मैं
तन्हा, खामोश बैठी,
एक दिन
निहार रही थी
अपना ही प्रतिबिम्ब
खूबसूरत झील में,
कई पक्षी
क्रीड़ा कर रहे थे
नावों में बैठे
कई जोडे़
अठखेलियाँ करती
सर्द हवा को
गर्मी दे रहे थे
झील के किनारे खडे़
ऊँचे-ऊँचे दरख्त
भी हिल रहे थे,
गले मिल रहे थे
तभी एंक चील ने
अचानक तेजी से
गोता लगाया
किनारे आई मछली को
मुँह मे दबा
जीवन क्षणमंगुर है
यह एहसास…
ContinueAdded by mohinichordia on February 1, 2014 at 12:02pm — 10 Comments
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