For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सानी करतारपुरी
  • Male
  • barcelona
  • Spain
Share on Facebook MySpace

सानी करतारपुरी's Friends

  • arvind ambar
  • Priyanka singh
  • वेदिका
  • Pankaj Trivedi
 

सानी करतारपुरी's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
kartarpur, punjab
Native Place
katarpur
Profession
construction

सानी करतारपुरी's Blog

ग़ज़ल - हम और कोई निकले शिनाख्त में।

              ग़ज़ल 

 

आईनों से मिले थे बड़ी हसरत में,

हम और कोई निकले शिनाख्त में।

क्या आज फिर शह्र में लहू बरसा है?

अख़बार की सुर्खियाँ हैं दहशत में।

मुफ़लिसी क्या इतनी बुरी चीज़ है?            मुफ़लिसी - निर्धनता

आये हैं  दोस्त भी मुख़ालफ़त में।              मुख़ालफ़त - विरोध 

जल्द ही इमारती शह्र उग आएगा,

बो तो दिये गये हैं पत्थर दश्त में।             दश्त - जंगल 

उसे लगा आस्मां मुझे…

Continue

Posted on July 7, 2013 at 3:30am — 1 Comment

ग़ज़ल - 'आवारगी के सफ़र में थके-टूटे ये बदन भी'

               ग़ज़ल

 

 

आवारगी के सफ़र में थके-टूटे ये बदन भी,

मंजिलें तो क्या मिलीं, खो गए मसकन भी।          मसकन - रिहायाशें, वास

सूरज के माथे पे उभरी देखी एक शिकन  भी,

सहरा में उतरे जब कुछ  मोम के बदन भी।           सहरा - रेगिस्तान

ज़िस्म के अंधे कुँयें से कायनात में निकल,

ज़ेहन नाम का रखा है इसमें एक रौज़न भी।          रौज़न - रौशनदान

वो फ़कीर मुतमईन था एक रिदा ही पाकर,

दामन है, ओढ़न-बिछावन है और कफ़न भी।      …

Continue

Posted on July 2, 2013 at 12:00am — 11 Comments

Comment Wall (1 comment)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 11:18pm on July 4, 2013, ajay sharma said…

वो फ़कीर मुतमईन था एक रिदा ही पाकर,

दामन है, ओढ़न-बिछावन है और कफ़न भी।    kamal hai janab...wah wah aur kya 

हाथों के फ़ूल नहीं, छालों भरे तलवे भी देख,

मेरे  सफ़र  में आये हैं सहरा भी, चमन भी।     alfaz nahi hai ,,,,,is sher ke liye 

उसका किरदार यूं मेरे लम्हों पर हावी रहा,

मेरी बीवी मुझे लगी माँ भी कहीं बहन भी।       bahut  hi umda  ,,,,,

एक बार बेलिबास किया गया था शह्र में मुझे,

मेरा नंग ढंक न पाये फिर कभी पैराहन भी।           पैराहन - वस्त्र 

वक़्त ने हादसों के खंज़र जिधर भी फैंके,

कहीं रहा, ज़द में आ ही गया मेरा बदन भी।           kya baat hai ,,,mujhe ik sher yaad gaya -----

                                                               aur  bhi ab bad gayi dushyariya,n mere safar  

                                                                ki ,,,paththro,n  ko dhondhti firti meri kismat

                                                                diwani 

 

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
3 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
10 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
23 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
23 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service