दोहा पंचक. . . . . उमर
बहुत छुपाया हो गई, व्यक्त उमर की पीर ।
झुर्री में रुक- रुक चला, व्यथित नयन का नीर ।।
साथ उमर के काल का, साया चलता साथ ।
अकस्मात ही छोड़ती, साँस देह का हाथ ।।
बैठे-बैठे सोचती, उमर पुरातन काल ।
शैशव यौवन सब गया, बदली जीवन चाल ।।
दौड़ी जाती जिंदगी, ओझल है ठहराव ।
यादें बीती उम्र की, आँखों में दें स्राव ।।
साथ उमर के हो गए, क्षीण सभी संबंध ।
विचलित करती है बहुत, बीते युग की गंध ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 28, 2025 at 6:02pm — No Comments
कुंडलिया. . . .
जीना है तो सीख ले ,विष पीने का ढंग ।
बड़े कसैले प्रीति के,अब लगते हैं रंग ।।
अब लगते हैं रंग , जगत् में छलिया सारे ।
पल - पल बदलें रूप, स्वयं का साँझ सकारे ।।
बड़ा कठिन है सोम, भरोसे का यों पीना ।
विष को जीवन मान , पड़ेगा यों ही जीना ।।
सुशील सरना / 27-2-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 27, 2025 at 8:52pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . नवयुग
प्रीति दुर्ग में वासना, फैलाती दुर्गन्ध ।
चूनर उतरी लाज की, बंध हुए निर्बंध ।।
पानी सूखा आँख का, न्यून हुए परिधान ।
बेशर्मी हावी हुई, भूले देना मान ।।
सार्वजनिक अश्लीलता, फैली पैर पसार ।
पश्चिम की यह सभ्यता, लील रही संस्कार ।।
पश्चिम के परिधान का, फैला ऐसा रोग ।
नवयुग ने बस प्यार को, समझा केवल भोग ।।
अवनत जीवन के हुए, पावन सब प्रतिमान ।
भोग पिपासा आज के, नवयुग की पहचान ।।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 21, 2025 at 8:29pm — No Comments
दोहा सप्तक. . . . . . अभिसार
पलक झपकते हो गया, निष्ठुर मौन प्रभात ।
करनी थी उनसे अभी, पागल दिल की बात ।।
विभावरी ढलने लगी, बढ़े मिलन के ज्वार ।
मौन चाँद तकने लगा, लाज भरे अभिसार ।।
लगा लीलने मौन को, दो साँसों का शोर ।
रही तिमिर में रेंगती, हौले-हौले भोर ।।
अद्भुत होता प्यार का, अनबोला संवाद ।
अभिसारों में करवटें, लेता फिर उन्माद ।।
प्रतिबंधों की तोड़ता, साँकल मौन प्रभात ।
रुखसारों पर लाज की, रह जाती सौगात ।।
कुसुमित मन…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 17, 2025 at 3:58pm — No Comments
दोहा दशम - ..... उल्फत
अश्कों से जब धो लिए, हमने दिल के दाग ।
तारीकी में जल उठे, बुझते हुए चिराग ।।
ख्वाब अधूरे कह गए, उल्फत के सब राज ।
अनसुनी वो कर गए, इस दिल की आवाज ।।
आँसू, आहें, हिचकियाँ, उल्फत के ईनाम ।
नींदों से ली दुश्मनी, और हुए बदनाम ।।
माना उनकी बात का, दिल को नहीं यकीन ।
आयें अगर न ख्वाब है, उल्फत की तौहीन ।।
यादों से हों यारियाँ , तनहाई से प्यार ।
उल्फत का अंजाम बस , इतना सा है यार ।।
मिला इश्क को हुस्न से,…
ContinueAdded by Sushil Sarna on February 10, 2025 at 1:04pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . . . . शृंगार
रैन स्वप्न की उर्वशी, मौन प्रणय की प्यास ।
नैन ढूँढते नैन में, तृषित हृदय मधुमास ।।
वातायन की ओट से, हुए नैन संवाद ।
अरुणिम नजरों में हुए, लक्षित फिर उन्माद ।
मृग शावक सी चाल है, अरुणोदय से गाल ।
सर्वोत्तम यह सृष्टि की, रचना बड़ी कमाल ।।
गौर वर्ण झीने वसन, मादकता भरपूर ।
जैसे हो यह सृष्टि का, अलबेला दस्तूर ।।
जब-जब दमके दामिनी, उठे मिलन की प्यास।
अन्तस में व्याकुल रहा, बांहों का मधुमास…
Added by Sushil Sarna on February 4, 2025 at 9:56pm — No Comments
कुंडलिया. . .
मन से मन का हो गया, मन ही मन अभिसार ।
मन में मन के प्रेम का, सृजित हुआ संसार ।
सृजित हुआ संसार , हाथ की चूड़ी खनकी ।
मुखर हुआ शृंगार , बात फिर निकली मन की ।
बंध हुए निर्बंध ,भाव सब निकले तन से ।
मन ने दी सौगात , प्रीति को सच्चे मन से ।
सुशील सरना / 2-2-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 2, 2025 at 5:05pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . संबंध
अर्थ लोभ की रार में, मिटा खून का प्यार ।
रिश्ते सब आहत हुए, शेष रही तकरार ।।
वाणी कर्कश हो गई, मिटी नैन से लाज ।
संबंधों में स्वार्थ की, मुखर हुई आवाज ।।
प्यार मिटा पैदा हुई, रिश्तों में तकरार ।
फीके - फीके हो गए, जीवन के त्योहार ।।
दिखने को ऐसा लगे, जैसे सब हों साथ ।
वक्त पड़े तो छोड़ता, खून, खून का हाथ ।।
आपस में ऐसे मिलें, जैसे हों मजबूर ।
निभा रहे संबंध सब , जैसे हो दस्तूर ।।…
Added by Sushil Sarna on February 1, 2025 at 2:24pm — No Comments
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