दोहा त्रयी. . . . .
जीवन में ऐश्वर्य के, साधन हुए अनेक ।
अर्थ दौड़ में खो गया, मानव धर्म विवेक ।।
चले न कोई साथ जब, साथ निभाता नाथ ।
संचित कितना भी करो, खाली रहते हाथ ।।
गौण हुईं अनुभूतियाँ, क्षीण हुए सम्बंध ।
नाम मात्र की रह गई, रिश्तों की बस गंध ।।
सुशील सरना / 23-2-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 22, 2024 at 1:31pm — 2 Comments
दोहा त्रयी. . . .
मन के मधुबन से हुई , लुप्त नेह की गंध ।
काई देती स्वार्थ की, रिश्तों में दुर्गन्ध ।।
बदल गया परिवार में, रिश्तों का अब रूप ।
तीखी लगती स्वार्थ की, अब आँगन में धूप ।।
अर्थ रार में खो गए, रिश्ते सारे खास ।
धन वैभव ने भर दिया, जीवन मैं संत्रास ।।
सुशील सरना / 11-2-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 11, 2024 at 2:06pm — 2 Comments
दोहा सप्तक. . . .
बन कर ख़याल रह गया, जीवन का हर मोड़ ।
अपने सब कब चल दिये, तनहा हमको छोड़ ।1।
बदला जीवन आज का, बदली जीवन सोच ।
एक पेट भरपेट है, क्षुधित कहीं पर चोंच ।2।
पर धन की है लालसा, कुत्सित घृणित विचार ।
जीवन को मत दीजिए, दागदार उपहार ।3।
रह -रह कर मन मीत का,आता मधुर ख़याल ।
दिल की यह बेचैनियाँ, बदलें जीवन चाल ।4।
वैसा होता आचरण, जैसी होती सोच ।
रोटी तब अच्छी बने,जब आटे में…
Added by Sushil Sarna on February 6, 2024 at 2:19pm — No Comments
दोहा पंचक. . . नैन
नैन द्वन्द्व में नैन ही , गए नैन से हार ।
नैनों को अच्छी लगे, नैनों से तकरार ।।
नैनों से तकरार का, लगे अजब आनन्द ।
हृदय पृष्ठ पर प्रीत के, अंकित होते छन्द ।।
नैनों के संवाद की, अद्भुत होती नाद ।
नैन सुनें बस नैन के, अनबोले संवाद ।।
नैनों से होती सदा, मौन सुरों में बात ।
नैनों की मनुहार में, बीते सारी रात ।।
नैनों के संसार की, किसने पायी थाह ।
नैन तीर पर हो सदा, लक्षित…
Added by Sushil Sarna on February 3, 2024 at 1:53pm — 2 Comments
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