१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते हैं
परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते हैं
फ़लक पर झूमते हैं, नाचते हैं, गीत गाते हैं
जो उड़ते हैं उन्हें उड़ने के ख़तरे कब डराते हैं
परिंदों की नज़र से एक पल गर देख लो दुनिया
न पूछोगे कभी, उड़कर परिंदे क्या कमाते है
फ़लक पर सब बराबर हैं यहाँ नाज़ुक परिंदे भी
लड़ें गर सामने से तो विमानों को गिराते हैं
जमीं कहती, नई पीढ़ी के पंक्षी…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 24, 2014 at 10:15pm — 21 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
झूठ में कोई दम नहीं होता
सत्य लेकिन हजम नहीं होता
अश्क बहना ही कम नहीं होता
दर्द, माँ की कसम नहीं होता
मैं अदम* से अगर न टकराता
आज खुद भी अदम नहीं होता
दर्द-ए-दिल की दवा जो रखते हैं
उनके दिल में रहम नहीं होता
शे’र में बात अपनी कह देते
आपका सर कलम नहीं होता
*अदम = शून्य, अदम गोंडवी
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 20, 2014 at 8:37pm — 16 Comments
बह्र : १२१२ ११२२ १२१२ २२
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सभी से आँख चुराकर सम्हाल रक्खा है
नयन में प्यार का गौहर सम्हाल रक्खा है
कहेगा आज भी पागल व बुतपरस्त मुझे
वो जिसके हाथ का पत्थर सम्हाल रक्खा है
तेरे चमन से न जाए बहार इस खातिर
हृदय में आज भी पतझर सम्हाल रक्खा है
चमन मेरा न बसा, घर किसी का बस जाए
ये सोच जिस्म का बंजर सम्हाल रक्खा है
तेरे नयन के समंदर में हैं भँवर, तूफाँ
किसी के प्यार ने लंगर सम्हाल…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 10, 2014 at 8:13pm — 25 Comments
(१)
जब मैंने होश सँभाला तो मेरी और राजू की लंबाई बराबर थी। मुझे आँगन के बीचोबीच राजू के दादाजी ने लगाया था। राजू के पिताजी अपने सभी भाइयों में सबसे बड़े हैं। पिछले पंद्रह वर्षों से घर में कोई छोटा बच्चा नहीं था। ऐसे में जब राजू का जन्म हुआ तो वह स्वाभाविक रूप से परिवार में सबका दुलारा बन गया, विशेषकर अपने दादाजी का। राजू की देखा देखी मैं भी उसके दादाजी को दादाजी कहने लगा। मेरे बारे में लोगों की अलग अलग राय थी। कुछ कहते थे कि आँगन में कटहल का पेड़…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2014 at 10:00pm — 4 Comments
घूमूँगा बस प्यार तुम्हारा
तन मन पर पहने
पड़े रहेंगे बंद कहीं पर
शादी के गहने
चिल्लाते हैं गाजे बाजे
चीख रहे हैं बम
जेनरेटर करता है बक बक
नाच रही है रम
गली मुहल्ले मजबूरी में
लगे शोर सहने
सब को खुश रखने की खातिर
नींद चैन त्यागे
देहरी, आँगन, छत, कमरे सब
लगातार जागे
कौन रुकेगा दो दिन इनसे
सुख दुख की कहने
शालिग्राम जी सर पर बैठे
पैरों…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2014 at 7:59pm — 18 Comments
राष्ट्रपति बनने के लिए अब एकमात्र शर्त है
रोबोट होना
चाबी से चलने वाले खिलौनों को
प्रधानमंत्री पद के लिए प्राथमिकता दी जाती है
प्राणवान और बुद्धिमान बंदूकें बनाई जा रही हैं
गोलियों पर कारखानों में ही लिख दिये जाते हैं मरने वालों के नाम
इंसान विलुप्त हो चुके हैं
धरती पर रह गई है
मानव और यंत्र के समागम से बनी एक प्रजाति
सभी विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में
शिक्षा के नाम पर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 3, 2014 at 7:46pm — 5 Comments
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