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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ पचीसवाँ आयोजन है.   

 

इस बार का छंद है - भुजंगप्रयात छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

18 सितम्बर 2021 दिन शनिवार से 

19 सितम्बर 2021 दिन रविवार तक

हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

चित्र अंतर्जाल से

भुजंगप्रयात छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक ...

जैसा कि विदित है, कईएक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो

18 सितम्बर 2021 दिन शनिवार से 19 सितम्बर 2021 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

जी, बढ़ा ही है, ।टंकण त्रुटि पर ध्यान ही नहीं गया..


कि स्वाधीनता के कई वर्ष बीते।
किये खूब  वादे  बड़े लोग जीते।।
नहीं  सेतु  कोई  उन्होंने  बनाया।
सदा कागजों में भले ही दिखाया।।// वाह   यही मर्म है इस चित्र का। हार्दिक बधाई आदरणीय भाई लक्ष्मण जी
*

आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन.। छन्दों पर उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।

जी, अवश्य 

सवेरे सवेरे कहाँ जा रही है
बुलाया किसी ने वहाँ जा रही है

सखी है न कोई सहेली खड़ी है
कड़ी साधना है, पहेली बड़ी है

निजी काम कोई निभाने चली है
अकेली किसी को बताने चली है
पढ़े या लिखे वो सही काम होगा
मिटेगा अँधेरा बड़ा नाम होगा

सुनी जन्म से ही कहानी पुरानी
कहे क्या किसे वो बनेगी सेनानी
रहे दूर सब ही बढ़ी है अकेली
कली ये खिलेगी बनेगी नवेली

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी

जनाब दयाराम मेठानी जी आदाब, प्रदत्त चित्र पर सुंदर छंद रचे हैं, बधाई स्वीकार करें ।

'कहे क्या किसे वो बनेगी सेनानी' 

इस पंक्ति में 'सेनानी' 222 नियम विरुद्ध है, देखियेगा ।

'रहे दूर सब ही बढ़ी है अकेली'

इस पंक्ति में 'र सब ही' 1112 नियम विरुद्ध है, देखियेगा ।

आदरणीय समर कबीर जी, समीक्षा एवं सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार।

आदरणीय दयाराम मेठानी जी नमस्कार। 

प्रदत्त विषय पर अनुकूल छंद रचना के लिए बहुत बहुत बधाई। 

"रहे दूर सब ही बढ़ी है अकेली" में 'दूर सब ही' छंद से शायद न्याय नहीं कर पा रहा है। 

विद्वज्जनों की राय की अपेक्षा है। 

सादर।

आदरणाीय आशीष यादव जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

आदरणीय दयारामजी, आपके प्रयास ने पटल को संतुष्ट किया है. यह वास्तव में श्लाघनीय है. 

हार्दिक बधाइयाँ .

रहे दूर सब ही .. को सहज ही रहे दूर सारे किया जा सकता है. 

अलबत्ता, सेनानी  जैसे शब्द का प्रयोग इस छंद के साँचे में उचित न होगा. 

अत: उक्त पंक्ति को ही संशोधित किया जाना श्रेयस्कर है. 

ऐसे में इसे यों किया जा सकता है -

सुनी जन्म से ही कहानी पुरानी 

सदा किंतु सोचे उसे क्या सुनानी 

उपर्युक्त संशोधन कुछ सुझाव मात्र हैं. आप इनसे इतर भी बहुत बढिया सोच सकते हैं. 

शुभ-शुभ 

आदरणीय सौरभ पांडे जी, समीक्षा व सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार। आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला है। सादर।

 आदरणीय दयाराम मेठानी जी सादर प्रणाम। बहुत ख़ूब आदरणीय उस्ताद मुहतरम जी की बात पर कीजिए। सुंदर रचना की बधाई स्वीकार कीजिए।

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