गुमशुदा हूँ मैं
तलाश जारी है
अनवरत 'स्व ' की
अपना ‘वजूद’
है क्या ?
आये खेले ..
कोई घर घरौंदा बनाए..
लात मार दें हम उनके
वे हमारे घरों को....
रिश्ते नाते उल्का से लुप्त
विनाश ईर्ष्या विध्वंस बस
'मैं ' ने जकड़ रखा है मुझे
झुकने नहीं देता रावण सा
एक 'ओंकार' सच सुन्दर
मैं ही हूँ - लगता है
और सब अनुयायी
'चिराग' से डर लगता है
अंधकार समाहित है
मन में ! तन - मन दुर्बल…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 10, 2016 at 12:30pm — 5 Comments
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