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Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)
  • Male
  • Delhi
  • India
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Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s Page

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Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) posted a blog post

आग कैसी जल रही है आजकल

ग़ज़ल: आग कैसी जल रही है आजकल क्या वबा ये पल रही है आजकलहर ख़बर अब क़हर ही बरपा रही पाँव बिन जो चल रही है आजकलधैर्य का कब ख़त्म होगा इम्तिहाँ हर चमक तो ढल रही है आजकलहो रही है बेअसर हर घोषणा योजना हर टल रही है आजकलनफ़रतों की लहलहाती फ़स्ल ही ज़ह्र बनकर फल रही है आजकलहाल अपना मैं कभी कहता नहीं ख़ामुशी पर खल रही है आजकलफिर 'अमर' गहरा अँधेरा जायेगा जोर से लौ बल रही है आजकल*मौलिक व अप्रकाशित*अमर पंकज (डाँ अमर नाथ झा) दिल्ली विश्वविद्यालय मोबाइल-9871603621See More
May 5, 2020
सालिक गणवीर commented on Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s blog post आग कैसी जल रही है आजकल
"आदरणीय अमर पंकज जी शानदार रचना पोस्ट करने के लिए हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकारें. लगता है टाइप करते समय वबा की बजाय बवा टाइप हो गया है. सुधार कर लें। सालिक गणवीर"
May 5, 2020
नाथ सोनांचली commented on Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s blog post आग कैसी जल रही है आजकल
"आद0 पंकज जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकारें। सादर"
May 5, 2020
Samar kabeer commented on Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s blog post आग कैसी जल रही है आजकल
"जनाब अमर पंकज जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें । ग़ज़ल के साथ उसके अरकान भी लिख दिया करें,इससे नए सीखने वालों को आसानी होती है ।"
May 4, 2020
Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) posted a blog post

आग कैसी जल रही है आजकल

ग़ज़ल: आग कैसी जल रही है आजकल क्या वबा ये पल रही है आजकलहर ख़बर अब क़हर ही बरपा रही पाँव बिन जो चल रही है आजकलधैर्य का कब ख़त्म होगा इम्तिहाँ हर चमक तो ढल रही है आजकलहो रही है बेअसर हर घोषणा योजना हर टल रही है आजकलनफ़रतों की लहलहाती फ़स्ल ही ज़ह्र बनकर फल रही है आजकलहाल अपना मैं कभी कहता नहीं ख़ामुशी पर खल रही है आजकलफिर 'अमर' गहरा अँधेरा जायेगा जोर से लौ बल रही है आजकल*मौलिक व अप्रकाशित*अमर पंकज (डाँ अमर नाथ झा) दिल्ली विश्वविद्यालय मोबाइल-9871603621See More
May 4, 2020
Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) posted a blog post

ग़ज़ल: अमर नाथ झा

चाहते हो तुम मिटाना नफ़रतों का गर अँधेरा हाथ में ले लो किताबें जल्द आएगा सवेराहै जहालत का कुआँ गहरा बहुत मत डूबना तू लोग हों खुशहाल गुरबत ख़त्म हो ये काम तेराज़ह्र भी अमृत बने जो प्यार की ठंढी छुअन हो नाचती नागिन है बेसुध जब सुनाता धुन सपेरागुफ़्तगू के चंद लमहों ने बदल दी ज़िंदगी अब बन गया सूखा शजर फिर से परिन्दों का बसेराआग का मेरा बदन मैं आँख में सिमटा धुआँ हूँ इश्क़ में अब बन गया सुख चैन का ख़ुद मैं लुटेराफिर 'अमर' आने लगे वो रात दिन ख़्वाबों में मेरे अपने बस में दिल नहीं अब दिल ने छोड़ा साथ…See More
Apr 7, 2020
Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) posted a blog post

ग़ज़ल

मुल्क़ है ख़ुशहाल बतलाती रही मुझको हँसी नित नये किस्सों से भरमाती रही मुझको हँसीगफ़लतों में झूमते थे छुप गया है सूर्य अब बादलों की सोच पर आती रही मुझको हँसीमौत आगे लोग पीछे, था सड़क पर क़ाफ़िला क़ाफ़िले का अर्थ समझाती रही मुझको हँसीदेखकर मायूस बचपन और सहमी औरतें चुप्पियाँ हर ओर शरमाती रही मुझको हँसीगालियों के संग अब तो मिल रहीं हैं लाठियाँ मौत सच या भूख उलझाती रही मुझको हँसीअब करोना क़हर बनकर ख़ौफ है बरपा रहा घर में होकर क़ैद चौंकाती रही मुझको हँसीजान ले तू सच 'अमर' के दर्द ही तेरी दवा आइना हर…See More
Apr 2, 2020
Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की सालगिरह का तुहफ़ा"
"वाह। बेहद खूबसूरत। ओ बी ओ की शान में कही गयी मुकम्मिल ग़ज़ल। दिल से बधाई आदरणीय समर कबीर साहेब। आदाब।"
Apr 2, 2020
Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) commented on Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s blog post ग़ज़ल
"हार्दिक आभार आदरणीय मोहतरम समर कबीर साहेब। ठीक करने की कोशिश करता हूँ। आपका स्नेह बना रहे। आदाब।"
Apr 1, 2020
Samar kabeer commented on Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s blog post ग़ज़ल
"जनाब अमर पंकज जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें । 'अब करोना का क़हर बरपा रहा है ख़ौफ तो ' इस पंक्ति में 'क़हर' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "क़ह्र",और इसका वज़्न 21 है । 'जान लो ये सच…"
Apr 1, 2020
Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) posted a blog post

ग़ज़ल

मुल्क़ है ख़ुशहाल बतलाती रही मुझको हँसी नित नये किस्सों से भरमाती रही मुझको हँसीगफ़लतों में झूमते थे छुप गया है सूर्य अब बादलों की सोच पर आती रही मुझको हँसीमौत आगे लोग पीछे, था सड़क पर क़ाफ़िला क़ाफ़िले का अर्थ समझाती रही मुझको हँसीदेखकर मायूस बचपन और सहमी औरतें चुप्पियाँ हर ओर शरमाती रही मुझको हँसीगालियों के संग अब तो मिल रहीं हैं लाठियाँ मौत सच या भूख उलझाती रही मुझको हँसीअब करोना क़हर बनकर ख़ौफ है बरपा रहा घर में होकर क़ैद चौंकाती रही मुझको हँसीजान ले तू सच 'अमर' के दर्द ही तेरी दवा आइना हर…See More
Mar 31, 2020
Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) commented on Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s blog post ग़ज़ल
"आदरणीय समर कबीर साहेब। आदाब। ख़ुद को मैं ख़ुशकिस्मत समझ रहा हूँ, जानकर कि ग़ज़ल आप तक पहुँची मोहतरम। क़ाफ़िये को लेकर मैं ख़ुद बहुत संतुष्ट नहीं हूँ, मगर करोना के कहर के मद्देनज़र इसे कहने की कोशिश की है। शायद भविष्य में इसे ठीक कर सकूँ। दिल की…"
Mar 31, 2020
Samar kabeer commented on Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s blog post ग़ज़ल
"जनाब 'अमर' पंकज जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,लेकिन पूरी ग़ज़ल में क़वाफ़ी ठीक नहीं हैं,देखियेगा,इस प्रस्तुति पर बधाई ।"
Mar 31, 2020
Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) posted a blog post

ग़ज़ल

हवा ख़ामोश है वीरान हैं सड़कें बहुत अब हो चुका बेकार मत भटकेंनहीं देंगे झुलसने आग से गुलसन हमीं हैं फूल इसके रोज़ हम महकेंहमेशा ही रही तूफ़ान से यारी घड़ी नाज़ुक अभी हम आज कुछ बहकेंहमें मंज़ूर है, हम शंख फूकेंगे कि अब तो चश्म अपनों के नहीं छलकेंक़सम ले लें लड़ेंगे हम करोना से मगर ऐसे कि अब दंगे नहीं भडकेंपुराना डर मुझे बेचैन करता जब कभी उठतीं कभी गिरतीं तेरी पलकेंजमाखोरी बढ़ी मुश्किल हुआ जीना कहो कैसे करोना में 'अमर' चहकें*मौलिक व अप्रकाशित* See More
Mar 30, 2020
Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) posted a blog post

तेरी मेरे कहीं कुछ कहानी तो है

ग़ज़ल: तेरी मेरी कहीं कुछ कहानी भी है प्यार में तैरती ज़िन्दगानी भी हैमत डरो देख तुम इस जमन की लहर रासलीला तुम्हीं संग रचानी भी हैआँसुओं से नहाती रही उम्र-भरतू ही चंपा मेरी रातरानी भी हैफूल जब मुस्कुराएँ तो समझा करो इन बहारों में अपनी जवानी भी हैबाँध मत प्यार की बह रही है नदी है रवाँ जिसमें उल्फ़त का पानी भी हैसाथ देता हमेशा रहा हमसफ़रज़िन्दगी इसलिए तो सुहानी भी हैअब न छोड़ेगा तुमको अकेला 'अमर' ज़िंदगी साथ हमको बितानी भी हैअमर पंकज (डाॅ अमर नाथ झा) देहली यूनिवर्सिटीमौलिक और अप्रकाशित See More
Jun 14, 2019
Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) commented on Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s blog post तेरी मेरे कहीं कुछ कहानी तो है
"आदरणीय दंडपाणी नाहक साहेब। आपको ग़ज़ल पसंद आई। हमारा आभार स्वीकार करें। धन्यवाद। "
Jun 12, 2019

Profile Information

Gender
Male
City State
Delhi
Native Place
Deoghar, Jharkhand
Profession
Research and Teaching
About me
I am still a learner.

काशी भी अब मुझको काबा लगता है
दीवाने का दावा सच्चा लगता है

उजले कपड़े दिल का काला लगता है
बनता अपना पर बेगाना लगता है

कब तक झूठे सपने यूँ भरमाएँगे
झूट नहीं अब सच पर ताला लगता है

पास नहीं फिर भी क्यों तुझसे प्यार हमें
"चाँद बता तू कौन हमारा लगता है"

पीकर ज़ह्र ग़ज़ल तुम कहते हो कैसे
हम को तो मुश्किल हर मिसरा लगता है

तूफ़ाँ में जब फँस जाती है नाव "अमर"
तब तो रब ही एक सहारा लगता है

मौलिक व अप्रकाशित 

Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s Blog

आग कैसी जल रही है आजकल

ग़ज़ल:



आग कैसी जल रही है आजकल

क्या वबा ये पल रही है आजकल

हर ख़बर अब क़हर ही बरपा रही

पाँव बिन जो चल रही है आजकल

धैर्य का कब ख़त्म होगा इम्तिहाँ

हर चमक तो ढल रही है आजकल

हो रही है बेअसर हर घोषणा

योजना हर टल रही है आजकल

नफ़रतों की लहलहाती फ़स्ल ही

ज़ह्र बनकर फल रही है आजकल

हाल अपना मैं कभी कहता नहीं

ख़ामुशी पर खल रही है आजकल

फिर 'अमर' गहरा अँधेरा जायेगा

जोर…

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Posted on May 3, 2020 at 3:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल: अमर नाथ झा

चाहते हो तुम मिटाना नफ़रतों का गर अँधेरा

हाथ में ले लो किताबें जल्द आएगा सवेरा

है जहालत का कुआँ गहरा बहुत मत डूबना तू

लोग हों खुशहाल गुरबत ख़त्म हो ये काम तेरा

ज़ह्र भी अमृत बने जो प्यार की ठंढी छुअन हो

नाचती नागिन है बेसुध जब सुनाता धुन सपेरा

गुफ़्तगू के चंद लमहों ने बदल दी ज़िंदगी अब

बन गया सूखा शजर फिर से परिन्दों का बसेरा

आग का मेरा बदन मैं आँख में सिमटा धुआँ हूँ

इश्क़ में अब बन गया सुख चैन का ख़ुद मैं…

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Posted on April 7, 2020 at 9:00pm

ग़ज़ल

मुल्क़ है ख़ुशहाल बतलाती रही मुझको हँसी

नित नये किस्सों से भरमाती रही मुझको हँसी

गफ़लतों में झूमते थे छुप गया है सूर्य अब

बादलों की सोच पर आती रही मुझको हँसी

मौत आगे लोग पीछे, था सड़क पर क़ाफ़िला

क़ाफ़िले का अर्थ समझाती रही मुझको हँसी

देखकर मायूस बचपन और सहमी औरतें

चुप्पियाँ हर ओर शरमाती रही मुझको हँसी

गालियों के संग अब तो मिल रहीं हैं लाठियाँ

मौत सच या भूख उलझाती रही मुझको हँसी

अब करोना क़हर…

Continue

Posted on March 31, 2020 at 8:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल

हवा ख़ामोश है वीरान हैं सड़कें

बहुत अब हो चुका बेकार मत भटकें

नहीं देंगे झुलसने आग से गुलसन

हमीं हैं फूल इसके रोज़ हम महकें

हमेशा ही रही तूफ़ान से यारी

घड़ी नाज़ुक अभी हम आज कुछ बहकें

हमें मंज़ूर है, हम शंख फूकेंगे

कि अब तो चश्म अपनों के नहीं छलकें

क़सम ले लें लड़ेंगे हम करोना से

मगर ऐसे कि अब दंगे नहीं भडकें

पुराना डर मुझे बेचैन करता जब

कभी उठतीं कभी गिरतीं तेरी…

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Posted on March 30, 2020 at 4:30pm — 2 Comments

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