प्रथम दृश्य : शांति
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माँ ने लगाया
चांटा...
मैं सह गयी,
पापा ने लगाया
थप्पड़..
मैं सह गयी,
भाई ने मारा
घूंसा..
मैं सह गयी,
घर से बाहर छेड़ते थे
आवारा लड़के
मैं चुप रही,
पति पीटता रहा
दारू पीकर
मैं चुप रही,
सास ससुर
अपने बेटे की
करते रहे तरफ़दारी
उसकी गलतियों पर भी
मैं चुप रही,
मैं सदैव चुप रही
ताकि बनी रहे
घर मे…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 26, 2020 at 10:57pm — 3 Comments
मारो रे स्साले को, जब हम लोगो का पर्व होता है तभी ये सूअर बिजली काट देता है, दूसरों के पर्व पर तो बिजली नही काटता !
संबंधित बिजली कर्मी जब तक कुछ कहता, तब तक भीड़ से कुछ उत्साहित युवा उस कर्मचारी को पीट चुके थे । बेचारा कर्मचारी गिड़गिड़ाते हुए बस इतना ही कह पाया...
"बड़े साहब के आदेश से बिजली कटी है ।"
"चलो रे....आज उ बड़े साहब को भी देख लेते हैं, बड़ा आया आदेश देने वाला"
भीड़ बड़े साहब के चेम्बर की तरफ बढ़ गयी ।
"क्यों जी, आज हम लोगो का पर्व का दिन है, जुलूस…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 21, 2020 at 2:00pm — 2 Comments
अतुकांत कविता : मैं भी लिखूंगा एक कविता
मैं भी लिखूंगा
एक कविता
चार पांच सालों बाद..
जब मेरे हाथों द्वारा लगाया हुआ
पलास का पौधा
बन जायेगा पेड़
उसपर लगेंगे
बसंती फूल
आयेंगी रंग बिरंगी तितलियाँ
चिड़िया बनायेंगी घोंसला...
मैं भी लिखूंगा
एक कविता
चार पांच सालों बाद..
जब मेरे घर आयेगी
नन्ही सी गुड़िया
जायेगी स्कूल
मेरी उँगली पकड़
और पढ़ेगी
क ल आ म .. कलम
गायेगी…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 15, 2020 at 11:30pm — 3 Comments
दो क्षणिकाएँ
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(1) थप्पड़
मुझे पता भी न था
उस शब्द का अर्थ
गुस्से में किसी को बोल दिया था
'साला....'
गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ के साथ
माँ ने समझाया था
गाली देना गंदी बात !
काश,
उनकी माँ ने भी
लगाया होता
थप्पड़
तो आज...
नहीं देते वे
माँ, बहन को इंगित
गालियाँ ।
(2) बारुद
उनको दिखाई देता है
बारूद
मेरी दीया-सलाई की काठी में,
जिससे जलता है
हमारे घर का…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 5, 2020 at 8:30am — 5 Comments
प्रधान संपादक, आदरणीय योगराज प्रभाकर जी की टिप्पणी के आलोक में यह रचना पटल से हटायी जा रही है ।
सादर
गणेश जी बाग़ी
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 1, 2020 at 9:30am — 30 Comments
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