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हम ढोते हैं अपनी विरासत को

हम ढोते हैं अपनी विरासत को
सभ्यता को
संस्कृति को
शाश्वत दर्शन को
बिना जाने
बिना समझे 
जीवन में उतारे बिना
हम पूजते हैं
अपने मूल्यों को
बिना समझे
बिना जाने
भटकते हैं
रौशनी के काफिले
हमें गर्व है
अपनी थाती पर
वेदों पर
पुराणों पर
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा
के अवशेषों पर 

कटकर
अपनी जड़ों से-

कैसा

माटी का गुणगान ?
अध्यात्म की वृहद चर्चाओं में
कथित 'बाबाओं' की सभाओं में
खेली- खाई 'नैतिकता'
के छलावों में 
हम ढोते  
हैं आत्मा का बोझ 
 यह  कैसा
राष्ट्रीय चरित्र?
कि हम ढोते हैं ...
महज ढोते ही हैं -
अपनी विरासत को !!!


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Comment

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Comment by Vinita Shukla on February 27, 2013 at 8:46am

धन्यवाद भ्रमर जी, विचारशील प्रतिक्रिया एवं सराहना के लिए.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 26, 2013 at 11:19pm

आदरणीया विनीता जी सुंदर रचना हमारी संस्कृति संस्कार नैतिकता बनी रहे तो आनंद और आए
भ्रमर ५

Comment by Vinita Shukla on February 20, 2013 at 8:55am

बहुत बहुत धन्यवाद आ. अशोक जी.

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2013 at 11:14pm

लकीर का फ़कीर ना बनाने की नसीहत देती सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें आदरेया विनीता जी सादर.

Comment by Vinita Shukla on February 19, 2013 at 10:26pm

समर्थन एवं सराहना हेतु, कोटिशः धन्यवाद अरुण जी.

Comment by Arun Sri on February 19, 2013 at 8:05pm

ये रचना तो आइना लेकर खड़ी है ! वाणी और चरित्र के अंतर को प्रभावशाली तरीके से चित्रित करती रचना ! सन्देश देती हुई कि या तो अपनी आत्मा को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें या बंद करें व्यर्थ का प्रलाप ! सादर !

Comment by Vinita Shukla on February 19, 2013 at 7:19pm

अनेकानेक धन्यवाद डॉ. अजय खरे जी.

Comment by Vinita Shukla on February 19, 2013 at 7:18pm

हार्दिक धन्यवाद राजेश कुमारी जी, इस विचारशील, उत्साहवर्धन करने वाली प्रतिक्रिया के लिए.

Comment by Dr.Ajay Khare on February 19, 2013 at 12:10pm

bahut sunder rachna ke liye badhai


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Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 11:59am

जी हाँ आज की पीढ़ी  को देखकर तो यही लग रहा है कि ये मान्य्तायेन ये संस्कृति ढो ही रहे हैं अब हमारा ही मौलिक धर्म कर्तव्य बनता है कि इस धरोहर का पूर्ण ज्ञान वितरित किया जाए घरों से ही ये संस्कार बच्चों में डाले जाएँ सच में आज कि परिथितियो को देखकर  मन में ये प्रश्न उपजना स्वाभाविक है बहुत अच्छा लिखा बधाई आपको  

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