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Shashiprakash saini's Blog – January 2012 Archive (4)

कोयलिया जब गाती है

चल झूठ रूठना है तेरा

आंखें सब बतलातीं है

कोयलिया जब गाती है

याद मीत की आती है

 

आँखों से अब ना आस गिरा

बातों पे रख विश्वास जरा

जाने दे मत रोक मुझें

सर पे दुनियां दारी है

कोयलिया जब गाती है

याद मीत की आती है

 

न तू भूलीं न मैं भुला

जब झूलें थे सावन झुला

मौसम अब के बरसातीं है

कोयलिया जब गाती है

याद मीत की आती है

 

चलतें थे तट पे साथ प्रिये

नटखट हाथों में हाथ…

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Added by shashiprakash saini on January 19, 2012 at 4:00am — 2 Comments

छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से प्रभावित होकर मैंने भी  छन्न पकैया  में  कुछ लिखने का प्रयास किया है. मेरी मूल रचना में कुछ कमियाँ थी जो योगराज जी ने सुधारी, योगराज सर आपका बहोत बहोत शुक्रिया. वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !

 

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छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी,

कहने को युवराज है, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१||

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छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई

कुर्सी पे हाकिम जो बैठा , शुतुरमुर्ग है भाई…

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Added by shashiprakash saini on January 4, 2012 at 2:30pm — 17 Comments

सवाल करता बहुत देता उसे कोई जवाब नहीं



सवाल करता बहुत देता उसे कोई जवाब नहीं 

पढ़े कैसे वो दुनिया ने दी उसे कोई किताब नहीं



स्कूल की खिडकियों पे लगाए  कान सुनता है 

अगर अन्दर पनपते फूल क्या वो गुलाब नहीं 



जूठे बर्तन धोते हुए पूरा बचपन बिताता है 

लोग…

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Added by shashiprakash saini on January 2, 2012 at 12:00am — 6 Comments

तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है

तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है

जो आइने हमने बनाए है वो अलग बात कहे

पर उसकी तस्वीर में तुभी मुझसा दीखता है

तेरा अक्स मेरे अक्स से कितना मिलता है

 

वो अपने नियम शख्स दर शख्स नहीं बदलता है

उसके तराजू में सब एकसा तुलता है

भेद करे तो करे कैसे वो

न तो उसको तन दीखता है

न धन दीखता है

उसके दर्पण में बस मन…

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Added by shashiprakash saini on January 1, 2012 at 1:00pm — 2 Comments

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