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Amod shrivastav (bindouri)'s Blog – April 2016 Archive (3)

दिनरात चिरागों सा जला अपने वतन में

बह्र:-221-1221-1221-122



रुतबा -ए-उजाला है मिया अपने वतन में।

अब चैन मुहब्बत ओ मजा अपने वतन में।



अनपढ़ सा अंधेरा है मिटा अपने वतन में।

जैसे कोई खलिहान सजा अपने वतन में।।



वो रोज मुझे याद है वो ख़ूनी नजारा।

जब जुल्म से इन्सान लड़ा अपने वतन में।।



मुश्किल से हवा देश में लौटी है अमन की।

मजहब की न अब आग लगा अपने वतन में।।



बस चैन मुहब्बत -ओ-दुआ फर्ज के खातिर।

दिन रात चिरागों को जला अपने वतन में।।



आमोद… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on April 15, 2016 at 12:00am — 9 Comments

लो ये खिलते गुलाब ले जाओ

बह्र:-2122-1212-22

क्या नही है जनाब ले जाओ।
लो ये खिलते गुलाब ले जाओ।।

अब नही मेरा वास्ता उससे।
याद-ए-दौर-ए-शबाब ले जाओ।।

मुझको चाहो तो छोड़ दो तन्हा।
ये न करना की ख्वाब ले जाओ।।

जो भी आगोश में तेरी गुजरे।
उन पलों का हिसाब ले जाओ।।

मेरी तक़दीर में अंधेरे हैं।
आप यह माहताब ले जाओ।

है अगर मुझको छोड़कर जाना।
जिंदगी की किताब ले जाओ।।

आमोद बिन्दौरीमैलिक /अप्रकाशित

Added by amod shrivastav (bindouri) on April 3, 2016 at 1:35pm — 7 Comments

मय वो दौलत है जो जन्नत से यहाँ तक पहुँचे

बह्र:-2122-1122-1122-22



उसने ख़त लिख्खे रूमानी, वो कहाँ तक पहुँचे।।

मेरा दावा है रकीबों की ,जुबाँ तक पहुँचे।।



आह मत ले तु गरीबों की ,अमीराँ हो कर।

छोड़ दौलत को दुआयें ही, वहाँ तक पहुँचे।।



दौरे हाजिर में मुकाबिल है कहीं भी बेटी।

मेरी ख्वाहिस है बुलंदी के मकाँ तक पहुँचे।।



खुद खुदा ने ही खुदाई की खिलाफत करदी।

बे समय पानी ये पत्थर भी किसां तक पहुचे।।



नाम लेना भी गुनाहों में गिना क्यों तुमने।

मय वो दौलत है जो जन्नत से… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on April 3, 2016 at 1:32pm — 6 Comments

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