For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव’ अंक 145

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ पैंतालिसवाँ आयोजन है.   

 

इस बार के आयोजन के लिए दो छंद लिये गये हैं - दोहा छंद या / और कुकुभ छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

20 मई 2023 दिन शनिवार से 21 मई 2023 दिन रविवार तक

हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

दोहा छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें 

कुकुभ छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

20 मई 2023 दिन शनिवार से 21 मई 2023 दिन रविवार तक रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com  परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम 

Views: 1807

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागतम 

मैं बाहर था गया शहर से, अभी जगा है दर मेरा 

देर हुई है आने में पर, जोर न था इस पर मेरा 

सच है देर हुई मुझसे है, मुझे क्षमा तुम कर देना 

आयोजन प्रारम्भ हुआ है, रचनाएँ मन भर देना 

शुभ-शुभ

सादर नमन।

गीत (कुकुभ छंद)

जग मरुथल में अक्सर पाया,
पथ अवरुद्ध सरीखा ही।


मीलों दूर प्रमोदी सोता,
कदम कदम बस तृष्णा है।
‘इह’ की पीड़ा मौन सहो तो,
‘पर’ में निश्चित कृष्णा है।
दुख की मृगतृष्णा विस्तारित,
सुख तो क्रुद्ध सरीखा ही।

सहज जीविका सा कोई प्रण,
कण-कण में है जतलाया।
रण दौड़ाकर करभ भरम के,
स्वप्न सुखों का दिखलाया।
अपने हिस्से में फिर आया,
जीवन युद्ध सरीखा ही।

जिसे सहारे की थी आशा,
उसे थमाया यह नारा-
‘अपने दीपक आप बने जो,
पाते उन्नति की धारा।’
अब तक दीपक ढूंढ रहा है
कोई बुद्ध सरीखा ही।

लोग नहीं रहते हैं घर में,
रहता बाज़ार घरों में।
पथिक भाग लो जितना भी तुम,
बस बिकना तुम्हें दरों में।
लाभ गणित में रक्त सना धन,
उनको शुद्ध सरीखा ही।

(मौलिक व अप्रकाशित)

आयोजन का फ़ीता काटने हेतु बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। एक बेहतरीन गीत की प्रस्तुति की है आपने। बधाई स्वीकारें। 

 

आदरणीया कल्पना जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।

गहरे अर्थ को समेटे हुए गीत आदरणीय बहुत बहुत बधाई! सादर 

आदरणीया सीमा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।

आदरणीय मिथिलेश भाई, प्रदत्त चित्र पर आपकी प्रस्तुत रचना का किन शब्दों में बखान करूँ, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।

इस चित्र को विशिष्ट आयाम देकर आपने इस कुशलता से, इतनी सुगढ़ता से विस्तृत किया है, वह बार-बार चकित कर रहा है। चिंतन, नियोजन एवं प्रस्तुतीकरण का सुन्दर सामंजस्य किसी प्रस्तुति को कैसा उन्नत उद्गार दे सकता है, इसे आपकी प्रस्तुत रचना को देख कर सहज ही समझा जा सकता है। गीत में वेदांत/अध्यात्म के कई स्तरों से निपजे भावों का शाब्दिक होना गीत के हेतु को चामत्कारिक रूप से समृद्ध कर रहा है। 

बारम्बार बधाई स्वीकार करें। 

फिर भी, अपनी थोड़ी-बहुत समझ के अनुसार प्रस्तुति के शब्द-विन्यास पर अवश्य ही चर्चा करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ  

मीलों दूर प्रमोदी सोता,   [प्रमोदी को यदि प्रमादी कर दें, तो रचना की भाव-दशा के अनुरूप इसे वेदांत-सुलभ शब्द मिल जाय। 
कदम कदम बस तृष्णा है।  ....[कदम-कदम लेकर तृष्णा // शैल्पिक कारण है, इस पर आगे चर्चा करता हूँ 
‘इह’ की पीड़ा मौन सहो तो,    [ऐसे में सहो को सही किया जाय...
‘पर’ में निश्चित कृष्णा है।         [पर में पर निश्चित कृष्णा // पुन: वही, शैल्पिक कारण से
दुख की मृगतृष्णा विस्तारित,   [दुख की मृगतृष्णा मनमोहक
सुख तो क्रुद्ध सरीखा ही।   ...........  वाह-वाह ! 

सहज जीविका सा कोई प्रण,
कण-कण में है जतलाया।
रण दौड़ाकर करभ भरम के,
स्वप्न सुखों का दिखलाया।
अपने हिस्से में फिर आया,
जीवन युद्ध सरीखा ही।  ..... [अद्भुत ! अद्भुत !! 

जिसे सहारे की थी आशा,
उसे थमाया यह नारा-
‘अपने दीपक आप बने जो,
पाते उन्नति की धारा।’
अब तक दीपक ढूंढ रहा है
कोई बुद्ध सरीखा ही।        [निश्शब्द हूँ। वाह 

लोग नहीं रहते हैं घर में,
रहता बाज़ार घरों में।
पथिक भाग लो जितना भी तुम,
बस बिकना तुम्हें दरों में।
लाभ गणित में रक्त सना धन,
उनको शुद्ध सरीखा ही।      [इस बंद को तनिक और संप्रेषणीयता दी जाय ... 

अब मुखड़े के शिल्प पर - 

जग मरुथल में अक्सर पाया,
पथ अवरुद्ध सरीखा ही।  ....... आदरणीय, कुकुभ छंद में आबद्ध रचना का मुखड़ा ताटंक छंद में क्यों ? 

वस्तुतः इसीका इशारा मैं प्रथम बंद की पंक्तियों का संदर्भ लेकर कर रहा था। 

यह तो हुई मेरी समझ की बात। किंतु उच्चस्तरीय वैचारिकी को शाब्दिक करती इस रचना ने आयोजन के स्तर को निस्संदेह बहुगुणित कर दिया है। पुनः हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

शुभातिशुभ

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्र को शब्दों में जिस प्रकार ढाला है वह अद्भुत है। साथ ही प्रेरणादायी भी। बहुत बहुत बधाई।

रचना का भाई सौरभ जी द्वार विवेचन भी सुंदर हुआ है। सादर..

जनाब मिथिलेश जी आदाब, प्रदत्त चित्र पर कुकुभ छंद आधारित बहुत अच्छा गीत लिखा आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें I 

आदरणीय मिथिलेश भाईजी

महीनों बाद इस आयोजन में आपको पढ़ने का अवसर मिला। इस भावपूर्ण  गीत और आ. सौरभ भाईजी की ज्ञान वर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
20 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
21 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service