स्वागत गणतंत्र
प्रो. सरन घई, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान
स्वागतम सुमधुर नवल प्रभात,
स्वागतम नव गणतंत्र की भोर,
स्वागतम प्रथम भास्कर रश्मि,
स्वागतम पुन:, स्वागतम और।
जगा है अब मन में विश्वास,
कि सपने पूरे होंगे सकल,
कुहुक कुहुकेगी कोयल कूक,
खिलेगा उपवन का हर पोर।
युवा होती जायेगी विजय,
सुगढ़ होता जायेगा तंत्र,
फैलती जायेगी मुस्कान,
विहंसता जायेगा…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on January 25, 2013 at 8:52am — 8 Comments
दुनिया केवल पैसे की
प्रो. सरन घई, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा
ऐसे की ना वैसे की, ये दुनिया केवल पैसे की।
ना कीमत है इसे धर्म की,
ना कीमत है इसे कर्म की,
इसको तो परवाह है केवल बिरला, टाटा जैसे की।
ना साधू ना जोगी पुजता,
ना ईश्वर ना अल्ला रुचता,
यहाँ तो केवल जय-जय होती ठन-ठन बजते पैसे की।
समाचार ना लेख सुहाते,
ना गीता ना वेद ही भाते,
यहाँ लोग लिटरेचर पढ़ते फ़िल्मी…
ContinueAdded by Prof. Saran Ghai on January 24, 2013 at 6:51am — 3 Comments
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