22 22 22 22
मैंने डिग्री हासिल की है
सब कहते हैं,नाक बची है।1
फेल अगर तुम हो जाओ, तो
लोग कहेंगे,नाक कटी है।2
गुस्से का इजहार हुआ तो,
यूं लगता है,नाक चढ़ी है।3
हो जाते जब लोग बड़े, सब
कहते,उनकी नाक बड़ी है।4
सर्दी - खांसी,नजला हो,तो
कहते,खुलकर नाक चली है।5
ऑक्सीजन से जीवन देती,
कहते,कितनी नाक भली है!6
'मौलिक व अप्रकाशित'
Added by Manan Kumar singh on May 31, 2020 at 10:58am — 5 Comments
22 22 22 22
कैसी आज करोना आई
करते है सब राम दुहाई।
आना जाना बंद हुआ है,
हम घर में रहते बतिआई!
दाढ़ी मूंछ बना लेते हैं
सिर के बाल करें अगुआई।
बंद पड़े सैलून यहां के
रोता फिरता अकलू नाई।
डर के मारे दुबके हैं सब
नाई कहता, 'आओ भाई!
मास्क लगाकर मैं रहता हूं
तुम क्योंकर जाते खिसियाई?
मुंह ढको,फिर आ जाओ जी,
घर जाओ तुम बाल कटाई।
एक दिवस की बात नहीं यह
आगे बढ़ती और लड़ाई।
झाड़ू पोंछा,बर्तन बासन,
अपना कर,अपनी…
Added by Manan Kumar singh on May 27, 2020 at 1:15pm — 7 Comments
कौवा तब सफेद था।बगुलों के साथ आहार के लिए मरी हुई मछलियां, कीड़े वगैरह ढूंढ़ता फिरता। फिर बगुलों ने जीवित मछलियों का स्वाद चखा।वह उन्हें भा गया। अब वे जीवित मछलियां ही उड़ाने लगे।सोचते कि भला कौन मुर्दों की खिंचाई करे।उन्हें भी तो चैन नसीब हो।जिंदगी भर हुआ कि नहीं,किसे पता।अहले सुबह वे कुछ मरी हुई छोटी छोटी मछलियां और कीड़े मकोड़े लिए तालाब के ऊपर मंडराने लगते।उनके टुकड़े कर पानी में फेंकते...मछलियां अपने आहार की खातिर झुंड के झुंड पानी की सतह पर आतीं....फिर बगुले झपट्टा…
Added by Manan Kumar singh on May 24, 2020 at 6:30am — 4 Comments
2122 2122 2122
खुश हुआ तू बोलकर,' है जानवर तू'
लग रहा खुद को बताता,बेसबर तू।
सांस बनकर बह रहीं ठंडी हवाएं
आग की लपटें उठा मत बन, कहर तू।
ख्वाब पाले मौन बैठी हैं सदाएं
कानफाड़ू! ला सके तो,ला सहर तू?
तार होती हो नहीं उम्मीद कोई,
हो अगरचे तो बता,कोई पहर तू?
हर्फ हासिल हो गए तो शायरी कर,
क्यूं अंधेरों को बढ़ाता है बशर तू?
मत बिठा मेरी गजल को हाशिए पर
छटपटाती है बहर,देखे अगर तू।
रुक्न रोते, बुदबुदाते शब्द सारे,
नज़्म कहकर…
Added by Manan Kumar singh on May 17, 2020 at 11:30am — 11 Comments
2122 2122 2122
अश्क धोकर आदमी थकने लगा है
सोचता - अब और रोना तो बला है।1
गर्दिशों का दौर बढ़ता,देखिए तो
शोर का कुछ भाव ज्यादा ही चढ़ा है।2
गुम हुई - सी जा रही पहचान फिर से
जिंदगी जो दे,उसे मरना पड़ा है।3
डंस रहा जाहिल अंधेरा आदमी को,
क्यूं उजाला रेत बन धुंधला हुआ है?4
कोसते हैं लोग कुछ भगवान को भी
जब संजोई गांठ में विष ही भरा है।5
ख्वाब चकनाचूर, आंखें पूछती हैं…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on May 10, 2020 at 9:45pm — 6 Comments
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