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Nilesh Shevgaonkar's Blog – March 2016 Archive (2)

ग़ज़ल -फिर ‘नूर’ हर्फ़ हर्फ़ वहाँ तितलियाँ रहीं.

221/2121/122/1212

.

आसानियों के साथ परेशानियाँ रहीं, 

गर रौशनी ज़रा रही, परछाइयाँ रहीं.

.

क़दमों तले रहा कोई तपता सा रेगज़ार, 

यादों में भीगती हुई पुरवाइयाँ रहीं.

.

नाकामियों में कुछ तो रहा दोष वक़्त का,  

ज़्यादा कुसूरवार  तो ख़ुद्दारियाँ रहीं.

.

ऐसा नहीं कि तेरे बिना थम गया सफ़र

हाँ! ज़िन्दगी की राह में तन्हाइयाँ रहीं.

.

क़िरदार.. कुछ कहानी के, कमज़ोर पड़ गए

कुछ लिखने वाले शख्स की कमज़ोरियाँ रहीं.

.

मिलते…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 18, 2016 at 9:08pm — 19 Comments

ग़ज़ल -नूर- कहानी नहीं चली.

ग़ज़ल 

२२१/२१२/११२२/१२१२ 



कश्ती थी बादबानी, हवा ही नहीं चली,

मर्ज़ी नहीं थी रब की सो अपनी नहीं चली.

.

ज़ह’न-ओ-जिगर की, दिल की, अना की नहीं चली

मौला के दर पे क़िस्सा कहानी नहीं चली.  

.

कितने थे शाह कितने क़लन्दर क़तार में,

धमक़ी तो छोड़ दीजिये, अर्ज़ी नहीं चली.

.   

धुलवा दिए थे अश्क-ए-नदामत से सब गुनाह,   

चादर वहाँ ज़रा सी भी मैली नहीं चली.

.

होता रहा हिसाब-ए-अमल, रोज़-ए-हश्र, ‘नूर’  

कोई वहाँ पे बात किताबी नहीं…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on March 11, 2016 at 7:00pm — 18 Comments

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