हम ढोते हैं अपनी विरासत को
सभ्यता को
संस्कृति को
शाश्वत दर्शन को
बिना जाने
बिना समझे
जीवन में उतारे बिना
हम पूजते हैं
अपने मूल्यों को
बिना समझे
बिना जाने
भटकते हैं
रौशनी के काफिले
हमें गर्व है
अपनी थाती पर
वेदों पर
पुराणों पर
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा
के अवशेषों पर
कटकर
अपनी जड़ों से-
कैसा
माटी का गुणगान ?
अध्यात्म की वृहद चर्चाओं में
कथित 'बाबाओं' की सभाओं में
खेली- खाई…
Added by Vinita Shukla on February 18, 2013 at 10:08am — 25 Comments
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