For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रदीप देवीशरण भट्ट's Blog – January 2020 Archive (9)

बिन तेरे

तेरे बिन है घर ये सूना
मेरे मन का कोना सूना
समझो ना ये चार दिनो का
प्यार हमारा काफ़ी जूना*!

घर क़ी देहरी कैसे ये लांघूँ
मैं छलना ना ख़ुद को जानूं
लोगों का तो काम है कहना
मैं तुमको बस अपना मानूं! !

मुझे आस तुम्हारे मिलने क़ी है
और साथ में चलने क़ी है
तब ये सूनापन ना अखरे
बात नज़रिया बदलने क़ी है! !


* पुराना (मराठी शब्द)
- प्रदीप देवीशरण भट्ट - 28:01:2020

मौलिक व अप्रकाशित

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 28, 2020 at 3:30pm — 1 Comment

पटरियों से सीख

इक तेरी है इक मेरी है

ढल के आग में ये बनी हैं

जैसे तुम से तुम बने हो

वैसे मैं से मैं भी बनीं हूँ

 

आ चल बैठ यहीं हम देखें

एक दूजे से कुछ हम सीखें

अलग है माना फिर भी संग संग

मिलजुल कर के रहना सीखें

 

शहरों क़ी फिर चकाचौंध हो

जंगल में या कहीं ठौर हो

साथ ना छोडे एक दूजे का

ताप हो कितना या के शीत हो

कहीं हैं सीधी कहीं ये टेढी

दिन हो या हो रात अंधेरी

कर्म पथ से कभी ना डिगती

ना…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 27, 2020 at 1:00pm — 1 Comment

सहर हो जाएगा

जिस्म तो नश्वर है, ये मिट जाएगा

प्रेम पर अपना अमर हो जाएगा

 

सोच मत खोया क्या तूने है यहाँ

एक लम्हा भी दहर हो जाएगा

 

माना ये छोटा है पर धीरज तो धर

बीज एक दिन ये शजर हो जाएगा

 

भाग्य में जितना लिखा था मिल गया

अपना इसमें भी गुजर हो जाएगा

 

जीस्त बेफिक्री में काटी है मगर

मौत का उस पर असर हो जाएगा

 

तिरगी से डर के क्यूँ रहना भला

आज या फ़िर कल सहर हो जाएगा

 

सीख कुछ मेरे…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 16, 2020 at 2:30pm — 1 Comment

हम पंछी भारत के

जो हैं भूखे यहाँ ठहर जाएँ

शेष सब संग संग उड़ जाएँ

कमी नहीं यहाँ पे दानों क़ी

हो जो बरसात मेरे घर आएँ

पेट भरता है चंद दानों से

फ़िर क्यूँ सहरा में घूमने जाएँ

लोग भारत के बहुत अच्छे हैं

ख़ुद से पहिले हमें हैं खिलवाएँ

मार कंकर भगाते हैं बच्चे

फिर वही प्यार से हैं बुलावाएँ

प्रचंड गर्मी में जब तडपते हैं

पानी हमको यहीं हैं पिलवाएँ

खेत खलिहान सौंधी सी ख़ुशबू

छोड़ मिट्टी क़ो 'दीप' क्यूँ…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 9, 2020 at 5:30pm — 3 Comments

अहसास

क्या तुम्हें याद है प्रिय

जब मैं औऱ तुम बस यूँ ही

नदी के किनारे चलते चलते

एक छोर से दूसरे छोर तलक

एक दूजे का हाथो में लेकर हाथ

टहलते रहते थे नंगे पाँव!

 

तुम जल्दी ही थक जाती थीं

औऱ बैठ जाया करती थीं

बेंच पर दोनों हाथ टिकाकर

और टिका देती थीं सर बेंच पर

औऱ मैं यूँ ही टहलता रहता था

सिगरेट के कशों  के साथ !

 

हम दोनों घंटो निहारते रहते थे

एक दूसरे के चेहरे क़ो अपलक

कभी विस्तृत नीले…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 8, 2020 at 12:00pm — 6 Comments

अमर प्रेम

इससे पहले के तुम दर्पण निहारों

मैं इन केशों में इक वेणी लगा दूँ

 

लो रख दी बाँसुरी धरती पे मैंने

तुम्हें गाकर के मैं लोरी सुला दूँ

 

समीरण रुक गई है बहते बहते

कहो तो शाख पेडो की हिला दूँ

 

पवन से वेग की इच्छा अगर है

कहो तो अंक में लेकर झूला दूँ

 

सुगंधित हैं सुमन उपवन के सगरे

बताओ कौन सा मैं पुष्प ला दूँ

 

घटा आकाश में छाने को व्याकुल

कहो तो नयनों में तुमको बिठा…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 7, 2020 at 1:30pm — 6 Comments

"तुम्हारे लिए"

तुम यूँ ही बीच राह में

रोज़ तरूवर क़ी छाँव में

मुझे यूँ ही रोक लेते हो 

और मैं भी रुक जाती हूँ

क्यों कि मैं भी रहती हूँ अधीर

तुमसे मिलकर बातें करने को!

 

तुम्हारा यूँ एकटक निहारना

मेरे दिल को भाता है बहोत*

मैं भी देखने लगती हूँ तुम्हें

सीधी कभी तिरछी नज़रों से

तुम मुस्कुरा देते हो शरारत से

मैं शर्माकर कुरेदती हूँ ज़मीन  

 

पर ये सब भी कब तलक

जब ये कुहासा नहीं होगा

बढ़…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 3, 2020 at 12:43pm — 2 Comments

मनुष्य और पयोनिधि

आओ और निकट से देखो

हिलोरें लेते इस पारावार को

हमारा जीवन भी ऐसा ही है

नीर जैसा स्वच्छ और निर्मल

 

जब पयोधि क़ी लहरें छूती हैं

रेत क़ी फ़ैली हुई कगार को

तब वह समेट लेती सब कुछ

और ले जाती है पयोनिधी में

 

हम मनुष्य भी तो ऐसे ही हैं

जब हम प्रेम में होते हैं तब

ढूंढते रहते हैं बस एक साहिल

ताकि समेट सकें स्वयं में सब कुछ

 

किंतु उदधि और मनुज क़ा प्रेम

उदर में ज्य़ादा काल नहीं…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 2, 2020 at 12:30pm — 6 Comments

उन्नीस-बीस (2019-2020) नूतन वर्ष

छोटी बातों से तू  इतना, विचलित क्यूँ कर होता है

जीवन धार नदी की, इसमें उन्नीस बीस तो होता है

दुनियाँ का दस्तूर है, ज्यादा  रोते को रुलवाने का

कितना समझाया तुझको तू, फिर भी नयन भिगोता है

जाने वाले साल को सारे, दुख अपने तू अर्पण कर दे                                                                                                              तेरे भाग्य में फिर वो कैसे, बीज खुशी के बोता है

अस्त हुआ उन्नीस का भानु, बीस का दिनकर…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 1, 2020 at 11:00am — 10 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service