आंधी हैं हवा हैं
बंधनों में क्या हैं
ये उफनता दरिया हैं
किनारे तोड़ निकला हैं
मस्ती में मस्तमौला हैं
मुश्किल में हौसला हैं
अपनी पे आजाए तो जलजला हैं
ये आज का युवा हैं
कभी बेफिक्री का धुआँ हैं
कभी पानी का बुलबुला हैं
कभी संजीदगी से भरा हैं
ये आज का युवा हैं
पंखों को फडफडाता हैं
पेडों पे घोंसला बनाता है
अब की उड़ना ये चाहता हैं
दाव पे ज़िंदगी लगता हैं
हारा भी…
ContinueAdded by shashiprakash saini on February 5, 2012 at 12:22am — 8 Comments
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