2122 12 12 22
बदला बदला सा घर नज़र आया।
जब कभी मैं कही से घर आया।
बस तुझे देखती रही आँखें।
हर तरफ तू ही तू नज़र आया।
छोड़ कर कश्तियाँ किनारे पर।
बीच दरिया में डूब कर आया।
यूँ हज़ारो हैं ऐब तुझमे भी।
याद मुझको तेरा हुनर आया।
नींद गहरी हुई फिर आज "कमाल"।
ख्वाब उसका ही रात भर आया।
मौलिक एवम अप्रकाशित
केतन "कमाल"
Posted on November 24, 2014 at 5:15pm — 21 Comments
1222/1222/122
खुदा से पूछता ये बात कब तक।
कि सुधरेंगे मिरे हालात कब तक।।
मैं शर्मा हूँ कि वर्मा हूँ कि क्या हूँ
भला पूछोगे मेरी ज़ात कब तक।।
ज़माने कम से कम ये तो बता दे।
मुझे मिलती रहेगी मात कब तक।।
उजालों से हमेशा पूछता हूँ।
रहेगी ये अँधेरी रात कब तक।।
मेरे आकाश से होती रहेगी।
सुनो तेज़ाब की बरसात कब तक।।
वो देखेगा मुझे मुड कर कभी क्या।
वो समझेगा मिरे जज़्बात कब…
ContinuePosted on September 3, 2014 at 7:30pm — 17 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
Comment Wall
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online