पापा मम्मी आप भी आओ
उन पुरानी गलिओं से फिर
ख्याल अपने दिल तक आये
आँगन में थे खिलते उन कलियों से
सवाल अपने दिल तक आये
दौरते आते सारे किस्से
कोई बैठकर मुझे सुनाओ
आँखे तरस रही दर्शन को
पापा मम्मी आप भी आओ
गहरी जाती उन घाटीयों से
संकराति गूंजे घूम रही हैं
चट्टानों पे रेत की बूंदे
अब भी मानो झूम रही हैं
भूलते जाते उन पन्नो से
पुरानी कुछ गजलें सुनाओ …
Posted on November 3, 2012 at 12:27pm — 3 Comments
भंगुरता सी प्रतीत हो रही
जब भी जिंदगी को सोचता हूँ
रोज की जद्दोजहद में फंसा मैं
मस्तिष्क पटल को नोचता हूँ
उतार चढ़ाव से उतना नहीं परेशान
लेकिन कुछ छूट रहा सा लग रहा है
डग लम्बे भर रहा लेकिन
मंजिल और दूर सी लग रही है
बहुत हिम्मत करके कभी कभी
आँगन में नए पौधे लगाता हूँ
बिखरे हुए सपनो को सामने करके
नयी दिशा को पग बढ़ाता हूँ
लेकिन परिवार और समाज में बंधा
मुल्ला की…
Posted on June 5, 2012 at 5:30pm — 4 Comments
बन गया मुसाफिर इस दुनिया में
सुख दुःख की लाँघ सीमाओं को
सुबह से चलता चलता अब
सुन रहा रात की धमनी शिराओं से
कोई पुकारता है दूर चट्टानों से
कोई ढूंढ़ता है मुझे मेरे बहानो से
उन झुरमुटों को साथ ले चला आया
मैं अब किस दिशा को बढ़ चला हूँ
कंधे पर भार लगते नहीं हैं
कोई पूछे सवाल कहारों से
सुबह से चलता चलता अब
सुन रहा रात की धमनी शिराओं से
रोक कर कई पूंछते हैं
शहर किधर को…
Posted on February 4, 2012 at 8:07pm
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…