सभी विद्वजनों से इस्लाह के लिए -
वज्न 2122 / 2122 / 2122 / 212 (2121)
कोई तुझसा होगा भी क्या इस जहाँ में कारसाज
डर कबूतर को सिखाने रच दिए हैं तूने बाज
तीरगी के करते सौदे छुपछुपा जो रात - दिन
कर रहे हैं वो दिखावा ढूँढते फिरते सिराज
ज्यादती पाले की सह लें तो बिफर जाती है धूप
कर्ज पहले से ही सिर था और गिर पड़ती है गाज
जो ज़मीं से जुड़ के रहना मानते हैं फ़र्ज़-ए-जाँ
वो ही काँधे को झुकाए बन…
ContinueAdded by vandana on February 1, 2014 at 7:30am — 25 Comments
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