2122 2122 122
दिल में नफ़रत होठों पे मुस्कुराहट
सबके वश में है क्या ऐसी बनावट?
कान मेरी ओर मत कीजिएगा
दिल जो टूटे तो नहीं होती आहट
आसमाँ में रंग बिखरेगा फिर से,
कह रहा था स्वप्न, मैंने कहा; हट
मान जा मन छोड़ उद्दंडता अब
दौड़ना अच्छा नहीं, ऐसे सरपट?
कोई जादू तेरी आँखों में तो है
वर्ना खुलता ही कहाँ ये मनस-पट
मौलिक अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 17, 2018 at 1:28pm — 3 Comments
2122 2122 2122 212
स्वप्न का जो नाभिकी ये संलयन प्रारम्भ है
क्या किसी तारे का फिर से नव सृजन प्रारम्भ है
इस जगत को श्रेष्ठतम रचना समर्पित कर सकूँ
प्रति निशा मसि शब्द निद्रा का हवन प्रारम्भ है
मन-जगत घर्षण से अंतस में अनल जो है प्रकट
भावनाओं का उसी से आचमन प्रारम्भ है
लेखनी नें स्वयं से संकल्प इक धारण किया
एकता के भाव का सो संवहन प्रारम्भ है
चक्षुओं पर जो लगा कर घूमते चश्मा उन्हें
ताप…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 5, 2018 at 5:07pm — 14 Comments
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