For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 28 की समस्त रचनाएँ

सुधिजनो !

दिनांक 21 जुलाई 2013 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 28 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है.

इस बार के छंदोत्सव में भी कहना न होगा दोहा और कुण्डलिया छंदों पर आधारित प्रविष्टियों की बहुतायत थी.

इसके बावज़ूद आयोजन में  16 रचनाकारों की दोहा छंद और कुण्डलिया छंद के अलावे

हरिगीतिका छंद
मनहरण घनाक्षरी छंद
तोमर छंद
उल्लाला छंद
रोला छंद
वीर या आल्हा छंद
मदिरा सवैया
दुर्मिल छंद
सार या ललित छंद
रूपमाला छंद
त्रिभंगी छंद

जैसे सनातनी छंदों में सुन्दर रचनाएँ आयीं, जिनसे छंदोत्सव समृद्ध और सफल हुआ.

पाठकों के उत्साह को इसी बात से समझा जा सकता है कि प्रस्तुत रचनाओं पर 750 प्रतिक्रियाओं के क्रम में प्रतिक्रिया स्वरूप आयी छंद-रचनायें भी उक्त छंद के विधान को संतुष्ट कर रही थी.

 

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

रचनाओं को संकलित और क्रमबद्ध करने का दुरुह कार्य ओबीओ प्रबन्धन की सदस्या डॉ. प्राची ने बावज़ूद अपनी समस्त व्यस्तता के सम्पन्न किया है. ओबीओ परिवार आपके दायित्व निर्वहन और कार्य समर्पण के प्रति आभारी है.

सादर

सौरभ पाण्डेय

संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव

****************************************************************

1.  श्री सौरभ पाण्डेय जी

छंद - हरिगीतिका 
संक्षिप्त विधान - हरिगीतिका छंद चार पदों का मात्रिक छंद है जिसमें दो-दो पदों की तुकांतता चलती है. प्रति पद कुल 28 मात्राएँ होती हैं तथा 16-12 की यति मान्य है. 
पदांत लघु गुरु से होता है. पदांत का रगण, यानि गुरु लघु गुरु (s।ऽ) में होना छंद को कर्णप्रिय बनाता है, किन्तु यह अनिवार्य नहीं है.
प्रत्येक पद की पाँचवीं, बारहवीं, उन्नीसवीं तथा छब्बीसवीं मात्रा अनिवार्य रूप से लघु होती है. 
पदों में प्रयुक्त किसी चौकल में जगण का होना निषिद्ध है. 
******************
ब्रह्मांड  होता लय-प्रलय  में,  तीन ही गुण  से सदा 
उन तीन गुण के  संतुलन  से  सृष्टि  शुभदा-सम्प्रदा 
सत-रज-तमस हैं  गुण प्रभावी,  शुभ-अशुभ संस्कार के 
कारण  सदा  से  हैं  यही  हर  चर-अचर व्यवहार के 

गर्वोक्ति  की  ले  ओट  पापाचार  पलता  जब कहीं 
सत्कार्य   या  दुष्कार्य  की  अवधारणा  मिटती वहीं  
फिर वृत्तियाँ  छिछली  लगें यदि कर्म खंडित-ग्रास हो 
या हर  फलाफल  हो अशुभ यदि वृत्तियों में ह्रास हो 

भौतिक  सुखों  के  मोह के आवेश  से  अब कार्य है 
दुर्धर्ष  तम  की  उग्र  लपटों में  घिरा  क्यों आर्य है  
व्यवहार  से  शोषक,  विचारों  से  प्रपीड़क,  क्रूर  है  
फिर-फिर  धरा की शक्ति  जीवन-संतुलन  से दूर  है 

धरती   अहंकारी  मनुज  की  उग्रता  से  पस्त  है 
फिर  से  हिरण्याक्षों  प्रताड़ित  यह  धरा  संत्रस्त है 
राजस-तमस के  बीज से  जब  पाप  तन-आकार ले 
वाराह  की   या  कूर्म  की  सद्भावना   अवतार  ले 

फिर  से  धरा  यह  रुग्ण-पीड़ित  दुर्दशा से व्यग्र है  
अब  हों मुखर संतान  जिनका  मन-प्रखर है, शुभ्र है 
इस  कामना  के  मूल  में   उद्दात्त  शुभ-उद्गार है 
वर्ना   रसातल  नाम  जिसका  वो  यही  संसार है  
**************************************************************************

2.  श्री अलबेला खत्री जी

(1) छन्द - घनाक्षरी

संक्षिप्त विधान - 31 वर्ण. 8, 8, 8, 7 पर यति

( कवित्त व मनहरण भी कहते हैं ) 


नन्हे नन्हे नौनिहाल, 
नन्ही सी हथेलियों से, 
विराट वसुन्धरा का वैभव बचायेंगे 

बड़े लोग बड़ी - बड़ी,  
बातें ही बनाते रहे, 
छोटे बच्चे बड़ा काम कर के दिखायेंगे 

काले गोरे हों या भूरे, 
सांवले सलोने सब, 
एक साथ एक रंग  में ही रंग जायेंगे 

हमने किया हैं पाप, 
वसुधा के शोषण का, 
प्रायश्चित आने वाले, बच्चे करवायेंगे  

(2) कुण्डलिया 
बेसुध वसुधा हो रही, सुध ले लो गोपाल 
तुमको आज  पुकारते, नन्हे नन्हे ग्वाल 
नन्हे नन्हे ग्वाल, बाल सब मिल कर आये 
सारे नटवरलाल,  बचाने ज़ोर लगाये 
अलबेला कर जोर, निवेदन करता बहुविध 
आओ माखनचोर, मही माता है  बेसुध  

***********************************************************

3. सुश्री सरिता भाटिया जी

(1) छंद -तोमर छंद

संक्षिप्त विधान - यह मात्रिक छन्द है जिसके प्रत्येक चरण में 12 मात्राएँ होती हैं | पहले और दूसरे चरण के अन्त में और तीसरे और चौथे चरण के अन्त में तुक होता है | इसके अंत में एक गुरु व एक लघु अनिवार्य होता है.

धरा कर रही गुहार ,सुन लो उसकी पुकार
सबही मिला लो हाथ, छोड़ो नहीं बस साथ

क्या काले क्या सफ़ेद ,धरा ना करती भेद
आसमां सबका ऐक, काम तू भी कर नेक

ईश्वर सबका ऐक, लिए है रूप अनेक
सबका एक भगवान ,फिर क्यों झगडे इन्सान

ना करना तुम कटाव ,धरा का करो बचाव
हरियाली करो हजूर, इसका क्या है कसूर 

(2) छंद - उल्लाला छंद

संक्षिप्त विधान -  दोहा के 4 विषम चरणों से उल्लाला छंद बनता है। यह 13-13 मात्राओं का सम मात्रिक छन्द है जिसके चरणान्त में यति है। सम चरणान्त में तुकांतता आवश्यक है। विषम चरण के अंत में ऐसा बंधन नहीं है। शेष नियम दोहा के समान हैं। अंत में 1 गुरु या 2 लघु का विधान है।  

........धरती माँ........

धात्री है आधार है ,तुझसे ही विस्तार है 
निष्ठा तू विश्वास तू, हम बच्चों की आस तू

लेती है जल मेघ से ,वायु चले जब वेग से 
तू सोने की खान है ,मेरा तू अभिमान है

मानव ने दोहन किया , चीड़ फाड़ तुझको दिया 
मिटटी का धोंधा बना , मिटटी में ही फिर सना

तू अन्नदा वसुंधरा , दामन लिए हरा भरा 
हो कोइ अनुष्ठान जब ,करते तेरा मान सब

धरा हमारी मात है , करे तु इससे घात है 
हाथ उठा इसको बचा ,नया अब इतिहास रचा

 

(3) छंद -रोला छंद

संक्षिप्त विधान - सम मात्रिक छंद, चार चरण, प्रति चरण 11-13 मात्राओं पर यति. विषम चरणांत गुरु लघु 21 या लघु  लघु लघु यानि 111 से. पदांत दो गुरु 22 या लघु लघु गुरु 112 या गुरु लघु लघु या 211 लघु लघु लघु लघु 1111 भी स्वीकार्य है

चलो उठो मनुज अब ,निद्रा अभी तुम त्यागो 
जाग जाएंगे सब ,स्वयं तो पहले जागो

नदिया पेड़ पहाड़ ,करें ना तेरी मेरी 
रखो इसे संभाल , सब हैं धरोहर तेरी

लगे तुम्हें क्यों डर , देख जो बदरा जागे
स्वयं बुलाया प्रलय , स्वयं ही इससे भागे

 शोर मचा चहुँ ओर , तुम भी हाथ बंटाओ 
बढ़ी ग्लोब वार्मिंग , धरती अपनी बचाओ

नन्हे नन्हे हाथ , धरा को जब थामेंगे

माँ का आंचल थाम , स्नेह से सब मांगेंगे

धरा है माँ समान, वैर करना ना इससे 
हुई अगर यह रुष्ट ,खैर मांगोगे किससे

*****************************************************

4.  श्री अशोक कुमार रक्ताले जी

(1) छंद - वीर छंद 

संक्षिप्त विधान - वीर छंद दो पदों के चार चरणों में रचा जाता है इसमें 16-15  मात्रा पर यति होती है.  कुल 31 मात्रा प्रति पद. छंद में विषम चरण का अंत गुरु, लघुलघु या लघु लघु गुरु या गुरु लघु लघु से तथा सम चरण का अंत गुरु लघु से होता है.

नीचे घूमे नील गगन के, गोल पिंड यह बड़ा विशाल |

नीर भरा है नीचे थल के, थल पर लेकिन पड़े अकाल |

इसकी जाने तीन परत को, सिमा निफे अरु संग सियाल |

आग लगी है अंतर्मन में, जलती भीतर धरा विशाल |  

काली छाया देख धरा पर, उठते मन में कई सवाल |

कई हाथ हैं थामे इसको, करता है पर कौन ख़याल |

दाता मानव जीवन की यह, खुद ही सहती मानव मार |

दूर दूर तक देखा हमने, कुदरत का होते संहार | 

देखो गोरे कई हाथ हैं, और कई हैं काले शार |

देते धक्का खुद ही इसको, और कहें कुदरत की मार |  

कुदरत ने ही हमें दिए खुद, नदी वृक्ष तालाब पहाड़ |

निजी स्वार्थ से खंडित धरती, मार रही है रोज दहाड़ |

वैभवशाली धरती झेले,  निशदिन मानव अत्याचार |

मुफ्त उगलती धरा सम्पदा, फिर भी होती लूटा मार |

प्राण बचालो खुद के इसके, नित्य करो तुम साज सँभाल |

बढे प्रदूषण को रोको सब, करो नहीं अब और सवाल |

(निफे सिमा और सियाल = निकल- फेरस, सिलिकन-मग्नेशियम, सिलिका और अलुमिनियम धरा की संरचना के बारे में जैसा याद है.किसी नाम में चुक हो गयी हो तो क्षमा करें.) 

(2) कुण्डलिया (दोहा + रोला )

आहत है तन नाग का, फन पर आया भार,

बोझ पाप का कम करे, धरती कितनी बार,

धरती कितनी बार, छली जाती है हमसे,

उठते लाखों हाथ, मगर सारे बे दम से.

नभ दूषित अरु श्याम, ढूंढता है नित राहत,

नभ-धरती सौगात, आज जनगण से आहत ||

*****************************************************************

5.  श्री केवल प्रसाद जी

(1) दोहा

धरती पूरी गोल है, पढें रोज भूगोल।
सारे विषयों कों जने, सृष्टि रचे अनमोल।।1

हरी भरी धरती सदा, नील गगन की छांव।
वृक्ष-लता-पानी घटा, धरे मनुज जहॅ पांव।।2

बच्चे सच्चे मन रमे, पढ़े लिखे चितलाय।
धरा सहेजे हाथ पर, दया-प्रेम सिखलाय।।3

धरा, अन्न-जल-वस्त्र से, निश-दिन वारे नेह।
पाप-शाप खुद भोग के, जीवन करे सनेह।।4

प्रकृति सदा ही साथ है, करती दुआ-सचेत।
धर्म-कर्म नित खोज से, सृष्टि न करे अचेत।।5

धरा भूधराकार बने, अति दोहन से त्राण।
प्रलय-भूकम्प-अग्नि से, हरे सभी के प्राण।।6

प्रकृति डावाडोल हुई, सकल मनुज का काज।
निश-दिन अन्तर्जाल से, प्रलय-अग्नि है राज।।7

*****************************************************

6.  श्री सत्यनारायण सिंह जी

(1)दोहा

*अवनी से आकाश तक, दूषण से ना त्राण।

धरा परत ओजोन में, बनता छिद्र प्रमाण।।

पर्यावरण विशुद्ध हो, धरा प्रदूषण मुक्त।

जीवन नव संकल्पना, उच्च भाव से युक्त।।

जो बल देते प्राण को, करें जीव साकार।

सुधा स्वरूपी नीर का, मान मनुज आभार।।

खनिज धरा की संपदा, इसका रखिये भान।

उपादेयता में छिपा, उपादेय का ज्ञान।।

काटे तुमने पेड़ जो, जंगल दिए उजाड़।

मानव तेरी भूल से, दुख का गिरा पहाड़।। 

*बिना रसायन के करें, खेती से उत्पाद।

स्वस्थ निरोगी तन लहे, धरा शुद्ध निष्पाद ।।

*सभी विनाशक वस्तु पर, तुरत लगे प्रतिबन्ध।

शस्य श्यामला हो धरा,  ऐसा करें प्रबन्ध।।

*संशोधित 

(2)   कुण्डलिया छंद

सबकी सुध जो ले रही, वसुधा उसको जान।

जीव चराचर बाल सम, वसुधा मात समान।।

वसुधा मात समान, सदा निज बाल निहारे।

स्नेह सुधा बरसाय, सभी बालक को तारे।।

धरा गोल यह सत्य, सरल पर माता मन की।

बालक जीव अनेक, मात इक वसुधा सबकी।।

 

तुलसी आँगन में जगे, द्वारे सोहे नीम।

तन मन को चंगा रखे, कहते वेद हकीम।।

कहते वेद हकीम, न काटो बरगद पीपल।

तन की हरते पीर, पथिक मन करते शीतल।।

सुखद सत्य अभियान, धरा सुन मनसे हुलसी।

धरती पेड़ लगाय, बचा जग आँगन तुलसी।।

        

थैला सूती हाँथ लो, बैग पॉलिथिन फेक।

सुन्दर पर्यावरण की, सही पहल यह नेक।।

सही पहल यह नेक, जोड़ पौधों से नाता।

पर उपकारी पेड़, सभी प्राणी को भाता।।

कहे सत्य कविराय, करो ना परिसर मैला।

बेच मिलावट माल, भरो ना अपना थैला।।

*******************************************************************

7.  श्री विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी

(1) रोला गीत
(यह गीत रोला छंद के विधानानुसार है। रोला छंद अर्द्धसममात्रिक छंद है। इसके प्रथम और तृतीय चरण में 11-11 मात्रायें और द्वितीय व चतुर्थ चरण में 13-13 मात्रायें होती हैं। अंत में दो गुरु उत्तम माना जाता है किन्तु अनिवार्य नहीं।)

सकल सम्पदा खान, विविध तत्वों की धरनी।
बनी सृष्टि का केंद्र, चतुर मानव की जननी ॥
जीवन की आधार, धरा है हमें बचाना।
धरा न होगी शेष, कहाँ फिर बने ठिकाना॥

स्वर्ण लोभ जब नैन, रसातल धरती जाती।
घोर प्रलय, संहार, आपदा नित ही लाती॥
हुए बावले लोग, निरर्थक क्या चिल्लाना।
सिखलाये विज्ञान, लोभवश क्या इठलाना?

हिरण्याक्ष का रूप, मनुज में अब है जागा।
जीवन होगा नष्ट, लोभ को यदि न त्यागा॥
छेंड़ें अब अभियान, करें हम नहीं बहाना।
है सबका कर्तव्य, कभी न इसे भुलाना॥

माँ का आँचल थाम, प्यार से सब कुछ माँगें।
ममता को कर तार, छीन कर कभी न भागें॥
दे देगी माँ श्राप, बाद में बस पछताना।
मद में कैसा काम, किया हमने बचकाना ॥

********************************************************************

8.श्री रविकर जी

(1)कुण्डलियाँ

राहु-केतु से त्रस्त *ग्लो, मानव से भू-ग्लोब ।

लगा जमाना लूट में, रोज जमाना रोब ।

रोज जमाना रोब, नाश कर रहा जयातुर ।

इने गिने कुछ लोग, बचाने को पर आतुर ।

रविकर लेता थाम, धरित्री इसी हेतु से ।

तू भी हाथ बढ़ाय, बचा ले राहु केतु से ॥

* चंद्रमा , कपूर

 

(2) मदिरा सवैया 

संक्षिप्त विधान - भगणX7+ गुरु

दूषित नीर जमीन हवा शिव सा विष मध्य गले भरती |

नीलक टीक लगावत मानव रोष तभी धरती धरती |

प्राण अनेकन जीवन के तब पुन्य धरा झट से हरती |

आज सँभाल रहे धरती मरती जनता फिर क्या करती ||

 

(3) कुण्डलियाँ

बने बीज से वृक्ष कुल, माटी विविध प्रकार ।

माटी पर डाले असर, खनिज-लवण जल-धार ।

खनिज-लवण जल-धार, मेघ यह जल बरसाता ।

मेघ उड़ा दे वायु, वायु का ऋतु से नाता ।

ऋतु पर सूर्य प्रभाव, बचा ले आज छीज से ।

मनुज कहाँ है अलग, धरा से विविध बीज से ॥

 

कन्दुक पर दो दल भिड़े, करते सतत प्रहार।

सौ मुख वाला कालिया , जमा सूर्यजा धार ।

जमा सूर्यजा धार, पड़े जो उसके पाले ।

फिर कर के अधिकार, लगा के रक्खे ताले ।

रविकर करे पुकार, परिस्थिति बेहद नाजुक ।

लोक-लाज हित कृष्ण, लोक ले लौकिक-कन्दुक ॥

********************************************************************

9. सुश्री राजेश कुमारी जी

(1)दुर्मिल सवैया = सगण X 8

दस हाथ जहां जुड़ते मन से ,ब्रह्माण्ड वहीँ झुकता बल से

विश्वास जहां रहता मन में ,हर काम वहीँ  सधता  हल  से

अवधान बिना अभिप्राय  बिना , कुछ जीत नहीं सकता छल से

सहयोग बिना सदभाव  बिना , खुद  नीर नहीं उठता तल से 

********************************************************************

10. श्री अरुण शर्मा अनंत जी

(1)दोहा छंद : दोहा चार चरणों से युक्त एक अर्धसम मात्रिक छंद है जिसके पहले व तीसरे चरण में १३, १३ मात्राएँ तथा दूसरे व चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं, दोहे के सम चरणों का अंत 'पताका' अर्थात गुरु लघु से होता है तथा इसके विषम चरणों के आदि में जगण अर्थात १२१ का प्रयोग वर्जित है ! अर्थात दोहे के विषम चरणों के अंत में सगण (सलगा ११२) , रगण (राजभा २१२) अथवा नगण(नसल १११) आने से दोहे में उत्तम गेयता बनी रहती है! सम चरणों के अंत में जगण अथवा तगण आना चाहिए अर्थात अंत में पताका (गुरु लघु) अनिवार्य है|

            

नील गगन में उड़ रहे, श्वेत सारंग साथ ।
भारी भरखम सी धरा, थामे नन्हें हाथ ।। 

चित्र दिखाता एकता, चित्र सिखाता प्रीत ।
संभव मिल हर कार्य हो, निश्चित होती जीत ।।

बुरे कार्य में लिप्त है, मान प्रतिष्ठा भूल ।
हीरे मोती ना मिले, मिले अंततः धूल ।।

अतिआवश्यक जान ले, पर्वत नदियाँ पेड़ ।
इनसे ही जीवन चले, इनको व्यर्थ न छेड़ ।।
 
चढ़के मानव देह पे, कलियुग करता नृत्य ।
देख दुखी भगवान हैं, अमानवीय कुकृत्य ।।
 
धरणी माँ की भांति है, ना कर मानव बैर ।
रुष्ट हुई जो जान ले, फिर नहिं तेरी खैर ।।

**************************************************************

11.  सुश्री गीतिका वेदिका जी

छंद - सारछंद

संक्षिप्त विधान - सोलह और बारह की मात्रा पर यति का विधान, पदांत गुरु से या गुरु गुरु से होता है.

अपनी धरा संवारें मिल कर, हम सन्तान धरा के |

क्या हमने अच्छा कर पाया, इस धरती पर आ के ||१||

अपनी धरा संवारें मिल कर, है कर्तव्य हमारा |

सुनियोजित कुछ् कदम उठायें, मात्र रहे न नारा ||२||

अपनी धरा संवारें मिल कर, चढ़े प्रगति की सीढ़ी |

सुख लेकर हम मरखप जाएँ, भुगते अगली पीढ़ी ||३||

अपनी धरा संवारें मिल कर, जैव विविधता न्यारी |

इसी चक्र से बने संतुलित, अद्भुत प्रकृति सारी ||४||

अपनी धरा संवारें मिल कर, चेतें अमृत जल को |

रेत नदी ही बन जाये तो, क्या रह जाये कल को ||५||

अपनी धरा संवारें मिल कर, विश्व ग्राम के दावे |

कब हमने वैश्विकता समझी, मापे महज़ दिखावे ||६||

अपनी धरा संवारें मिल कर, सब बहने और भैया |

या फिर चित्र शेष होंगे क्या, कागा क्या गौरैया ||७||    

***************************************************************

12.  श्री संजय मिश्रा हबीब जी

छंद - रूपमाला छंद

संक्षिप्त विधान - चार पदों का मात्रिक छंद. 14-10 पर यति. पदांत गुरु लघु (21) से.

पाँव के नीचे तरलता, नींव के पाषाण। 
गल रहे हैं मोम जैसे, बिद्ध पावक बाण॥
टूट गिरते पीत-पातों से महीधर अंश। 
सृष्टि खोकर रूप अपना, रह गई अपभ्रंश॥

था तना ऊपर घना अब, है कहाँ वह छत्र। 
रिक्त आँचल है धरा का, दीखता सर्वत्र॥ 
काटना संसाधनों की, बेल, है अभियान।
बन कुल्हाड़ी घूमता है, आज का इंसान॥

क्या न मेटा कुछ न छोड़ा, दंभ में हो मस्त।
अब नियति का तेज भी होने लगा है अस्त॥
क्रोध की अनगिन लकीरें, मुख लिए विकराल। 
भिन्न रूपों में उतरता, आ रहा है काल॥

जिंदगी की वाटिका निज हाथ करके नष्ट। 
अग्र पीढ़ी के लिए बस बो रहा तू कष्ट॥
पूर्व इससे देव अपना धैर्य बैठें छोड़। 
हे मनुज! पर्यावरण सँग नेह नाता जोड़॥

काटना ही गर जरुरी , काट ले वह डोर। 
नाश को जो खींचता है, आप अपनी ओर॥ 
सृष्टि की थाती बचाना, जब बनेगा गर्व। 
तब मनाएगी धरा नव उन्नति का पर्व॥

*******************************************************

13.श्री अरुण कुमार निगम जी  

दोहा छंद- दोहा में चार चरण होते हैं. विषम चरणों में 13 मात्रायें तथा सम चरणों में 11 मात्रायें होती हैं. विषम चरणों के अंत में लघु, गुरू या लघु,लघु,लघु आना आवश्यक होता है.सम चरणों के अंत में गुरू,लघु के साथ तुकांतता अनिवार्य. विषम चरणों का प्रारम्भ जगण से वर्जित होता है.


वसुधा है माता सदृश,आँचल इसका थाम
माँ  की  पूजा  में  बसे , सारे  तीरथ-धाम ||


हाथ सृजन करने मिले,करता किंतु विनाश
शेष नाग ‘कर’ को बना , थाम धरा आकाश ||


बलशाली है बुलबुला,यह हास्यास्पद बात
कुदरत से लड़ने चला , देख जरा औकात ||


काट - काट कर बाँटता, निशदिन देता पीर
कब तक आखिर बावरे , धरती धरती धीर ||


करती है ओजोन की, परत कवच का काम
उसको खंडित कर रहा, सोच जरा परिणाम ||


बाँझ  मृदा होने लगी , हुई प्रदूषित वायु
जल जहरीला हो रहा , कौन होय दीर्घायु ||


अनगिन ग्रह नक्षत्र में ,  वसुन्धरा ही एक
जिसमें जीवन - तत्व हैं, इसको माथा टेक ||

********************************************************************

14. सुश्री महिमा श्री जी

दोहा छंद 

भूमि भी अब कांप रही , नित दिन बढ़ता ताप

किया है अनाचार तो , झेलो अब संताप

.

उथल पुथल सब हो रहा ,कित जाएँ हम आप

गंगा भी मैली हुयी ,धोते धोते पाप

.

जल जमीन जंगल बाँट ,लुटा असंख्य बार

क्षत विक्षत कर छिन लिया , धरती का श्रृंगार

.

चेतो ,जागो मनु पुत्रों, भू भी मांगें स्नेह

हाथ जोड़ विनती करो , माता देगी नेह

*******************************************************

15. श्री लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला जी  
दोहा छंद

माया निर्मित यह धरा, हरा भरा संसार

रोम रोम पुलकित करे, वसुधा का आभार

गगन, धरा, पाताल में,बसे जीव संसार

सत्कर्मों के योग से, जीवन का आधार

वसुदेव कुटुम्बकं का, ग्लोबल है आधार

मनुज रखे सद्भावना, सतत बहे रसधार

जीव जगत में प्राण है, सब में एक समान,

अंतर करता मनुज ही, नहीं जीव का ध्यान |

सत रज तमस मूल में, जीव करे व्यवहार

आधार बनेगा वही,  आना  अगली बार |      

 *******************************************************************

16.  डॉ० प्राची सिंह

छंद त्रिभंगी : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता, प्रति पद १०,८,८,६ पर यति, प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान, जगण निषिद्ध 

ब्रह्मांड अपरिमित, चेतन आवृत, शून्य सृजित हर, तत्व यहाँ

प्रति तत्व संतुलन, खंडित तद्क्षण, हो दुष्ऊर्जित , सत्व जहाँ

है निर्झर कलकल, प्राणवायु जल, खनिज लवण थल, हरा भरा

जीवन उद्घोषक, प्रतिपल पोषक, ग्रह अनुपम यह ,वसुंधरा...

मानव मन दूषित, करता कलुषित, पग चिन्हों से, पुण्य धरा

भू चीखे रूठे, अब तो टूटे, अहम् लोभ मय, विष तन्द्रा

संकल्प उठाएं, हस्त बढाएं, भू संरक्षण, लक्ष्य रहे

हर कर्म यज्ञ हो, यदि कृतज्ञ हो, जन-प्रकृति अंग सख्य रहे...

Views: 2837

Replies to This Discussion

गुरु पुर्णिमा की सादर शुभकामनाएँ, आदरणीया सरिताजी.

इस आयोजन में आपकी तीन रचनाएँ तीन भिन्न छंदों पर आधारित थीं. यह कम बड़ी बात नहीं है.

आप उन्हीं छंदों पर कुछ दिन और कार्य करें तो रचना प्रक्रिया के लिहाज से आपका विश्वास और बढ़ जायेगा.  जो आपकी निरंतरता के कारण होगा. 

यह एक सुझाव भर है.

सादर

स्वास्थ्य कारणों के चलते इसबार आयोजन में सम्यक समय नहीं दे पाने का बहुत मलाल है।
सर्वप्रथम छंदोत्सव के सफल संचालन के लिये आपको भूरिश: बधाई। यह कार्य आप जिस नि:स्वार्थ भाव से कर आप हम नौसिखुओं को लाभान्वित करते हैं, हम उसके लिये आपके हृदय आभारी हैं।
छंदोत्सव में प्रतिभागी व पाठक के रूप में उपस्थिति दर्ज कराने वाले सभी सदस्यों को हृदय से धन्यवाद। यह छंदोत्सव बिना उनके सहयोग के सफल नहीं हो सकता था।
रचनाओं के संकलन का गुरुतर कार्य कुशलता पूरक सम्पन्न करने के लिये मैं आदरणीया प्राची दीदी को हृदय से साधुवाद देता हूँ। वे जिस निष्ठा और लगन के साथ मंच के कार्यों को कुशलता पूर्वक सम्पन्न करती हैं वह एक दृढ़संकल्प और ऊर्जास्वित कार्यकर्ता का लक्षण है। हम उनके कुशल मार्गनिर्देशन में प्रतिपल स्वयं को ऊर्जावान अनुभव करते हैं।

आपकी छंद-रचना जो कि रोला छंद का उत्तम उदाहरण बन कर प्रस्तुत हुई इस आयोजन में वस्तुतः विशिष्ट रही, विंध्येश्वरी भाई जी.  इसके लिए पुनः बधाई स्वीकार करें.

परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि आपके स्वास्थ्य में आशातीत सुधार हो  तथा आप पुनः रचनाकर्म में पूरे मनोयोग से जुट सकें ताकि उसका सुलाभ हम पाठकों को लगातार मिलता रहे. 

आदरणीया प्राचीजी की निस्स्वार्थ सेवा के प्रति आपने जिस उदारता से अपनी भावना व्यक्त की है उसमें मेरे भाव-स्वर को भी सम्मिलित समझें, भाई.

शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ सर जी! क्या कह रहे हैं? मैं तो अपने उस रोला गीत पर अभी भी संतुष्ट नहीं हूँ। आज उसे लिखे हुए 10 दिन हो गया है, बार बार पढ़ रहा हूँ संशोधन कर रहा हूँ लेकिन संतुष्टि नहीं मिल पा रही है। फिल्हाल रचना पर आपका अनुमोदन आश्वस्तकारी है।
बस 103'c का बुखार था आपके आशीर्वाद से भलाचंगा महसूस कर रहा हूँ।
निश्चय ही प्राची दीदी का कार्य प्रशंसनीय, सराहनीय और अनुकरणीय है। उनकी कर्मठता को भूरिश: प्रणाम।

यदि आप अपने रचनाकर्म के प्रति असंतुष्ट हैं तो यह पाठकों की संतुष्टि का परिचायक है.

शुभम्

सभी छंदों को एक साथ फिर से पढ़ कर मन आनंदित हो गया. सफल आयोजन व सुंदर संकलन हेतु हार्दिक बधाइयाँ..........

आदरणीया प्राची जी ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 28 के सभी  प्रविष्टियाँ के संकलन के लिए आपको हार्दिक बधाई /

तथा आदरणीय सौरभ भईया को भी  कुशल संचालन के लिए बहुत -२  बधाई /

आदरणीय एडमिन महोदय

 

मेरे द्वारा प्रस्तुत दोहा छंद में आदरणीय गुरुजनों के मार्गदर्शन में मैंने कुछ परिवर्तन किये हैं . आपसे अनुरोध है उन्हें बदल दें ..

 

जल जमीन जंगल बाँट ,लुटा असंख्य बार       ...       जल थल के टुकड़े किये , लूटा कितनी बार

क्षत विक्षत कर छिन लिया , धरती का श्रृंगार             क्षत विक्षत है कर  दिया , धरती का श्रृंगार   

 

 

 चेतो ,जागो मनु पुत्रों, भू भी मांगें स्नेह                            

हाथ जोड़ विनती करो , माता देगी नेह                       आओ हम संकल्प ले , करे सपन साकार

                                                                         वसुधा की सेवा करे ,फिर से दे संवार

सादर आभार

       

लाइव महोत्सव की सभी रचनाए एक साथ पढ़ कर ख़ुशी होती है, कुछ ही समय में सभी प्रकार के छंदों का

लुफ्त लिए जाना संभव होता है, कुछ मन पसंद या विचारणीय रचना एक साथ संग्रहित करने के सुविधा भी

ली जा सकती है | ओबीओ में एक ही चित्र पर कई कई विधाओ/छंदों में रचना भविष्य के लिए संग्रहित हो जाती

है | ये सब लाभ उपलब्ध कराने हेतु समय निकाल कर श्रम साध्य कार्य करने के लिए आदरनीय मंच संचालक

श्री सौरभ पाण्डेय जी, एवं डॉ प्राची सिंह जी हार्दिक बधाइउ एवं साधुवाद के पात्र है | स्वागातनीय है |  

आयोजन में खूब थी, छंदों की बौछार 

कहाँ खो गए अब भला, सारे रचनाकार 

आदरणीय मिथिलेश भाईजी..

समय समझ की बात है, सोच मानिये खैर..
रह जाता जूता वहीं, बढ़ जाते हैं पैर !

आपकी संलग्नता कई बार भावुक कर देती है. बस इतना समझ लीजिये, भाईजी, कि तब एक साथ कई ’मिथिलेश’ इकट्ठे हो गये थे. आवश्यक ’समझ’ और ’विश्वास’ के बढ़ते ही कुछ”मिथिलेशों’ ने अपने-अपने ’गगन’ चुन लिये. तो कुछ ’मिथिलेश’ अपने जीवन में अति व्यस्त हो गये. कुछ ’मिथिलेशों’ को ईश्वर ने ’अपने’ कवि-सम्मेलन का न्यौता भेज दिया.

ये जीवन है.. इस जीवन का यही है.. यही है रंग-रूप ..
शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ सर, सही कहा आपने.

ये न सोचो इसमें अपनी हार है कि जीत है 

उसे अपना लो जो दुनिया की रीत है 

और यह भी सही है कि इन सबके बावजूद भी 'मिथिलेश' रुकेंगे नहीं.... बस आगे बढ़ते जायेंगे.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
1 hour ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service