गीता पाठशाला से अभी घर पहुंची, उसने आते ही माँ से सवाल किया, “ प्रोजेक्ट पर काम तो हम सब बच्चों ने किया था।”
“हाँ, प्रोजेक्ट तो होता ही है कि सभी बच्चे एक साथ काम करें।” मम्मी ने गीता को समझाने के अंदाज़ में कहा
“तो प्रोजेक्ट हम सभी बच्चों की मेहनत से पूरा हुआ ” गीता ने फिर कहा।
"हाँ " ।
“इस का क्रेडिट भी हम बच्चों को मिलना चाहिए ”, गीता ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा
“मगर इनाम तो हमें नहीं मिला", ये तो प्रिंसिपल को मिला” गीता ने कहा
“हाँ, बच्चे ऐसा ही होता है, घर में सारा काम कौन करता है ?
“मुख्य तौर पर तुम और हम भी कभी कभी कम या ज्यादा ।”, गीता ने कहा
“मगर क्रेडिट किस को जाता है”
“पिता जी को”, गीता की जबान से झट निकल गया।
और वह माँ की तरफ़ देखते हुए सोचने लगी, करने वाले से कंट्रोल करने वाला बड़ा कैसे, यहां बिना किये ही क्यूँ बहुत कुछ ले जाता है।
ये इक बड़ा सवाल गीता के सामने खड़ा हो गया जिस का जवाब कहीं दूर लगा ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों की आपबीती से लेकर घरेलू महिला सरोकार के गंभीर मुद्दे उभारती बहुत ही कटाक्षपूर्ण रचना के लिए हार्दिक. बधाईयां आदरणीय मोहन बेगोवाल साहिब।
बेहतरीन लघु कथा के द्वारा समाज,परिवार यहां तक कि पाठशाला जैसे में करता कोइ हैं और नाम और कोइ नाम कमा ले जाता हैं,अधिकतर घरों में तो ऐसा हो होता हैं.हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी.
आद0 मोहन बोगोवाल जी सादर अभिवादन। बढ़िया विषय लिया आपने। पर इस बात से मैं पूर्णतया सहमत नहीं कि घर का काम मम्मी करती हैं और श्रेय पापा को मिलता है। घर के उत्तम कार्यों का श्रेय मम्मी को भी मिलता है। हाँ स्कूल के उदाहरण पर मैं आपके साथ हूँ। बधाई देता हूँ आपको इस प्रस्तुति पर। सादर
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी, नमस्कार। अच्छी लघुकथा हुई है। प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें ।
आ. मोहन जी, अच्छी कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।
जनाब मोहन बेगोवाल साहिब , सुन्दर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |
आदरणीय मोहन बेगोवाल जी आदाब,
हमारे भारतीय समाजों में प्राय: यह देखा गया है कि श्रेय लेने या क्रेडिट लेने की होड़ रहती है । हमारा झूठा अहंकार भी आड़े आ जाता है और हम श्रेय की बाज़ी जानबूझकर जीत ले जाते है ।जबकि ऐसा नहीं होता है । जो सच्चा हक़दार होता है वो तो बेचारा हाशिए पर चला जाता है ।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस शानदार लघुकथा के लिए ।
आदरणीय मोहन बोगावल जी एक मासूम सी जिज्ञासा को समेंटे उत्तम लघु कथा का सृजन हुआ है। हार्दिक बधाई।
जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब,लघुकथा का अच्छा प्रयास हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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