Posted on May 10, 2017 at 11:47am — 8 Comments
2122, 212, 2122, 212
उससे मुझको सच मे कोई शिकायत भी नही,
हाँ मगर दिल से मिलूँ अब ये चाहत भी नही।
इस बुरुत पर ताव देने का मतलब क्या हुआ,
गर बचाई जा सके खुद की इज्जत भी नही।
अब अँधेरा है तो इसका गिला भी क्या करें,
ठीक तो अब रौशनी की तबीअत भी नही।
आती हैं आकर चली जाती हैं यूँ ही मगर,
इन घटाओं मे कोई अब इक़ामत भी नही।
जुल्म सहने का हुआ ये भी इक अन्जाम है,
अब नजर आँखों में आती बगावत भी नही।
मौलिक व…
Posted on April 20, 2017 at 11:00am — 16 Comments
२१२२/१२१२/२२
हमने अपने ही पाँव काटे हैं,
इस सड़क पर के छाँव काटे हैं।
जो परींदा मजे से रहता था,
उनके तो सारे ठाँव काटे हैं।
दौड़ना चाहती है हर बेवा,
पर ये दुनिया ने पाँव काटे हैं।
वार जिसने भी करना चाहा तो,
उसके तो सारे दाँव काटे हैं।
जानकर जा रहे शहर(१२) तुम भी,
इस शहर(१२)ने ही गाँव काटे हैं।
मौलिक व अप्रकाशित
Posted on April 6, 2017 at 9:00pm — 12 Comments
२२१२/२२१२/२२१२
बाजा़र मे दिल आज़माया कर कभी,
दिल बेचने भी यार आया कर कभी।
दिल टूटने का दर्द अब होगा नही,
इन पत्थरों से दिल लगाया कर कभी।
माना सितारों से बहुत हैं प्यार पर,
जुगनूओं को घर भी बुलाया कर कभी।
दुनिया अमीरों के मुआफ़िक हैं मगर,
कुछ घर ग़रीबी के सज़ाया कर कभी।
बे-शक ये रास्ते हैं तरक़्की़ के मगर,
पैमाना पर इनका बनाया कर कभी।
मौलिक व अप्रकाशित
Posted on March 28, 2017 at 9:00pm — 7 Comments
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
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