ, वैज्ञानिक या साधक-प्रणेता अपने वैशिष्ट्य को छंदबद्ध ही करते थे या, सूत्रबद्ध करते थे. चाहे आर्यभट्ट हों या बुधायन या बाणभट्ट या सुश्रुत या अन्य.गणित के कठिनतर ज्ञान और कैलकुलेशन के क्रम में शून्य की महत्ता को  बखानते इस श्लोक का विस्मरण कैसे हो सकता है -

पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते  ॥

योग विधा के समु्च्चय पर हुए शोध को स्वयं मुनिवर पतञ्जलि ने भी वर्ण-गणना और सूत्रों के माध्यम से ही प्रस्तुत किया है.

 

लेखमाला की भूमिका में उठायी गयी आपकी बात से मैं अक्षरशः सहमत हूँ, कि, वर्तमान काल में शिक्षा का सर्वव्यापी प्रचार-प्रसार होने तथा भाषा या काव्यशास्त्र से आजीविका के साधन न मिलने के कारण सामान्यतः अध्ययन काल में इनकी उपेक्षा की जाती है तथा कालांतर में काव्याकर्षण होने पर भाषा का व्याकरण- पिंगल समझे बिना छंदहीन तथा दोषपूर्ण काव्य रचनाकर आत्मतुष्टि पाल ली जाती है जिसका दुष्परिणाम आमजनों में कविता के प्रति अरुचि के रूप में दृष्टव्य है ।

 

विश्वास है, कविता को मात्र रंजन, तुकबन्दी, समयबिताऊ या मात्र लोकलुभावनी प्रक्रिया समझने वाले ’विद्वत-जन’ आपके गंभीर चिंतन और सहज प्रस्तुतिकण से न केवल लाभान्वित होंगे अपितु छंद और कविता की शास्त्रीयता के प्रति गम्भीर भी होंगे.

 

लेखमाला की अन्यान्य एवं आगामी कड़ियों के प्रति उत्सुकता बनी रहेगी.

 

सादर -

सौरभ

आदरणीय आचार्य जी प्रणाम,
बहुत सारी जानकारियां आपसे हासिल हुई हमें|
एक बात पर संशय की स्थिति बनी हुई है, कृपया मार्ग दर्शन करें|

आपने अं एवं अ: को स्वर एवं व्यंजन दोनों श्रेणियों में रखा है| किसे उचित समझे|

आदरणीय ,

एक प्रश्न है

 

"मात्रा, वर्ण, विराम, गति, लय तथा तुक (समान उच्चारण) आदि के व्यवस्थित सामंजस्य को छंद कहते हैं"


यदि कुछ पंक्तियों में मात्रा, वर्ण, विराम, गति, लय का सामंजस्य हो किन्तु वो अतुकांत हो तो वो मुक्तक कहलाएगा ? और क्या आवश्यक है कि मुक्तक में मात्रा, वर्ण, विराम, गति, लय का सामंजस्य हो ? और यदि न हो तो सिर्फ भाव पक्ष की  प्रधानता वाली रचनाए क्या कही जाएंगी ?

bde smmna ke sath nivedn hai ki tuk yhan pr snskrit ki prmpra me vrnit aap ke aalekh me yh urdu ka shbd prithk hona chahiye is ke sthan pr antyanupras smbhvt: uchit hoga 

आदरणीय सलिलजी,

अपनी अपनी सब कहें, अपनी अपनी सोच

एक दूजे की न सुनते, लड़ा रहे हैं चोच

 

इसमें कमी बतायें!

आदरणीय आचार्य जी  ज्ञान वर्धक प्रस्तुति के लिए बहुत आभार ।

हिंदी भाषा को इतनी सरल भाषा शैली में समझाने हेतु ह्रदय से आभार आदरणीय सर |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service