221/2121/122/1212
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आसानियों के साथ परेशानियाँ रहीं,
गर रौशनी ज़रा रही, परछाइयाँ रहीं.
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क़दमों तले रहा कोई तपता सा रेगज़ार,
यादों में भीगती हुई पुरवाइयाँ रहीं.
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नाकामियों में कुछ तो रहा दोष वक़्त का,
ज़्यादा कुसूरवार तो ख़ुद्दारियाँ रहीं.
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ऐसा नहीं कि तेरे बिना थम गया सफ़र
हाँ! ज़िन्दगी की राह में तन्हाइयाँ रहीं.
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क़िरदार.. कुछ कहानी के, कमज़ोर पड़ गए
कुछ लिखने वाले शख्स की कमज़ोरियाँ रहीं.
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मिलते…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on March 18, 2016 at 9:08pm — 19 Comments
ग़ज़ल
२२१/२१२/११२२/१२१२
कश्ती थी बादबानी, हवा ही नहीं चली,
मर्ज़ी नहीं थी रब की सो अपनी नहीं चली.
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ज़ह’न-ओ-जिगर की, दिल की, अना की नहीं चली
मौला के दर पे क़िस्सा कहानी नहीं चली.
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कितने थे शाह कितने क़लन्दर क़तार में,
धमक़ी तो छोड़ दीजिये, अर्ज़ी नहीं चली.
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धुलवा दिए थे अश्क-ए-नदामत से सब गुनाह,
चादर वहाँ ज़रा सी भी मैली नहीं चली.
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होता रहा हिसाब-ए-अमल, रोज़-ए-हश्र, ‘नूर’
कोई वहाँ पे बात किताबी नहीं…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 11, 2016 at 7:00pm — 18 Comments
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