सुधी साथियो,
अतीव हर्ष के साथ-साथ नम्र संतोष का विषय है कि ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का पचासवाँ अंक दिनांक 20 जून 2015 को सोल्लास सम्पन्न हुआ.
कुल 14 प्रतिभागी विभिन्न छन्दों में प्रदत्त चित्र के अनुरूप अपनी रचनाओं के साथ उपस्थित हुए. इसके साथ पाठकों की उपस्थिति भी सहयोगात्मक एवं सराहनीय रही.
इस बार किसी रचना की शिल्प या व्याकरण के अनुसार भटकी हुई पंक्ति रंगीन नहीं की जा रही है. इस अंक में प्रयुक्त सभी छन्दों पर पूर्व में रचना-प्रयास हो चुका है. सुधी रचनाकारों ने चूँकि उन्हीं विभिन्न छन्दों पर अभ्यासकर्म किया है अतः उन्हें मालूम है कि उनके किस पद में कहाँ गलतियाँ हैं और क्यों. इस बाबत आयोजन के दौरान भी समुचित चर्चा हुई है.
रचनाकर सदस्य स्वविवेक या आयोजन के दौरान हुई चर्चा के आधार पर इस संकलन में चाहें तो अशुद्ध प्रतीत होती हुई पंक्तियों में सुधार करवा सकते हैं.
इस बार के आयोजन की विशिष्टता रही आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तवजी की प्रस्तुतियाँ. अब तक व्यतीत हुए सभी आयोजनों के दौरान प्रयुक्त हो चुके छन्दों में से लगभग सभी पर आपने अभ्यासकर्म किया और आपने अत्यंत सार्थक छान्दसिक रचनाएँ प्रस्तुत कीं. आदरणीय अशोक कुमार रक्तालेजी, आदरणीय सत्यनारायणजी ने आ. गोपाल नारायनजी का पूरा सहयोग दिया. इनके साथ ही आदरणीय अरुण कुमार निगमजी, आदरणीया राजेश कुमारीजी की प्रस्तुतियों से भी आयोजन की रोचकता बनी रही.
इस बार रचनाओं के संकलन का महती कार्य अनुज शुभ्रांशुभाई द्वारा हुआ है. उनके सहयोग के लिए हार्दिक धन्यवाद. पूरा ध्यान रखा गया है कि आयोजन की सभी सार्थक रचनाओं को संकलन में स्थान मिल जाये. इसके बावज़ूद जिन रचनाकारों की अनुमोदित रचना संकलन में आने से रह गयी हो, वे अवश्य सूचित करेंगे.
भवदीय
सौरभ पाण्डेय
संचालक - चित्र् से काव्य तक छन्दोत्सव
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1.. आदरणीया डॉ. प्राची सिंहजी
छन्द का नाम - दोहा छंद
संक्षिप्त विधान - (दो पद, चार चरण , 13-11 की यति, पदांत गुरु लघु, विषम चरण का अंत गुरु लघु गुरु या लघु लघु लघु)
नन्हे मुन्नू क्यों भला, बाँच रहे अखबार ?
इन पन्नों में खोजते, कलयुग का क्या सार?
मम्मी-पापा हैं कहाँ, बोलो नन्ही जान ?
इस सीधे से प्रश्न पर, क्यों हो तुम हैरान ?
मम्मी खोई हैं कहीं, लिये लैप पर टॉप
घर भी है बिखरा हुआ, बिना स्वीप औ’ मॉप
पापा भी उलझे हुए, लिये किताबी-फेस.......................किताबी–फेस (फेस-बुक)
ऑनलाइन दिखी उन्हें, बहुत ज़रूरी रेस
पल्लू उसका छोड़ता, पकडूँ जो अखबार
उलझाकर मुझको गयी, नैनी भी बाज़ार
भाँप रहा हूँ आज कल, सब रिश्तों के स्ट्रैच
तभी लगा हूँ खोजने, लगे हाथ मैं क्रैच
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2. आदरणीय अखिलेश कुमार श्रीवास्तव जी
दोहे [ मात्रा 13-11 अंत गुरु लघु ]
कोमल कर में आ गया, हिंदी का अखबार।
देख रहा आश्चर्य से, शुभ शुभ बीता वार॥
रामदेव ने योग का, जग में किया प्रचार।
करते आयुर्वेद से, रोगों का उपचार॥
उलट पुलट सब देखकर, पढ़ता है अखबार।
योगमय हर गाँव शहर, औ’ सारा संसार ॥
चमत्कार है योग का, मिटे पुराने रोग।
योग दिवस इक्कीस को, यह सुंदर संयोग॥
शाला में बच्चे करें, आसन प्राणायाम।
तन मन दोनों स्वस्थ हो, सुबह करें फिर शाम॥
युवा वर्ग को चाहिए, मन पर रखें लगाम।
तीस मिनट बस कीजिए, हर दिन प्राणायाम॥
खुलकर हँसना योग है, गहरी नींद सुयोग।
मौन भी एक योग है, ये सब रखें निरोग॥
रोग बने ना ज़िन्दगी, बोझ लगे ना काम।
सास बहू बेटी करें, मिलकर प्राणायाम॥
छंदो का स्वर्णिम सफर, उत्सव हुए पचास।
खबर छपी अखबार में, माह जून है खास॥
शुभ जीवन की राह में, दुश्मन हैं सब रोग।
चिंता की क्या बात है, मित्र बना जब योग॥
परमात्मा से जीव का, मिल जाना है योग।
भक्ति करें निष्काम तो, होगा शुभ संयोग॥
(संशॊधित)
दोहे
बच्चे कैसे पालना, यह अखबार बताय।
मातु पिता सुनिये ज़रा, बात समझ में आय॥
माँ दादी से सीखिये, पियें और क्या खायँ।
दो मिनट के चक्कर में, हमें ज़हर न खिलायँ॥
मैगी पिज्ज़ा छोड़िये, क्यों बनते नादान।
भोजन पौष्टिक पाच्य हो, रखें स्वास्थ्य का ध्यान॥
पालन पोषण में कमी, चकित हुआ यह जान।
धन्यवाद अखबार को, दिया मुझे यह ज्ञान॥
मॉम डैड दोनों सुने, खिलौने अब न लायँ।
खेलेंगे सब साथ हम, घर में समय बितायँ॥
बच्चे ज़िद्दी क्रूर क्यों, यह अखबार बताय !
कुत्ते कभी न पालिये, कुछ तो असर दिखाय !!
डिटर्जेन्ट है दूध में, मदर डेयरी नाम।
बच्चे युवा किशोर का, क्या होगा अंजाम॥
हर माँ को समझाइये, अच्छी माँ बन जायँ।
पावडर में घुन कीट है, अपना दूध पिलायँ॥
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3. आदरणीय सत्यनारायण सिंहजी
छन्द का नाम - .कुंडली उर्फ कुण्डलिया छन्द
संक्षिप्त विधान : (दोहा+रोला ) आरम्भ में एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस मात्राएँ होती हैं। दोहे का अन्तिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है तथा इस छन्द का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है.
मन अभ्यासी बाल का, जीवन प्रातः काल।
हाथ लिये अखबार शिशु, बाँच रहा जग हाल।।
बाँच रहा जग हाल, सशंकित मन है थोडा।
शब्दों का जंजाल, बना है मग का रोडा।
सत्य बाल मन भाव, जगत खबरें आभासी।
करवाती आभास, बाल का मन अभ्यासी।।
छंद मदन/रूपमाला
(चार चरण: प्रति चरण 24 मात्रा,
14-10 पर यति चरणान्तमें पताका /गुरु-लघु)
चित्र रंजक बाल मन को, खूब आते रास
शिशु अतः अखबार ढूंढें, बाल कोना खास
बाल जग साहित्य सुन्दर, गीत कविता संग
पढ जहाँ रोचक कथा मन, बाल होता दंग
देख कर फिर अक्षरों को, है भ्रमित शिशु माथ
व्यग्रता से शिशु पलटता, पृष्ठ अपने हाथ
शब्द से अनजान लगता, भाव परिचित बाल
निरखता अखबार बालक, अँगुलियाँ मुख डाल
कुंडलिया
आये अक्षर रास ना, उनसे शिशु अनजान
होकर परिचित भाव से, वह पढ़ता मुस्कान
वह पढ़ता मुस्कान, सार शिशु समझे गीता
बाइबल औ कुरान, सभी वह मन से जीता
निरख रहा अखबार, खबर बनकर जो छाये
उलझन में है बाल, समझ में कुछ ना आये
छंद - कामरूप
(विधान – चार चरण, प्रत्येक में 9, 7, 10 मात्राओं पर यति ,चरणांत में गुरु व लघु)
शिशु अति सलोना, बाल कोना, ढूँढता अखबार
हर शब्द निरखे, अर्थ परखे, डूब खोजे सार
नित हो रहा है, बाल आहत, देश का पढ हाल
तब व्यक्त चिंता, बाल करता, अँगुलियाँ मुख डाल
भुजंगप्रयात
(4 यगण )
समाचार मुम्बापुरी का छपा है
सुहानी अजी आज वर्षा खफा है
हुई तेज वर्षा भिगोये धरा है
रुकी आज ट्रेनें नया माजरा है
घटा मेघ काले हवा संग झूमे
झुका आसमां भी धरा गात चूमे
पढ़े बाल देखो समाचार कैसे
खुदा नाम सूफी पढ़े देख जैसे
(संशोधित)
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4. आरणीय अशोक कुमार रक्तालेजी
सार छंद (यह 16-12. की यति पर मात्राओं का चार चरणी छंद है. सभी चरणों का अंत दो गुरु या लघु-लघु गुरु या गुरु लघु-लघु या चार लघु से होता है. सम चरणों का अंत तुकांत होता है.)
छन्न पकैया-छन्न पकैया, देखो खबर निराली |
राजा ही अब करते दिखते, चोरों की रखवाली ||
छन्न पकैया-छन्न पकैया, बालक को हैरानी |
पहली ही बारिश में आया, सिर के ऊपर पानी ||
छन्न पकैया-छन्न पकैया, राजनीति के नाते |
स्विस बैंकों के फरफर कितने, रीत रहे हैं खाते ||
छन्न पकैया-छन्न पकैया, कैसा हुआ ज़माना |
एक वर्ष की उम्र हुई क्या, शाला भेजें नाना ||
छन्न पकैया-छन्न पकैया, कैसी खबरें लाये |
फाड़-फाड़ कर आखें देखूं, कुछ भी समझ न आये ||
कह्मुकरी ( चार पंक्तियों के इस छंद में 16-16 मात्राएँ होती है पहली दो पंक्तियों और अंतिम दो पंक्तियों में तुकांत होते हैं. यह दो सखियों की आपस में बातचीत की तरह है जिसमे एक सखी कुछ कह कर मुकरती है.)
देखे टकमक बने खिलाड़ी,
अँगुली चाबे लगे अनाडी,
सखी अकल का है वह कच्चा,
क्या सखि साजन ? ना सखि बच्चा.
खुद ही बाँचे खुद ही जाने,
जाने क्या बैठा है ठाने,
उसका भाव मगर है सच्चा.
क्या सखि साजन ? ना सखि बच्चा.
शक्ति छंद ( 18 मात्राओं का चार पदी यह छंद दो-दो पदों में तुकांतता बनाता है इसकी पहली, छठी, ग्यारहवीं और सोलहवीं मात्रा लघु होती है)
न जाने उसे क्या दिखा है भला,
सजग हो गया है अचानक लला
उँगलियाँ चबाने लगा जोर से,
समाचार पढ़ आज या शोर से ||
किसी स्वप्न में ये मिली है खबर
बँटेंगी कहीं टाफियां रात भर
उसी को तलाशे नजर श्याम की,
कहाँ पर छपी वो खबर काम की ||
कुकुभ छंद ( 16-14 कुल 30 मात्राओं के चार पदों का यह छंद दो-दो पदों की तुकांतता रखता है. सम चरणों का अंत दो गुरु से होता है.)
चौथा पाया लोकतंत्र का, भारत भर जिससे हारा
बना बिछौना लेट गया है, उस पर इक बालक प्यारा
नजर गडाए देख रहा है, बदली रीत हमारी है
हार हुई है कह दूँ इसको, या की जीत हमारी है ||
दो-दो अँगुली मुँह में डाले, विस्मित है बच्चा प्यारा |
एक पृष्ठ पर खबर छपी है, बाकी विज्ञापन सारा,
कैसा यह अखबार छपा है, गायब कोना बच्चों का,
झूठों की तारीफ़ लिखी है, हाल न लिक्खा सच्चों का ||
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5. आदरणीय गिरिराज भंडारीजी
दोहे --
ऐसा क्या है लिख दिया , अचरज - दुख है संग
भोली सूरत लाल की , लगती है बद रंग
शायद खूनी खेल का , फिर लिख्खा है हाल
या लूटा फिर से गया , कहीं सिनेमा- माँल
या आतंकी घुस गये , बम के ले फिर संग
इसीलिये बच्चा डरा , और हुआ है दंग
या बहना की फिर कहीं , लूट ली गई लाज
और हमेशा की तरह , रही पुलिस बे काज
या डीज़ल फिर से कहीं , रात हुई नाराज
दुख-अचरज दोनों दिखे , इस बच्चे में आज
या माता आफिस गई , तब नौकर सरकार
रोते बालक को दिया , हाथों में अख़बार
अनुमानों की बात की , सच में क्या औकात
बच्चा पढ़ सकता नहीं , दिन न समझे रात
कुंडलिया
बच्चा पढ़ के डर गया , देखो तो अखबार
क्या उसमें फिर से छपा , महिला अत्याचार
महिला अत्याचार , पढ़ा तो मन रोया है
आया माँ का ख़्याल , उसी में कुछ खोया है
सोच रहा अब लाल , मिले खा जाऊँ कच्चा
समाचार का हाल , गया पढ़ के डर बच्चा
काम रूप छंद
क्यों तुझे अचरज, हुआ है ये , तो बता ऐ लाल
आँख मे शामिल , है भय और , संग चिंतित भाल
शब्द काले क्या, हैं छिपाये कुछ , अर्थ जिसके लाल
तू बोल कुछ तो, क्यों अचंभित , क्या हुआ जंजाल
फिर कह न दे तू , यह कि अस्मत ,फिर लुटी इस बार
फिर आज बेटी , देख तनहा, रो रही है धार
फिर से गरीबी , राह चलते , हो गई पामाल
बस इसलिये तो , ख़बर पढ़ते , यूँ बुरा है हाल
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6. सौरभ पाण्डेय
छन्द का नाम - आल्हा या वीर छन्द
छन्द सम्बन्धी संक्षिप्त जानकारी - 16-15 की यति / विषम चरणान्त - गुरु-गुरु,
गुरु-लघु-लघु, लघु-लघु-गुरु, लघु-लघु-लघु-लघु / पदान्त गुरु-लघु.
आँखें फाड़े, नये पढ़ाकू, सुबह-सुबह अखबारीलाल
’सी.. री.. गू.. रू.. चरन..’ टटोलें और बजाते जायें गाल
’ले लोटा’ क्या खबर छपी है, ’बकरी ले भागी है बाघ’
ले ला-लू कर.. लूला भुजबल, शातिर निकला गुम्मा घाघ
लार चुआता ’मटन-चिकन’ पर, हाथी चाहे ’मूँड़ा-चाँप’
उधर मेंढकी योरुप वाली, पाल रही बाड़े में साँप
बकरमुँहा अन्धे सूबे का, घूम-घूम फैलाये रोग
जमा किये कुछ संग निठल्ले, भैंगा चेंप रहा है योग
पंख लगाये चींटी-चींटे, निकल पड़े हैं अबकी बार
कच्छे पर बनियान चढ़ाए, मारी-मारा को तैयार
घर में धेला एक न उठता, पर बाहर मैनाक पहाड़
’बाबाजी का ठुल्लू’ लेकर, बेच रहे हैं शुद्ध कबाड़
कित्ती बात कही बहना ने, मम्मी ने भी की ताकीद
पर पप्पूजी ग़ज़ब निराले, कोई क्या पाले उम्मीद
बिन सोचे वो पत्ते फेंकें, अड़धंगी-से चलते दाँव
क्यों होगा अहसास उन्हें जब, नहीं बिवाई उनके पाँव !
भोपूँ अपने बजा-बजा कर, जत्थे-जत्थे आये घाघ
जेठ माह की बाढ़ डुबोती, गर्मी से तड़पाये माघ
उलटबासियों में कजरी गा, ताने बैठे सुर-मल्हार
दिल्ली वाले सोच रहे हैं, क्या वादे थे, क्या व्यवहार !
नये दौर के इस भारत में, नये-निराले सारे रंग
मूर्गी ’चूँ-चूँ’ बोले कैसे, बतलाता है ’चूजा’ ढंग !
बड़बड़ करता फिरता चूजा, किन्तु बहुत फेंकूँ अरमान
लेकर आया पेट में दाढ़ी, छप्पन इंची सीना तान !!
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7. आदरणीया राजेश कुमारीजी
आल्हा या वीर छन्द
16-15 की यति / विषम चरणान्त - गुरु-गुरु,
गुरु-लघु-लघु, लघु-लघु-गुरु, लघु-लघु-लघु-लघु / पदान्त गुरु-लघु.
नन्हा मुन्ना देखो पढता ,ध्यान लगा कर ये अखबार
लगता है ये भोला भाला ,मत समझो पर बुद्धू यार
ढूढें नित दिन नई नौकरी,बेडा खुद ही करना पार
आज चमक आई आँखों में ,खाली पद निकले हैं चार
आवेदन तुम भर दो पापा, मिल जायेगा कोई स्थान .......... (संशोधित)
फ़ख्र करो अपनी किस्मत पर, बेटा कितना है विद्वान
सब समझे ये घर की हालत ,मत समझो इसको नादान
पूरी अब इच्छाएँ होंगी ,मम्मी लायेंगी मिष्ठान
हालत क्या है आज देश की ,बड़े निराले इसके ढंग
क्या सच्ची है क्या झूठी है ,पढ़े खबर ये होकर दंग
हैरानी से पढ़े अकेला ,दीख रहा ना कोई संग
डाल के मुख में दो ऊँगलियां, बांच रहा दुनिया के रंग
मम्मी पापा दीदी भैय्या, लगते यहाँ सभी हैं व्यस्त
मुन्ने को भी फिकर कहाँ है, अपनी दुनिया में है मस्त
जीवन की आपा धापी में ,कहाँ मिले ममता की छाँव
नये आधुनिक से पलने में, दीख रहे बच्चे के पाँव .......... (संशोधित)
(दोहे )
मुखड़े पर है छा रहा ,कितना अजब रुआब|
देख रहा अखबार को , आँखों में है ताब||
मुँह में दांत जमे नहीं ,देह बिलांदी चार|
दीदे फाड़े पढ़ रहा , सचमुच ज्यों अखबार||
इसी चित्र को देख कर ,मन में आई बात |
होनहार बिरवान के ,होत चीकने पात||
प्रथम दो पंक्तियाँ सोलह मात्राओं की तीसरी पंक्ति पन्द्रह या सोलह या सत्तरह मात्राओं की , चौथी पंक्ति दो भागों में विभक्त
कुछ कह्मुकारियाँ
लगती भली चाय की चुस्की
सुबह सुबह संगत में उसकी
प्यार करे सारा परिवार
क्या सखि साजन
ना अखबार
आखें खुलते सम्मुख आता
इधर-उधर का हाल सुनाता
कोई दिन हो कोई वार
क्या सखि साजन
ना अखबार
उसके बिन है ज्ञान अधूरा
आलस त्यागूँ अपना पूरा
उसकी खातिर खोलूँ द्वार
क्या सखि साजन
ना अखबार
दुनिया भर की सैर कराता
ज्ञान लोक का दीप जलाता
उस पर करती हूँ एतबार
क्या सखि साजन
ना अखबार
नया सवेरा जैसे आता
उसका दर्शन मुझको भाता
दैनिक जीवन का आधार
क्या सखि साजन
ना अखबार
कुण्डलिया छन्द....., 1 दोहा + 1 रोला
जाने क्या कुछ देख कर ,बालक है ये दंग|
बड़ी-बड़ी आँखें हुई ,बदला मुख का रंग||
बदला मुख का रंग,सामने आखर काले|
मुद्रा है गंभीर ,उँगलियाँ मुख में डाले||
एक पंक्ति पर ध्यान,भाव भी खूब सयाने|
पेपर में क्या ख़ास ,बात बालक ही जाने||
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8. आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवजी
शक्ति छंद
(आदि लघु, चरणांत सगण रगण या नगण)
रचनाक्रम (3+3 +4+3+5)
बहुत व्यग्र दिखता है कुमार यह
वदन मध्य डाले अँगुलि चार यह
लिए एक अखबार वह हाथ में
रहा देख अक्षर चकित साथ में II
ककुभ छंद (16,14) चरणांत 22
बालक व्याकुल दीख रहा अति कछु अंगुलि मुख में डाले
समाचार पत्रक को कर से भली भाँति है सम्भाले II
हर्फ़-हर्फ़ को देख रहा है समझ नहीं कुछ भी पाया
रोनी सूरत बना लिया जब उसका मानस घबराया II
गीतिका (14,12) चरणांत 12
(3सरी, 10वीं,17वीं, 24 वीं मात्रा लघु )
हाथ में पकड़ा दिया अखबार किसने बाल को
देखता कोई नहीं इस वीरव्रत के हाल को II
उंगलियाँ मुख में किये व्याकुल हृदय वह मौन है
जो मुसीबत में फंसाकर छिप गया वह कौन है II
हरिगीतिका (16,12) चरणांत 12
रचनाक्रम (2+3+4+3+4+3+4+5)
मैं बाल हूँ मुझको भला पढ़ना अभी आत़ा नही
कोई हमारे मातु को यह सत्य समझाता नहीं II
अखबार पढ़ने के लिए उसने मुझे बिठला दिया
है सोचती सब ज्ञान जग का लाल को सिखला दिया II
भुजंगप्रयात
(4 यगण )
पढूं मैं समाचार कैसे बताओ
अभी से नहीं आप ऐसे सताओ II
कभी तो बनूंगा बड़ा आदमी मैं
करूंगा बड़े काम सारे तभी मैं II
अभी तो बड़ी मुश्किलों में पड़ा हूँ
पढूंगा नहीं आज मैं भी अड़ा हूँ II
निगाहें यहाँ मैं रहूंगा गडाए
भले शब्द कोई समझ में न आये II ,,,,,,, (संशोधित)
ताटंक
(16,14 ) चरणांत 222
बालक तो है चकित बहुत यह अंतर्मन भी है भारी
समाचार वाचन की उसको मिली कठिन जिम्मेदारी II
कौतूहल से देख रहा वह काले अक्षर की माया
गहन प्रयास किया बालक ने समझ नहीं कुछ भी आया II
उल्लाला
(13,13)
इस बालक के ज्ञान का I शैशव के सम्मान का I
उसके सीमित बोध का I क्षमता रहित विरोध का I
आकुल-व्याकुल नैन का I इस अबोध के चैन का I
कितना क्रूर मजाक है I मानवता क्या ख़ाक है ?
आज रुदन कर बाल तू तुझको कुछ खोना नहीं
होना था जो हो गया अब आगे होना नहीं I
(15,13 )
जो समझ नहीं आया तुझे कल जायेगा जान तू
पहचानेगा यह जगत भी पहले जग पहचान तू I
कामरूप
(9,7,10) चरणांत (21)
प्रथम चरण आरम्भ – 2 या 11
द्वतीय चरण आरम्भ – 21
तृतीय चरण आरम्भ – त्रिकल
हो नहीं अधीर, तू बलबीर, न पढ़ सके तो पढ़
तू नही विमूढ़, शब्द निगूढ़, नव परिभाषा गढ़ I
व्यर्थ का यह भय, प्रकट है जय तनिक हो जा सुदृढ़
फिर तज अखबार, त्याग विकार, दावानल सा बढ़ II
सार छंद
(16,12 ) चरणांत 22, 211, 112 या 1111
तू छोटा है या बच्चा है फिर भी क्या घबराना ?
अखबारों से तू सीखेगा अपनी दृष्टि जमाना
कौतूहल से ही इस जग में ज्ञान चेतना आई
जितनी ही जिज्ञासा होगी उतनी ही गहराई
नहीं सभी अभिमन्यु सरीखा ज्ञान गर्भ में पाते
इसी जगत में सीख-सीख कर दिग्विजयी बन जाते
अतः वत्स ! अपनी चित्रोपम दुश्चिन्ता को छोड़ो
पूरा जीवन पड़ा हुआ है इस पन्ने को मोड़ो
तोमर
(12 मात्रिक , चरणांत 21)
संतप्त है यह बाल I अधीर मानस मराल I
दिन आज है इतवार I है सामने अखबार I
बिखरे हुए हैं शब्द I पर बाल है निश्शब्द I
दिखता है सब अबूझ I पड़ता नहीं कुछ सूझ I
पूंछेंगे सर सवाल I कल बुरा होगा हाल I
सर की सहूँ मैं मार I हँसते सभी है यार I
हेडिंग्स जो हैं खास I आती नहीं है रास I
मन में नहीं विश्वास I तो व्यर्थ सभी प्रयास I
रूपमाला छंद
(14,10 ) चरणांत 21
दे गया अखबार इसको बावला वह कौन
आँख फाड़े देखता शिशु अक्षरों को मौन
जो हमेशा घूमता था हर तरफ स्वच्छंद
किस तरह उसको मिलेगा पत्र में आनंद
कर लिया उसने परिस्थिति को सहज स्वीकार
किन्तु है यह बाल मन पर एक अत्याचार
इस अवस्था में रहेंगे यदि न बालक मस्त
टूट जायेंगे अभी से बालपन भी ध्वस्त
देखते है ह्म चतुर्दिक दुर्दशा में बाल
देश में अच्छा नही है बालको का हाल
हैं यही भारत भविष्यत् ये कुसुम सुकुमार
वृन्त कोमल हैं न डालो अभी दुर्वह भार
वीर या आल्हा छन्द
(16, 15 ) चरणांत 21
अंगुलि मुख में डाले लल्ला देख रहे कल का अखबार
छपी खबर कुछ अजगुत ऐसी बालक करने लगा विचार
आया जो भूकंप भयावह उसमें छात्र मरे थे सात
कल तक संग विहरते थे जो उनकी बीत गयी सब बात
उनमें दोस्त हमारा भी था एक पुराना हमदम ख़ास
छोड़ गया वह हमें अकेला कैसे हाय ! करें विश्वास ?
त्रिभंगी
(10 ,8 ,8 ,6 ) चरणांत 2
बालक सुकुमारे, अतिशय प्यारे, सब जग न्यारे. आकुल क्यों ?
पढ़कर क्या देखा, पीड़ा रेखा, त्वरित विशेषा छाई यों I
ओ बाल नवागत, शुभ-शुभ स्वागत, चिंताओं से मुख मोड़ो
प्यारी है माता, पिता विधाता, सब संशय उन पर छोड़ो II
मनहरण घनाक्षरी छन्द
(8.8 एवं 8,7) वर्ण
गोरे-गोरे लाल-लाल, सुघर सलोने गाल
दिखता नही है भाल, किंतु भौंह बंक है I
लगता विहीन चैन, पत्र पर झुके नैन
बंद हुये बैन-बैन, लिए पत्र अंक है II
पाठ में निमग्न मन सोच से विषण्ण तन
टीस से भरा वदन, ऐसा कौन डंक है I
पत्र में छपा है कुछ , बुद्धि में खपा है कुछ
आखर जपा है कुछ , जिस हेतु शंक है II
रोला छन्द
(11, 13 )
समाचार का पत्र आँख के आगे फैला
दर्पण में प्रतिबिम्ब दीखता थोडा मैला
बांये कर से थाम पत्र का वाचन करता
संवेदन अहसास नेत्र से उर में भरत़ा
कुछ तो अघटित छपा पत्र में मेरे भाई
छूटी पढ़कर जिसे बाल को सहज रुलाई
देखो हुआ विवर्ण बाल का सुन्दर मुखड़ा
रोकर किससे कहे जगत में अपना दुखड़ा II
दोहा छन्द
(13 ,11 )
पढ़ लेता हूँ पाठ मैं, लिख लेता हूँ नाम
पर पढ़ना अखबार का बहुत कठिन है काम
हालाँकि मैं दे रहा हर अक्षर पर ध्यान
पर शब्दों के अर्थ का नहीं हो रहा भान
हिन्दी भाषा का यदपि माता सा सम्मान
धीरे धीरे ही मगर होगा अक्षर ज्ञान
पापा कहते विश्व में छाया जो व्यापार
सुगम जानने का उसे साधन है अखबार
शैशव से होता नहीं कोई जीव महान
समय परखता है उसे तब देता है मान
कुण्डलिया छन्द
(दोहा+रोला )
छाया दर्पण पर पड़ी, बाल लिए अखबार
काले अक्षर देखकर करता व्यग्र विचार
करता व्यग्र विचार भली है इससे कक्षा
स्वाभिमान सम्मान सभी की करता रक्षा
कहते है ‘गोपाल’ कठिन विद्या की माया
पहले मिलती धूप बाद में शीतल छाया
चौपाई छन्द
(16,16 )
बालक करने चला पढ़ाई बैठा पेपर लेकर भाई
यहाँ बुद्धि उसकी चकराई रोनी सी सूरत बन आई
नहीं समझ में कुछ भी आता दुस्साहस पर है पछताता
अगर खेलने को मैं जाता अब तक चौके चार लगाता
मम्मी ने मुझको बहकाया मुझको अच्छी जगह फँसाया
मैंने तो मन बहुत लगाया पर कुछ भी तो समझ न आया
चित्र नहीं है रंगों वाला दिखता है सब काला-काला
पर सब बच्चों से मैं आला लोग कहेंगे पढ़ने वाला
चौपई छन्द
(15 ,15 ) चरणांत 21
मैं अखबार रहा हूँ बांच I समझूं झूंठ न समझू सांच I
कौन रहा है मुझको जांच I गिनती गिन पाऊँ बस पांच I
शर्म नहीं करता परिवार I बालक से ऐसा व्यवहार I
पुस्तक से होता दो चार I तब देते मुझको अख़बार I
कभी मुझे भी होगा ज्ञान I धीरे-धीरे बनूँ महान I
पड़े न संकट में शिशु जानI मुझे रहेगा इसका ध्यान I
भोर भये मेरे ढिग आवे
दुनिया भर की बात बतावे
प्रेम करे वह हमसे सच्चा
क्यों सखि, साजन ?
ना सखि बच्चा .
रात-रात भर मुझे जगाता
मुझे जगाकर खुद सो जाता
बड़ा अक्ल का है वह कच्चा
क्यों सखि, साजन ?
ना सखि बच्चा
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9. आदरणीय रमेश कुमार चौहानजी
त्रिभंगी छंद
(10-8-8-6 पर यति, अंत में गुरु, जगण कही न हो चरणांत गुरू ही हो)
ये नन्हा पाठक, बनकर चातक, ढूंढ़ रहा है, जल स्वाती ।
हाथों में लेके, पेपर देखे, खबरों की क्या है, परिपाटी ।।
खूब बलत्कारी, भ्रष्टाचारी, और लुटेरे, पेपर में ।
कितने विज्ञापन, दे अपनापन, हमें लुभाये, रेपर में ।।
वे बड़े लफंगे, करते दंगे, मारामारी, गांवों में ।
दो प्रेमी बैठे, देखो ऐठें, लोक-लाज खो, भावों में ।।
क्यो नेता लड़ते, दुश्मन बनते, संसद के गलि-यारों में ।
गुम है खुशहाली, ढूंढ़े माली, नव नूतन अख-बारों में ।।
गीतिका छंद
(14,12 पर यति 3री, 10वी 17वी एवं 24वी मात्रा लघु पदांत गुरू लघु गुरू)
एक बालक देखता है, हाथ ले अखबार को ।
कुछ समझ ना वह सके पर, देख सम आकार को ।।
रंग श्यामल अक्षरों के, श्याम जैसे रंग हैं ।
अंगुली मुख पर दबाये, बाल मन का ढंग हैं ।।
कुण्डलिया छंद
(संक्षिप्त विधान : (दोहा+रोला ) आरम्भ में एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस मात्राएँ होती हैं। दोहे का अन्तिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है तथा इस छन्द का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है. )
बालक ले कर हाथ में, देख रहा अखबार ।
काले काले शब्द हैं, सबके सब बेकार ।।
सबके सब बेकार, समझ वह कुछ ना पाये ।
क्यो पढ़ते हैं लोग, सभी को क्यों यह भाये ।।
मिले कहां कुछ स्वाद, लगे ना यह तो लालक ।
करता सोच विचार ,चबाये उँगली बालक ।।
(संशॊधित)
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10. आदरणीय अरुण कुमार निगमजी
दोहा छंद
अरे बाप रे दंग हूँ, देख निगेटिव न्यूज !
कैसा यह अखबार है, करे ब्रेन को फ्यूज ||
उल्लाला छंद
उल्लाला (13-13 / विषम-सम तुकांत)
यह कैसा अखबार है | विज्ञापन भरमार है |
भाँति-भाँति की लूट है | सकल कर्म की छूट है |
उल्लाला (13-13 / सम-सम तुकांत)
पापा जी व्यवसाय में | मम्मी क्लब में व्यस्त है |
आया करती मस्तियाँ | देख हौसला पस्त है |
उल्लाला (15-13 / सम-सम तुकांत)
यह बड़ा अजब संसार है | लुप्त हो रहा प्यार है |
सब वृद्ध यहाँ लाचार हैं | छोटा हर परिवार है |
आल्हा छंद (16-15 यति / अंत में गुरु-लघु)
पैदा होते देर नहीं है , दुनियादारी समझे खूब
"भला-बुरा मैं समझ रहा हूँ" , कहता है चिंतन में डूब
काला अक्षर भैंस बराबर, फिर भी देख रहा अखबार
मानो समझ रहा हो पढ़कर , कैसा है नूतन संसार |
किन खबरों में झूठ छुपा है , और कौन सी खबरें साँच
सच्चा हीरा छुपा कहाँ पर, कहाँ चमकता चम-चम काँच |
चौपाई छन्द (16-16)
पापा समय नहीं दे पाते । देर रात को लौट के आते
मम्मी को क्लब मुझसे प्यारा । मैं किसकी आँखों का तारा ?
यह दस्तूर मुझे नहिं भाया । माँ निश्चिन्त पालती आया
आया ने पलटा के सुलाया । हाथ मेरे अखबार है आया
आया देख रही है टी.वी. । मुझे समझते सब परजीवी
ढंग देख कर दंग हुआ हूँ । शायद मैं पासंग हुआ हूँ
(चौपई छन्द 15-15 और अंत में दीर्घ-लघु)
मुन्ना राजा है बेचैन । विस्फारित हैं दोनों नैन
माना मुन्ना अभी अबोध । फिर भी झलक रहा है क्रोध
अपने मुँह में उँगली डाल । जाने सोच रहा क्या लाल
पास नहीं इसके माँ-बाप । इसीलिये शायद संताप
(कुण्डलिया छन्द, 1 दोहा + 1 रोला)
आया ने पटका इधर, थमा दिया अखबार
खेलूँ फाडूं क्या करूँ , अब मैं इसको यार
अब मैं इसको यार, बनाऊँ क्या इक पुँगली
पीकर अपना क्रोध, दबाऊँ मुँह में उँगली
मम्मी - पापा मस्त, उन्हें जकड़ा माया ने
थमा दिया अखबार, इधर पटका आया ने ||
(रोला छन्द, 11-13 पर यति)
मुँह में उँगली दाब , देखता है अचरज से
इस दुनियाँ के लोग, लग रहे हैं निर्लज से
ऐसी - ऐसी न्यूज , शर्म आती है पढ़ कर
हवा - हवाई बात, लिखी जाती हैं गढ़ कर
(कुकुभ छन्द 16-14 यति, अंत में दो गुरु)
जब मैं सोऊँ तब पलंग पर, मुझे लिटाना तुम मम्मी
जाग रहा हूँ मुझे खिला दो, वे चीजें जो हों यम्मी |
चूस रहा उँगली मुँह डाले , समझो जरा इशारों को
क्या ऐसे ही छोड़ा करते, हैं आँखों के तारों को |
सबकुछ रहकर भी वंचित हूँ , मातु-पुत्र में क्यों दूरी
सुनो तुम्हारा ही जाया हूँ, नहीं गिनाओ मजबूरी |
बार-बार क्यों मुझको लगता , तुम भी एक पराई हो
कुछ अच्छे संस्कार सिखा दो,जब दुनियाँ में लाई हो |
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11. आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवालाजी
कुण्डलिया छंद
बच्चा छोटा पढ़ रहा, कौन खबर अब आज,
बहुत गौर से घूरता, छपी खबर का राज |
छपी खबर का राज, नहीं बापू भी जाने
पढ़े खबर को घूर, बैठ कर पता लगाने
बच्चे का तस्वीर, दिखाती भाव ये सच्चा
दिखता वह गंभीर, लगे वह सुंदर बच्चा |
(2)
बच्चें ने क्या पढ़ लिया, जिससे हुआ तनाव,
बच्चें की तस्वीर से, मिले अनोखा भाव |
मिले अनोखा भाव, पत्र में क्या कुछ देखा
समाचार को देख, खिंची ललाट पर रेखा ........... (संशोधित)
समझ लीजिए आप, भाव जिनमे भी सच्चें,
बचपन से ही तेज, आजकल होते बच्चें |
आल्हा छंद
आल्हा छंद (16-15 मात्राएँ, विषम चरणान्त - गुरु-गुरु, पदान्त गुरु-लघु.
पापा क्या पढ़ते रहते है, पता लगाना मुझको आज,
रोज सवेरे आँख गडातें, आखिर क्या इसमें है राज |
अवसर आज मिला बच्चें को, देख रहा है वह अखबार,
भैंस बराबर अक्षर काले, कौन करे इससे इनकार |
काले पीलें क्यों करते हैं, दिखा भाल पर यही तनाव,.................(संशोधित)
आँखे फाड़ें देख रहा था, नहीं समझ पाया कुछ भाव |
बे-फिजूल की करते चर्चा, करे समय यूँ ही बर्बाद
ऐसा कुछ मै नहीं करूंगा, करता वह खुद से संवाद |
पापा पढकर चिंतित होते, फिर देते टीवी पर ध्यान,
कैसा मौसम आज रहेगा, करते रहते यही बयान |
कभी बताते मम्मी को भी, कैसा ये गुण्डों का राज,
कुछ करते घोटाले देखों, लूट रहे जनता को आज |
बच्चें मन के सच्चें होते, दुनियादारी से अनजान,
कपट न उनके मन में होता,ईश्वर का उनको वरदान |
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12. आदरणीय विनय कुमार सिंहजी
दोहा--
सुबह सुबह पकड़ा दिया, हाथों में अखबार
कहाँ हुई बरसात है, चलती कहाँ बयार
दिल में गुस्सा है भरा, नैनो में अंगार
लूट डकैती रहज़नी, हरसू भ्रष्टाचार
लूटा किसने बैंक हैं, लूटी कहाँ दुकान
सारी खबरें बांच कर, छोटू है हैरान
अब तो तौबा कीजिए, पढ़ें नहीं अख़बार
खेलें, कूदें, बाँट ले, अब थोड़ा सा प्यार !!
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13. आदरणीय हितेश शर्मा ’पथिक’ जी
महाभुजंगप्रयात छंद:
अरे क्या यही सत्य है जो लिखा है,भला विश्व में क्या यही हो रहा है
जहाँ देखता आसुरी वृत्तियाँ हैं,न जाने कहाँ देवता सो रहा है
नहीं दीखती भावना पावनी भी,भयाक्रान्त सा प्रेम भी रो रहा है
फँसे जाल में काल के मर्त्य सारे,यहाँ मूल्य सद्भाव भी खो रहा है
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14. आदरणीय सुशील सरनाजी
दोहे...
पढ़ते पढ़ते लाल की, आँख हो गयी लाल
देखी आँखें लाल तो, मात भयी बेहाल
आखर आखर पढ़ लिया, निकला सब बेकार
बिन चले ही आँखों से , नाप लिया संसार
लगती नहीं आज हमें, इसमें अच्छी बात
झाड़ी में नवजात है ,कहीं आग ही आग
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समाचार मुम्बापुरी का छपा है
सुहानी अजी आज वर्षा खफा है
हुई तेज वर्षा भिगोये धरा है
रुकी आज ट्रेनें नया माजरा है
घटा मेघ काले हवा संग झूमे
झुका आसमां भी धरा गात चूमे
पढ़े बाल देखो समाचार कैसे
खुदा नाम सूफी पढ़े देख जैसे
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आदरणीय मंच संचालक, आप सब से प्राप्त सुझाओं के आधार पर एवं छंद विधान के आधार पर अपनी रचनाओं में निम्नानुसार संशोधन हेतु प्रार्थना करता हॅू -
त्रिभंगी छंद
(10-8-8-6 पर यति, अंत में गुरु, जगण कही न हो चरणांत गुरू ही हो)
ये नन्हा पाठक, बनकर चातक, ढूंढ़ रहा है, जल स्वाती ।
हाथों में लेके, पेपर देखे, खबरों की क्या है, परिपाटी ।।
खूब बलत्कारी, भ्रष्टाचारी, और लुटेरे, पेपर में ।
कितने विज्ञापन, दे अपनापन, हमें लुभाये, रेपर में ।।
वे बड़े लफंगे, करते दंगे, मारामारी, गांवों में ।
दो प्रेमी बैठे, देखो ऐठें, लोक-लाज खो, भावों में ।।
क्यो नेता लड़ते, दुश्मन बनते, संसद के गलि-यारों में ।
गुम है खुशहाली, ढूंढ़े माली, नव नूतन अख-बारों में ।।
गीतिका छंद
(14,12 पर यति 3री, 10वी 17वी एवं 24वी मात्रा लघु पदांत गुरू लघु गुरू)
एक बालक देखता है, हाथ ले अखबार को ।
कुछ समझ ना वह सके पर, देख सम आकार को ।।
रंग श्यामल अक्षरों के, श्याम जैसे रंग हैं ।
अंगुली मुख पर दबाये, बाल मन का ढंग हैं ।।
कुण्डलिया छंद
(संक्षिप्त विधान : (दोहा+रोला ) आरम्भ में एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस मात्राएँ होती हैं। दोहे का अन्तिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है तथा इस छन्द का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है. )
बालक ले कर हाथ में, देख रहा अखबार ।
काले काले शब्द हैं, सबके सब बेकार ।।
सबके सब बेकार, समझ वह कुछ ना पाये ।
क्यो पढ़ते हैं लोग, सभी को क्यों यह भाये ।।
मिले कहां कुछ स्वाद, लगे ना यह तो लालक ।
करता सोच विचार ,चबाये उँगली बालक ।।
आपकी प्रस्तुति को यथा निवेदित संशोधित किया गया, आदरणीय रमेश सिंहजी..
आदरणीय सौरभ सर, आयोजन की सफलता हेतु बधाई और आदरणीय शुभ्रांशु भाई जी का आभार त्वरित संकलन में सहयोग हेतु.
अद्भुत आयोजन और त्वरित संकलन, चकित हूँ इस आयोजन के संकलन को देखकर. आयोजन में जैसे छंदों की बौछार हुई है बस कमाल है, माँ सरस्वती का आशीष बरसा है–
आयोजन करता चकित, अद्भुत रचनाकार
सबने मिलकर खूब की, छंदों की बौछार.
बहुत ही कठिन था मगर हो गया
यहाँ काम जैसे स्वयम खो गया
हुए छंद ऐसे कि मन भर गए
दुआ शारदा की सभी तर गए
आयोजन तो सफल हुआ है, सबने जादू कर डाले
आज कलम के जादूगर सब, लिखते होकर मतवाले
खूब हुई हिन्दी की सेवा, जय-जय सबको कहते है
ऐसे रचनाकार सदा ही, सबके दिल में रहते है
यूं सफल आयोजनों का सिलसिला चलता रहा
छंद से मदहोश मन ये रात भर बलता रहा
हूँ चकित ये देखकर क्या छंद सुन्दर से बने
धन्य है माँ भारती और धन्य तेरे सुत जने
हूँ धन्य मैं मुझको मिला है मंच ऐसा मान का
हो छंद की वर्षा जहाँ उपवन खिला हो ज्ञान का
सब सीखते है और सिखलाते सभी को प्यार से
मन जीत लेते है यहाँ समरस सरल व्यवहार से
अब तक के छंदोत्सव में सबसे विशिष्ट और अपने ही तरह के इस अनूठे आयोजन में सहभागिता निभने वाले समस्त रचनाकारों को हार्दिक बधाई.
मैं छंदों का बिलकुल नया अभ्यासी हूँ इसलिए इस आयोजन में सम्मिलित होना मेरे लिए अति आवश्यक था किन्तु सम्मिलित नहीं हो सका इसका मुझे बहुत दुःख है. फिर भी आप सभी रचनाकारों के छंद पढ़कर आनंदित भी हुआ और मंच पर छंदों की बरसात करते आप रचनाकारों की मेहनत और लगन देखकर थोड़ा भावुक भी हुआ. हिन्दी के विविध छंदों पर संभवतः किसी एक आयोजन में इतनी रचनाये पहली बार देख रहा हूँ. माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे.
वाह वाह !
आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपकी अचानक आन पड़ी व्यस्तता से हम सभी परिचित हैं. फिर भी आपकी अनुपस्थिति कितनी चुभती हुई हो सकती है, इसका इस बार अहसास हुआ. आप इस मंच पर एक आदत की तरह हो गये हैं, भाई.
सद्यः समाप्त आयोजन छन्दोत्सव का पचासवाँ अंक था. अतः अबतक सीखे हुए सभी छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत हुईं.
इस क्रम में आपको भी दोहा छन्द, शक्ति छन्द, सार छन्द, गीतिका छन्द, हरिगीतिका छन्द आदि में संवाद बनाता हुआ देखना कितना प्रसन्नतादायी है इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते.
यह भी अवश्य है कि ठीक बारह बजे आयोजन समाप्त हुआ तथा ठीक बारह बजे ही संकलन प्रस्तुत हुआ.
संकलन को मान देने केलिए हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय सौरभ सर,
आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हो गया हूँ.
//ठीक बारह बजे आयोजन समाप्त हुआ तथा ठीक बारह बजे ही संकलन प्रस्तुत हुआ. //
ओबीओ के प्रति आपका समर्पण सदैव मुझे प्रेरित करता है.
नमन
आदरणीय मिथिलेशभाई, दायित्व-निर्वहन के क्रम में हुए प्रयास को अनुमोदित करने केलिए हार्दिक धन्यवाद
शुभ-शुभ
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
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