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Mohan Begowal's Blog – May 2018 Archive (1)

किराये के रिशते (लघुकथा)

किराये के रिश्ते

रात भर नींद नहीं आई, और सुबह होते ही वह पार्क में आ गया। कल शाम को आए फोन से पैदा हुई समस्या अभी सुलझ नहीं रही थी । चाहे कोई हल नज़र नहीं आ रहा, मगर इस समस्या को हल किये बिना छोड़ा भी नहीं जा सकता। आख़र उनका है भी कौन है,जो सात समंदर पार हैं, मगर  इस बार महिंदरो उसकी बात से सहमत नहीं हो रही थी । उसका कहना कि “क्या करेंगे वहाँ जा कर हम, आप तो फिर भी यहाँ वहाँ घूम आते हो,मगर मैं ........",कह कर महिंदरो चुप हो गई।

"मैं तो वहाँ अकेली अंदर बैठी कैसे रह सकती हूँ, न कोई…

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Added by Mohan Begowal on May 23, 2018 at 10:00pm — 3 Comments

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