मुल्क़ है ख़ुशहाल बतलाती रही मुझको हँसी
नित नये किस्सों से भरमाती रही मुझको हँसी
गफ़लतों में झूमते थे छुप गया है सूर्य अब
बादलों की सोच पर आती रही मुझको हँसी
मौत आगे लोग पीछे, था सड़क पर क़ाफ़िला
क़ाफ़िले का अर्थ समझाती रही मुझको हँसी
देखकर मायूस बचपन और सहमी औरतें
चुप्पियाँ हर ओर शरमाती रही मुझको हँसी
गालियों के संग अब तो मिल रहीं हैं लाठियाँ
मौत सच या भूख उलझाती रही मुझको हँसी
अब करोना क़हर…
ContinueAdded by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 31, 2020 at 8:00pm — 2 Comments
हवा ख़ामोश है वीरान हैं सड़कें
बहुत अब हो चुका बेकार मत भटकें
नहीं देंगे झुलसने आग से गुलसन
हमीं हैं फूल इसके रोज़ हम महकें
हमेशा ही रही तूफ़ान से यारी
घड़ी नाज़ुक अभी हम आज कुछ बहकें
हमें मंज़ूर है, हम शंख फूकेंगे
कि अब तो चश्म अपनों के नहीं छलकें
क़सम ले लें लड़ेंगे हम करोना से
मगर ऐसे कि अब दंगे नहीं भडकें
पुराना डर मुझे बेचैन करता जब
कभी उठतीं कभी गिरतीं तेरी…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 30, 2020 at 4:30pm — 2 Comments
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