उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
अपनी उदासी का सबब
करतीं इसरार नहीं
अम्मा से, भैय्या से
होती न बतकही
छुटकी गौरैय्या से
तितलिओं के पीछे भी
भागतीं नहीं जब तब
निर्दय, नृशंस
समय की दस्तक!
उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
अपनी उदासी का सबब
टोली बच्चों की
जो गलियों में
करती है शोर;
कडक्को, पकडम पकडाई
खो- खो,
पतंगों की
कटती हुई डोर;
पी लेतीं आँखें
मासूम बदहवासी को
उदास लडकियाँ
जताती नहीं
अपनी उदासी को
बदल देती है
सब कुछ -
भरती हुई देह
बढ़ती पाबंदियां
ढलता हुआ नेह
चुभतीं लम्पट नजरें
मुंह चिढाते आईने
बदल जाते हैं
स्नेहिल स्पर्शों
के मायने
कुंहासी संझा की
परछाईयों में
उलझ- उलझ
उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
अपनी उदासी का सबब
क्योंकि वे बच्चियां नहीं
कुछ और हैं अब!
Comment
कोटिशः धन्यवाद आदरणीय विजय जी.
विनिता जी:
उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
अपनी उदासी का सबब ....बहुत ही सुन्दर भाव है!
इस संवेदनशील रचना के लिए बधाई।
विजय निकोर
आदरणीय कुशवाहा जी, सराहना एवं समर्थन के लिए हार्दिक आभार.
रामशिरोमणि जी, अनेकानेक धन्यवाद.
बदल देती है
सब कुछ -
भरती हुई देह
बढ़ती पाबंदियां
ढलता हुआ नेह
चुभतीं लम्पट नजरें
मुंह चिढाते आईने
बदल जाते हैं
स्नेहिल स्पर्शों
के मायने
कुंहासी संझा की
परछाईयों में
उलझ- उलझ
उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
अपनी उदासी का सबब
क्योंकि वे बच्चियां नहीं
कुछ और हैं अब!
आदरणीया विनीता जी सादर
बहुत खूब.
बधाई
बहुत खूब ! सुन्दर शब्द !
रचना को समय देने एवं सराहना हेतु कोटिशः धन्यवाद शुभ्रा जी.
सुन्दर शब्दों में सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद राजेश जी.
सराहना एवं समर्थन के लिए कोटिशः आभार योगी जी.
छुटकी गौरैय्या से
तितलिओं के पीछे भी
भागतीं नहीं जब तब
निर्दय, नृशंस
समय की दस्तक
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