चाहे करता भाग्य ही, जीवन भर संयोग
उच्च कर्म से भाग्य भी, बदला करते लोग।१।
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सद्कर्मों की चाल से, माता देकर त्राण
गर्भकाल में जीव का, करे भाग्य निर्माण।२।
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कर्म भाग्य दोनों रहें, जब बन पूरक रोज
पाते दुख के गाँव में, मानव तब सुख खोज।३।
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सदा कर्म ही जीव का, देता है फल जान
उद्यत लेकिन कर्म को, भाग्य करे नादान।४।
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गर्भकाल है स्वर्ग या, जीवन से बढ़ नर्क
या लेखा है भाग्य का, अपने अपने तर्क।५।
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गर्भ काल सब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2025 at 1:30pm — No Comments
बेटी को बेटी रखो, करके इतना पुष्ट
भीतर पौरुष देखकर, डर जाये हर दुष्ट।१।
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बेटा बेटा कह नहीं, बेटी ही नित बोल
बेटा कहके कर नहीं, कम बेटी का मोल।२।
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करती दो घर एक है, बेटी पीहर छोड़
कहे पराई पर उसे, जग की रीत निगोड़।३।
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कर मत कच्ची नींव पर, बेटी का निर्माण
होता नहीं समाज का, ऐसे जग में त्राण।४।
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बेटी को मत दीजिए, अबला है की सीख
कर्म उसी के गेह से, रहे चाँद तक चीख।५।
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बेटों को भी दीजिए, कुछ ऐसे सँस्कार
बेटी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 7, 2025 at 1:27pm — No Comments
नाम भले पहचान है, किन्तु बड़ा है कर्म
है जीवन में वो सफल, जो समझा ये मर्म।१।
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महिमा कहते कर्म की, जग में संत कबीर
नाम-नाम ही जो रटे, समझो सिर्फ फकीर।२।
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नामीं द्विज भी रह गये, कर्म फला रैदास
पुण्य कर्म आशीष को, गंगा माई पास।३।
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केवल कर्म बखानता, जग में है इतिहास
सूरज जैसा कर्म ही, देता नाम उजास।४।
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दबे कोख इतिहास की, कर्महीन जो गाँव
किन्तु उजागर हो गये, सदा कर्म के पाँव।५।
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लिखे कर्म की लेखनी, चमक चाँदनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2025 at 5:40pm — No Comments
शीत लहर की चोट से, जीवन है हलकान
आँगन जले अलाव तो, पड़े जान में जान।१।
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मौसम का क्या हाल है, पर्वत पूछे नित्य
ठिठुर चाँद सा हो गया, क्या बोले आदित्य।२।
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धुन्ध फैलती जा रही, ठिठुरन है चहुँ ओर
गर्म लहू का देह में, शिथिल पड़ गया जोर।३।
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चला न पलभर सिर्फ रख, एसी-कूलर बंद
तन कहता है खूब ले, कम्बल का आनन्द।४।
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फैला चादर धुन्ध की, हो मौसम गम्भीर
कहे सुखाओ रे! इसे, मिलकर सूर्य समीर।५।
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पीते गटगट चाय सब, पहने मोजे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2025 at 2:23pm — No Comments
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