सजा औरत को देने में मज़ा है तेरा ,
क़हर ढहाना, ज़फा करना जूनून है तेरा !
दर्द औरत का बयां हो न जाये चेहरे से ,
ढक दिया जाता है नकाब से चेहरा !
बहक न जाये औरत सुनकर बगावतों की खबर ,
उसे बचपन से बनाया जाता है बहरा !
करे न पार औरत हरगिज़ हया की चौखट ,
उम्रभर देता है मुस्तैद होकर मर्द पहरा !
मर्द की दुनिया में औरत होना है गुनाह ,
ज़ुल्म का सिलसिला आज तक नहीं ठहरा…
Added by shikha kaushik on March 31, 2013 at 9:02pm — 9 Comments
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