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Shree suneel's Blog – May 2015 Archive (2)

रामलीला... /श्री सुनील

शहर की चहारदीवारी से कान लगाओ तो

शहर के हालात का पता चलता है.



अपहरण के बाद अपह्रीत की गिड़गिड़ाहट...

बलात्कारी की ख़ामोशी

और नारी की दीर्घ चीख.



ख़ून के छींटे बेचता अख़बार वाला.



पेट्रोल और डीजल अब कारक नहीं प्रदूषण के

उसकी जगह ले चुकी बारूद की गंध- फांद चुकी शहर की चहारदीवारी.



रेंगने की आवाज़ पे मैं चौंका -

वह सुकून था-दीवारों में सुराख ढूँढता हुआ.



चहारदीवारी से चिपके कान की नसें क्या तनीं,

दीवार पे चढ़ के शहर… Continue

Added by shree suneel on May 28, 2015 at 3:06pm — 7 Comments

ग़ज़ल ; यकायक चराग़ों को क्या हो गया है

122 122 122 122

यकायक चराग़ों को क्या हो गया है
बुझे थे, जले फिर, ये किसकी दुआ है.

चलो और दिन तो है बाकी, रूकें क्यों
शजर पे अभी नूर देखो झुका है.

इसी आरज़ू में कटी ज़िन्दगी ये
पता तो चले क्या हमारा हुआ है.

अभी छू नहीं सर्द हांथों से ऐ शब
अभी तो मुझे उसने मन से छुअा है.

मुहब्बत किसे रास आई है इसमें
अमीरी, ग़रीबी, ज़माना, जुआ है.

- श्री सुनील

मौलिक व अप्रकाशित

Added by shree suneel on May 15, 2015 at 5:02pm — 35 Comments

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