For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Manan Kumar singh's Blog – January 2017 Archive (5)

गजल( आज तुम यह क्या किये बैठे हुए हो)

 2122  2122  2122 

आज तुम यह क्या किये बैठे हुए हो

बेवजह का गम लिये बैठे हुए हो।1



कौन सुनता है यहाँ कुछ बात ढब की

दिल नसीहत को दिये बैठे हुए हो।2



और होता मौन का मतलब यहाँ पर

क्या पता क्यूँ मुँह सिये बैठे हुए हो।3



बदगुमानों की यहाँ बल्ले हुई बस

आशिकी का भ्रम जिये बैठे हुए हो।4



एक से बढ़ एक नगमे बुन रहे…

Continue

Added by Manan Kumar singh on January 29, 2017 at 12:26pm — 16 Comments

गजल( देखिये सबको रिझातीं टोपियाँ)

    2122   2122   212 

देखिये सबको रिझातीं टोपियाँ

नाच कितनों को नचातीं टोपियाँ।1



आपकी धोती कहाँ महफूज है?

फाड़कर कुर्ते बनातीं टोपियाँ।2



जो नहीं सोचा कभी था आपने

रंग वैसे भी दिखातीं टोपियाँ।3



पीठ पर दे हाथ वे पुचकारतीं

पेट में ख़ंजर चुभातीं टोपियाँ।4



दोस्ती का दे हवाला हर बखत

दुश्मनी फिर-फिर निभातीं…

Continue

Added by Manan Kumar singh on January 26, 2017 at 9:51am — 6 Comments

गजल(तिरछी हो जातीं नजरें हैं)

22 22 22 22
तिरछी हो जाती नजरें हैं
अश्कों की कटती फसलें हैं।1

धड़कन माफिक साँसें चलतीं
प्यास बनी ये दो पलकें हैं।2

लहराती बदली-बाला तू,
उड़ जाती, फिर सपने टें हैं।3

खूब जमाये रंग सभी ने
अल्फाजी उनकी फजलें हैं।4

लोग लिये हैं संग विधाएँ
अपने पास महज गजलें हैं।5
.

मौलिक व अप्रकाशित@

Added by Manan Kumar singh on January 14, 2017 at 10:30am — 13 Comments

बेटियाँ(गजल)

2122 2122 212



चोटियों को हैं चिढातीं बेटियाँ

अब गगन को भी लजातीं बेटियाँ।1



हो रहे रोशन अभी घर देखिये

रूढ़ियों को तो खपातीं बेटियाँ।2



अब नहीं काँटे चुभेंगे पाँव में

रास्ते फिर से बनातीं बेटियाँ।3



बाँटते- चलते यहाँ सब घर अभी

टूटने से तो बचातीं बेटियाँ।4



फूल की ख्वाहिश पिरोना छोड़िये

शूल को माथे चढातीं बेटियाँ।5



साफ दामन तो रहा है आपका

कालिमा कितना उठातीं बेटियाँ?6



बन धरा जो आसमां को ढ़ो… Continue

Added by Manan Kumar singh on January 9, 2017 at 7:00am — 8 Comments

गजल((दिन बदलते....)

2122 2122 212
दिन बदलते देर लगती है?,बता।
भेड़ बनकर घूमता है भेड़िया।1

लूटकर सब ले गया हर बार ही
माँगता है जो बचा फिर से मुआ।2

मुंतजिर हम रह गये होती नजर
कह रहा बस चाहिए अपनी दुआ।3

दूध पीकर अर्चना का बेधड़क
हो गया अजगर बड़ा घर-घर छुआ।4

हर दफा इकरार करता बेशरम
खाल फेंकी,अब जहर जाता रहा।5
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Added by Manan Kumar singh on January 8, 2017 at 12:30pm — 11 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
11 hours ago
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी, अपने शीर्षक को सार्थक करती बहुत बढ़िया लघुकथा है। यह…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service