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Prof. Saran Ghai's Blog – February 2012 Archive (5)

सीखा है

सूखे पेड़ों से मैंने डटकर के जीना सीखा है,

हरे-भरे पेड़ों से मैंने झुककर जीना सीखा है,

मस्त घूमते मेघों ने सिखलाया मुझको देशाटन,

और बरसते मेघों से सब कुछ दे देना सीखा है।

 

हर दम बहती लहरों से सीखा है सतत्‍ कर्म करना,

रुके हुए पानी से मैंने थम कर जीना सीखा है,

जलती हुई आग से सीखा है जलकर गर्मी देना,

जल की बूंदों से औरों की आग बुझाना सीखा है।

 

सागर से सीखा है सागर जितना बड़ा हृदय रखना,

धरती से सब की पीड़ा का भार उठाना…

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Added by Prof. Saran Ghai on February 18, 2012 at 10:06pm — 4 Comments

चले गये

बहुत सताया हमको अब वो दिन अंधियारे चले गये,

हमको गाली देने वाले गाली खाकर चले गये।

 

बहुत मचाई गुंडागर्दी तुमने शहरों-गावों में,

बहुत चुभाए कांटे तुमने धूप से जलते पांवों में,

आंधी जब हम लेकर आए तिनके जैसे चले गये।

 

जाने कितनों को रौंदा-कुचला था अपने पैरों में,

कितनों की इज्जत लूटी थी सामने अपने-गैरों में,

जब हमने हुंकार भरी तो पूंछ दबाकर चले गये।

 

बहुत विनतियां कीं थीं हमने लाख दुहाई दी तुमको,

रो रो कर…

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Added by Prof. Saran Ghai on February 15, 2012 at 7:55pm — 1 Comment

चले गये

आये थे हमसे लड़ने को पर शरमा कर चले गये,

जरा हाथ ही पकड़ा और वो हाथ छुड़ा कर चले गये।

 

छिप-छिप कर चिलमन से तुमने बहुत इशारे किये प्रिये,

ज़ख्म दिये हर बार जो तुमने सहा किये और सिया किये,

कस कर जरा कलाई थामी दैया कह कर चले गये।

 

बहुत किया बदनाम ’सरन’ को, सबसे मेरी बातें कीं,

एक एक का हाल बताया हमने जो मुलाकातें कीं,

हमने जब कुछ कहना चाहा, हया दिखा कर चले गये।

 

खूब पिटाया तुमने हमको यारों-रिश्तेदारों से,

खूब…

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Added by Prof. Saran Ghai on February 14, 2012 at 5:57am — No Comments

पत्नियाँ

डूबती इक नाव होती आदमी की जिंदगी,

ग़र न होतीं जिंदगी में मुस्कुराती पत्नियाँ।

 

बेसुरा संगीत होती आदमी की जिंदगी,

ग़र न होतीं जिंदगी में गुनगुनाती पत्नियाँ।

 

गूंजता अट्टहास होती आदमी की जिंदगी,

ग़र न होतीं जिंदगी में  खिलखिलाती पत्नियाँ।

 

मौन सा आकाश होती आदमी की जिंदगी,…

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Added by Prof. Saran Ghai on February 7, 2012 at 4:42am — 11 Comments

हाईटैक भक्त – हाईटैक भगवान

भगवन कहां छिपे हो मुझको काल करो,

काल नहीं ना सही, प्रभु मिस काल करो ।

इक पल में ही काल रिटर्न करूँगा मैं,

किसी बात पर प्रभु ना ध्यान धरूँगा मैं,

अब तो मिलने की प्रभु कोई चाल करो।     (भगवन कहां छिपे …)

 

अगर लाँग डिस्टेंस है तो कुछ बात नहीं,

चैटिंग का पैकेज तो मंहगी बात नहीं,

डेटिंग, चैटिंग कुछ तो सूरत-ए-हाल करो।   (भगवन कहां छिपे…)

 

फ़ोन नहीं तो इंटरनैट पर आ जाओ,

स्काइप पे आकर प्रभुवर दरश दिखा…

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Added by Prof. Saran Ghai on February 4, 2012 at 8:00pm — 3 Comments

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