गीत
कंटक ही कंटक हैं, जीवन के पथ में !
प्राणों पर संकट है, काया के रथ में !
क्षण-क्षण यह चिंतन
जीवन बीहड़ वन !
इस वन में एकाकी
प्राणों का विचरण…
Added by नन्दकिशोर दुबे on February 27, 2018 at 11:30am — 7 Comments
रात गहरी, घोर तम छाया हुआ !
हार कर बैठा हूँ --- पथराया हुआ !
यूँ पड़ा हूँ, लोकपथ के तीर पर
जैसे प्रस्तर-खण्ड ठुकराया हुआ !
दूर जुगनूँ एक दिपता आस का
शेष सब सुनसान, थर्राया हुआ !…
ContinueAdded by नन्दकिशोर दुबे on February 17, 2018 at 5:08pm — 4 Comments
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