दोहा त्रयी : वृद्ध
चुटकी भर सम्मान को, तरस गए हैं वृद्ध ।
धन-दौलत को लालची, नोचें बन कर गिद्ध । ।
लकड़ी की लाठी बनी, वृद्धों की सन्तान ।
धू-धू कर सब जल गए, जीवन के अरमान ।।
वृक्षहीन आँगन हुए, वृद्धहीन आवास ।
आशीषों की अब नहीं, रही किसी में प्यास ।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 23, 2021 at 8:24pm — 6 Comments
Added by Sushil Sarna on February 13, 2021 at 8:30pm — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on February 7, 2021 at 2:30pm — 3 Comments
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