वादियाँ ख़ामोश ख़ामोशी भरा है ये सफ़र
अब दरख़्तों से भी हम डरने लगे हैं किस क़दर
यूँ मचा कर शोर करते हैं परिंदे अहतिजाज
इस जगह पर ही हुआ करता था अपना एक घर'
जिस जगह हमने गुज़ारी थी महकती शाम, अब
ज़ह्र फैला उस जगह तो कैसे हम रोकें असर
फूल भी बेनूर से क्यों दिख रहे हैं बाग में
ख़ूबसूरत से चमन कोतो खा गयी किसकी नज़र
वो पुराने दिन हमें जब याद आते हैं कभी
ढूँढने लगते हैं…
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on May 28, 2019 at 1:00pm — 4 Comments
सब ग़मों को भुला दिया जाए
थोड़ा सा मुस्कुरा दिया जाए
अश्क़ मैं पी चुका बहुत यारो
जामे उल्फ़त पिला दिया जाए
.
लो सियासत बदल गयी अब तो
हुक़्म उनका सुना दिया जाए
आँधियाँ तेज जब चलें, खुद को
अपने घर में बिठा दिया जाए
अब जलाकर 'अमर' बसेरा तुम
कह रहे ग़म भुला दिया जाए
"मौलिक और अप्रकाशित"
Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on May 27, 2019 at 6:00pm — 4 Comments
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