दिल में उम्मीदों का चलता कारवाँ रखिये
हर अँधेरे के लिए कोई शमाँ रखिये
बज़्म में आ ही गए कुछ तो निशाँ रखिये
कुछ अलग अपना भी अंदाज़े बयाँ रखिये
रोज़ का मेहमाँ कोई मेहमाँ नहीं होता
शह्र के बाहर सही अपना मकाँ रखिये
देवता, बुत और पत्थर बन के रहते हो
कुछ तो इंसानों के जैसी ख़ामियाँ रखिये
ख्वाब जब होंगे नहीं तासीर क्या होगी
ख्वाब को अब तो सवार-ए-कहकशाँ रखिये
तीरगी को है मिटाती एक…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on April 14, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
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