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उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
 अपनी उदासी का सबब
करतीं इसरार नहीं
अम्मा से, भैय्या से
होती न बतकही
छुटकी गौरैय्या से
तितलिओं के पीछे भी
 भागतीं नहीं जब तब
निर्दय, नृशंस
समय की दस्तक!
उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
 अपनी उदासी का सबब
टोली बच्चों की
 जो गलियों में
करती है शोर;
कडक्को, पकडम पकडाई
खो- खो,
पतंगों की
कटती हुई डोर;
पी लेतीं आँखें
मासूम बदहवासी को
उदास लडकियाँ
जताती नहीं
अपनी उदासी को
बदल देती है
सब कुछ -
भरती हुई देह
बढ़ती पाबंदियां
ढलता हुआ नेह
चुभतीं लम्पट नजरें
मुंह चिढाते आईने 
बदल जाते हैं
स्नेहिल स्पर्शों
के मायने
कुंहासी संझा की
परछाईयों में
उलझ- उलझ
उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
 अपनी उदासी का सबब
क्योंकि वे बच्चियां नहीं
कुछ और हैं अब!








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Comment

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Comment by Vinita Shukla on January 29, 2013 at 12:48pm

कोटिशः धन्यवाद आदरणीय विजय जी.

Comment by vijay nikore on January 25, 2013 at 1:29pm

विनिता जी:

उदास लडकियां
नहीं कहतीं किसी से-
अपनी उदासी का सबब ....बहुत ही सुन्दर भाव है!

इस संवेदनशील रचना के लिए बधाई।

विजय निकोर

Comment by Vinita Shukla on January 24, 2013 at 10:29pm

आदरणीय कुशवाहा जी, सराहना एवं समर्थन के लिए हार्दिक आभार.

Comment by Vinita Shukla on January 24, 2013 at 10:28pm

रामशिरोमणि जी, अनेकानेक धन्यवाद.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 24, 2013 at 5:16pm

बदल देती है 
सब कुछ -
भरती हुई देह 
बढ़ती पाबंदियां 
ढलता हुआ नेह 
चुभतीं लम्पट नजरें 
मुंह चिढाते आईने 
बदल जाते हैं 
स्नेहिल स्पर्शों 
के मायने 
कुंहासी संझा की 
परछाईयों में 
उलझ- उलझ 
उदास लडकियां 
नहीं कहतीं किसी से-
 अपनी उदासी का सबब 
क्योंकि वे बच्चियां नहीं 
कुछ और हैं अब!

आदरणीया विनीता जी सादर 

बहुत खूब. 

बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on January 24, 2013 at 4:39pm

बहुत खूब ! सुन्दर शब्द ! 

Comment by Vinita Shukla on January 24, 2013 at 4:24pm

रचना को समय देने एवं सराहना हेतु कोटिशः धन्यवाद शुभ्रा जी.

Comment by Vinita Shukla on January 24, 2013 at 4:22pm

सुन्दर शब्दों में सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद राजेश जी.

Comment by Vinita Shukla on January 24, 2013 at 4:22pm

सराहना एवं समर्थन के लिए कोटिशः आभार योगी जी.

Comment by shubhra sharma on January 24, 2013 at 3:16pm

छुटकी गौरैय्या से 
तितलिओं के पीछे भी 
 भागतीं नहीं जब तब 
निर्दय, नृशंस 
समय की दस्तक

बहुत बहुत अच्छी  रचना की पंक्ति ,बधाई स्वीकार करे विनीता शुक्ला जी 

कृपया ध्यान दे...

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