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मै एक पेड़ होता और तुम होती गिलहरी

काश,
मै एक पेड़ होता
और तुम होती
गिलहरी
जो अपनी बटन सी
चमकती आँखों से
इधर - उधर देखती
ऊपर चढ़ती और कभी उतरती
तुम्हे देखता
चुक -चुक करते हुए हरी पत्तियों को
अपने मुहे में दबाये हुए फुदकते हुए
और फिर ज़रा सी आवाज़ या
आहट से भाग के मेरे तने की खोह में छुप जाना
जैसे, तुम दुपुक जाती थी
मेरी बाँहों में,
उन दिनों जब हम तुम दोनों थे
एक दूजे के गहन प्रेम में
(हलाकि मै तो आज भी हूँ
तुम्हारे प्रेम में, तुम्हारा पता नहीं )

ओ ! मेरी प्रिये क्या ऐसा हो सकता है किसी दिन ?

कि तुम बन जाओ गिलहरी
और मै बन जाऊँ पेड़

मुकेश इलाहाबादी ----------------

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 627

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Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 17, 2017 at 11:46am

rachna pasandgee ke liye dheorn badhaee - laxman jee Kalpana ji- girish bhandari jee aur sabhee mtira

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 14, 2017 at 7:37pm
सुंदर रचना के लिए मुकेश जी हार्दिक बधाई ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 14, 2017 at 5:44pm

अच्छी कविता रची है आदरणीय , हार्दिक बधाई आपको |


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2017 at 9:12pm

आदरणीय मुकेश भाई , अच्छी कविता रची है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by ARUNESH KUMAR 'Arun' on September 12, 2017 at 9:08pm

सादर बधाई । बहुत अच्छी कविता है। 

Comment by SALIM RAZA REWA on September 11, 2017 at 10:07pm
सुंदर रचना के लिए मुकेश जी बधाई,
Comment by Mahendra Kumar on September 11, 2017 at 8:17pm

आ. मुकेश जी, बहुत ही बढ़िया लगी आपकी कविता. हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.

Comment by Samar kabeer on September 11, 2017 at 7:37pm
जनाब मुकेश श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कुछ जगह टंकण त्रुटियां हैं,देख लें ।

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