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Sushil Sarna's Blog – January 2025 Archive (6)

दोहा सप्तक. . . धर्म

दोहा सप्तक. . . धर्म

धर्म बताता जीव को, पाप- पुण्य का भेद ।

कैसे जीना चाहिए, हमें सिखाते वेद ।। 

 

दया धर्म का मूल है, यही सत्य अभिलेख  ।

करे अनुसरण जीव जो, बदले जीवन रेख ।।

 

सदकर्मों से है भरा, हर मजहब का ज्ञान।

चलता जो इस राह पर, वो पाता पहचान ।।

 

पंथ हमें संसार में, सिखलाते यह  मर्म ।

जीवन में इन्सानियत, सबसे  उत्तम कर्म ।।

 

चलते जो संसार में, सदा धर्म की राह ।

नहीं निकलती कष्ट में, उनके मुख…

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Added by Sushil Sarna on January 18, 2025 at 1:00pm — 2 Comments

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार

 

माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार ।

संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार ।। 

 

हार सदा ही जीत का, करती मार्ग प्रशस्त ।

डरा हार से जो हुआ, उसका सूरज अस्त ।।

 

जीत हार के राग  में, उलझा जीवन गीत ।

दूर -दूर तक जिंदगी, ढूँढे सच्चा मीत ।।

 

कभी हार है जिंदगी, कभी जिंदगी जीत ।

जीवन भर होता ध्वनित, इसमें गूँथा गीत ।।

 

मतलब होता हार का, फिर से एक प्रयास ।

हर कोशिश में जीत की,…

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Added by Sushil Sarna on January 16, 2025 at 3:00pm — 2 Comments

शर्मिन्दगी - लघु कथा

शर्मिन्दगी ....

"मैने कहा, सुनती हो ।"रामधन ने अपनी पत्नी को आवाज देते हुए कहा ।

"क्या हुआ, कुछ कहो तो सही ।"

"अरे होना क्या है । अपने पड़ोसी रावत जी की बेटी संजना ने अपने ब्वाय फ्रेंड के साथ भाग कर कोर्ट मैरिज करके इस उम्र में अपने माँ-बाप को शर्मसार कर दिया ।बेचारे! अच्छा हुआ, अपनी कोई बेटी नही केवल एक बेटा राहुल है ।" रामधन ने कहा।

इतने में डोर बेल बजी टननन ।

"कौन? " रामधन जी दरवाजे खोलते हुए बोले ।

" रामधन जी, अपने संस्कारवान बेटे को…

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Added by Sushil Sarna on January 15, 2025 at 1:12pm — 6 Comments

दोहा सप्तक. . . पतंग

दोहा सप्तक . . . . पतंग

आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।

बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।। 

 

बंधी डोर से प्यार की, उड़ती मस्त पतंग ।

आसमान को चूमते, छैल-छबीले रंग ।।

 

कभी उलझ कर लाल से, लेती वो प्रतिशोध ।

डोर- डोर की रार का, मन्द न होता क्रोध ।।

 

नीले अम्बर में सजे, हर मजहब के रंग ।

जात- पात को भूलकर, अम्बर उड़े पतंग ।।

 

जैसे ही आकाश में, कोई कटे पतंग ।

उसे लूटने के लिए, आते कई दबंग…

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Added by Sushil Sarna on January 14, 2025 at 8:30pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .जीवन

दोहा पंचक. . . . जीवन

पीपल बूढ़ा हो गया, झड़े पीत सब पात ।

अपनों से मिलने लगे, घाव हीन आघात ।।

ठहरी- ठहरी  जिन्दगी, देखे बीते मोड़ ।

टीस छलकती आँख से,पल जो आए छोड़ ।।

विचलित करता है सदा, सुख का बीता काल ।

टूटे से जुड़ती नहीं, कभी वृक्ष से डाल ।।

अपने ही देने लगे, अब अपनों को मात ।

मिलती है संसार में, आँसू की सौग़ात ।।

पल - पल ढलती जिंदगी, ढूँढे अपना छोर ।

क्या जाने किस साँस की, अन्तिम होगी भोर ।।

सुशील सरना / 3-1-25

मौलिक एवं…

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Added by Sushil Sarna on January 3, 2025 at 8:30pm — No Comments

दोहा पंचक. . . संघर्ष

दोहा पंचक. . . संघर्ष

आज पुराना हो गया, कल का नूतन वर्ष ।

फिर रोटी के चक्र में, डूबा सारा हर्ष ।।

नया पुराना एक सा, निर्धन का हर वर्ष ।

उसके माथे तो लिखा, रोटी का संघर्ष ।।

ढल जाता है साँझ को, भोर जनित उत्साह ।

लेकिन रहती एक सी, दो रोटी की चाह ।।

किसने जाना काल का, कल क्या होगा रूप ।

सुख की होगी छाँव या, दुख की होगी धूप ।।

चार घड़ी का हर्ष फिर , बीता नूतन वर्ष ।

अविरल चलता है मगर, जीवन का संघर्ष ।।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on January 2, 2025 at 2:52pm — No Comments

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