प्रिये,
सच तो ये है
जब तक मै रहूंगा ‘आदम’
और तुम ‘ईव’
तब तक हम खाते रहेंगे ‘सेब’
भोगते रहेंगे 'नर्क'
इससे तो बेहतर है
'मै' बन जाउं 'जंगल'
घना ओर बियाबान
तुम बहो उसमे
'नदी' सा हौले - हौले
या फिर मै
टंग जाउं आसमान मे
चॉद सा
और तुम बनो
मीठे पानी की झील
सांझ होते ही मै
उतर आउं जिसमे
चुपके से,
हिलूं। तैरूँ। इतराऊँ
सुबह होते ही फिर
टंग जाऊँ आसमान मे
या तो,
ऐसा करते हैं
मै बन जाता हूं…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on January 28, 2016 at 11:48am — 7 Comments
सुना तो यह गया है, वह पत्थर की देवी थी। पत्थर की मूर्ति। संगमरमर का तराशा हुआ बदन। एक - एक नैन नक्श, बेहद खूबसूरती से तराशे हुए। मीन जैसी ऑखें ,सुराहीदार गर्दन, सेब से गाल। गुलाब से भी गुलाबी होठ। पतली कमर। बेहद खूबसूरत देह यष्टि। जो भी देखता उस पत्थर की मूरत को देखता ही रह जाता। लोग उस मूरत की तारीफ करते नही अघाते थे। सभी उसकी खूबसूरती के कद्रदान थे। कोई ग़ज़ल लिखता कोई कविता लिखता। मगर इससे क्या। . .. ? वह तो एक मूर्ति भर थी। पत्थर की मूर्ति।
सुना तो यह भी गया था, कि वह हमेसा से…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on January 13, 2016 at 1:00pm — 7 Comments
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