ग़ज़ल:
आग कैसी जल रही है आजकल
क्या वबा ये पल रही है आजकल
हर ख़बर अब क़हर ही बरपा रही
पाँव बिन जो चल रही है आजकल
धैर्य का कब ख़त्म होगा इम्तिहाँ
हर चमक तो ढल रही है आजकल
हो रही है बेअसर हर घोषणा
योजना हर टल रही है आजकल
नफ़रतों की लहलहाती फ़स्ल ही
ज़ह्र बनकर फल रही है आजकल
हाल अपना मैं कभी कहता नहीं
ख़ामुशी पर खल रही है आजकल
फिर 'अमर' गहरा अँधेरा जायेगा
जोर…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on May 3, 2020 at 3:00pm — 3 Comments
चाहते हो तुम मिटाना नफ़रतों का गर अँधेरा
हाथ में ले लो किताबें जल्द आएगा सवेरा
है जहालत का कुआँ गहरा बहुत मत डूबना तू
लोग हों खुशहाल गुरबत ख़त्म हो ये काम तेरा
ज़ह्र भी अमृत बने जो प्यार की ठंढी छुअन हो
नाचती नागिन है बेसुध जब सुनाता धुन सपेरा
गुफ़्तगू के चंद लमहों ने बदल दी ज़िंदगी अब
बन गया सूखा शजर फिर से परिन्दों का बसेरा
आग का मेरा बदन मैं आँख में सिमटा धुआँ हूँ
इश्क़ में अब बन गया सुख चैन का ख़ुद मैं…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on April 7, 2020 at 9:00pm — No Comments
मुल्क़ है ख़ुशहाल बतलाती रही मुझको हँसी
नित नये किस्सों से भरमाती रही मुझको हँसी
गफ़लतों में झूमते थे छुप गया है सूर्य अब
बादलों की सोच पर आती रही मुझको हँसी
मौत आगे लोग पीछे, था सड़क पर क़ाफ़िला
क़ाफ़िले का अर्थ समझाती रही मुझको हँसी
देखकर मायूस बचपन और सहमी औरतें
चुप्पियाँ हर ओर शरमाती रही मुझको हँसी
गालियों के संग अब तो मिल रहीं हैं लाठियाँ
मौत सच या भूख उलझाती रही मुझको हँसी
अब करोना क़हर…
ContinueAdded by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 31, 2020 at 8:00pm — 2 Comments
हवा ख़ामोश है वीरान हैं सड़कें
बहुत अब हो चुका बेकार मत भटकें
नहीं देंगे झुलसने आग से गुलसन
हमीं हैं फूल इसके रोज़ हम महकें
हमेशा ही रही तूफ़ान से यारी
घड़ी नाज़ुक अभी हम आज कुछ बहकें
हमें मंज़ूर है, हम शंख फूकेंगे
कि अब तो चश्म अपनों के नहीं छलकें
क़सम ले लें लड़ेंगे हम करोना से
मगर ऐसे कि अब दंगे नहीं भडकें
पुराना डर मुझे बेचैन करता जब
कभी उठतीं कभी गिरतीं तेरी…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 30, 2020 at 4:30pm — 2 Comments
ग़ज़ल:
तेरी मेरी कहीं कुछ कहानी भी है
प्यार में तैरती ज़िन्दगानी भी है
मत डरो देख तुम इस जमन की लहर
रासलीला तुम्हीं संग रचानी भी है
आँसुओं से नहाती रही उम्र-भर
तू ही चंपा मेरी रातरानी भी है
फूल जब मुस्कुराएँ तो समझा करो
इन बहारों में अपनी जवानी भी है
बाँध मत प्यार की बह रही है नदी
है रवाँ जिसमें उल्फ़त का पानी भी है
साथ देता हमेशा रहा…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on June 4, 2019 at 7:30pm — 3 Comments
सफर बाकी है अभी
अभी बाकी है
जिंदगी से अभिसार
कह रहा हूं
तुम्हीं से
बार-बार
सुन रही हो न
ऐ मृत्यु के आगार।…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on June 4, 2019 at 7:22pm — No Comments
वादियाँ ख़ामोश ख़ामोशी भरा है ये सफ़र
अब दरख़्तों से भी हम डरने लगे हैं किस क़दर
यूँ मचा कर शोर करते हैं परिंदे अहतिजाज
इस जगह पर ही हुआ करता था अपना एक घर'
जिस जगह हमने गुज़ारी थी महकती शाम, अब
ज़ह्र फैला उस जगह तो कैसे हम रोकें असर
फूल भी बेनूर से क्यों दिख रहे हैं बाग में
ख़ूबसूरत से चमन कोतो खा गयी किसकी नज़र
वो पुराने दिन हमें जब याद आते हैं कभी
ढूँढने लगते हैं…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on May 28, 2019 at 1:00pm — 4 Comments
सब ग़मों को भुला दिया जाए
थोड़ा सा मुस्कुरा दिया जाए
अश्क़ मैं पी चुका बहुत यारो
जामे उल्फ़त पिला दिया जाए
.
लो सियासत बदल गयी अब तो
हुक़्म उनका सुना दिया जाए
आँधियाँ तेज जब चलें, खुद को
अपने घर में बिठा दिया जाए
अब जलाकर 'अमर' बसेरा तुम
कह रहे ग़म भुला दिया जाए
"मौलिक और अप्रकाशित"
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on May 27, 2019 at 6:00pm — 4 Comments
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