आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ चौसठवाँ आयोजन है।.
छंद का नाम - छंद मनहरण घनाक्षरी
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
22 फरवरी’ 25 दिन शनिवार से
23 फरवरी’ 25 दिन रविवार तक
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
मनहरण घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
22 फरवरी’ 25 दिन शनिवार से 23 फरवरी’ 25 दिन रविवार तक रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है
मनहरण घनाक्षरी छंद
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उसे ही कुंभ आना है, पुन्य जिसको पाना है, पहुँचे लाखों प्रयाग, मन में उल्लास है|
संगम के आस पास, देख भीड़ थे उदास, छोटी बड़ी नाव देख, जाग गई आस है||
जाना तो बीच धार है, खेवैया भी तैयार है, लहरों से जूझने का, आनंद उठाइए|
नावों में होड़ देखिए, चाहो तो दूर घूमिए, जी भर के डुबकियाँ, घाट में लगाइए||
सरस्वती लुप्त वहाँ, तीन का संगम जहाँ, गंगा और यमुना की, धार देख आइए|
नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो जाइए||
अभावों में जी लेते है, नागा मस्त रहते हैं, कहते हैं मन को ही, शिव में लगाइए|
नागा लौट जायेंगे, लौट के फिर आयेंगे, कुंभ है जहाँ कहीं भी, पुन्य वहाँ पाइए||
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मौलिक अप्रकाशित
मनहरण घनाक्षरी छंद
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उसे ही कुंभ आना है, पुन्य जिसको पाना है, पहुँचे लाखों प्रयाग, मन में उल्लास है|
संगम के आस पास, देख भीड़ थे उदास, छोटी बड़ी नाव देख, जाग गई आस है||
जाना तो बीच धार है, खेवैया भी तैयार है, लहरों से जूझने का, आनंद उठाइए|
नावों में होड़ देखिए, चाहो तो दूर घूमिए, जी भर के डुबकियाँ, घाट में लगाइए||
सरस्वती लुप्त वहाँ, तीन का संगम जहाँ, गंगा और यमुना की, धार देख आइए|
नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो जाइए||
अभावों में जी लेते है, नागा मस्त रहते हैं, कहते हैं मन को ही, शिव में लगाइए|
नागा लौट जायेंगे, लौट के फिर आयेंगे, कुंभ है जहाँ कहीं भी, पुन्य वहाँ पाइए||
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मौलिक अप्रकाशित
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