For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 ड्यूटी के बाद मैं घर को पैदल चल पड़ा। ऐसा आजकल मैं अकसर ही करता हूँ। क्यूँ कि डाक्टर ने मुझे ज्यादातर पैदल चलने को कहा है। कुछ कदम चलते ही मेरे साथ रिक्शा इक रिक्शा भी चलने लगा।
चलते हुए बार बार रिक्शे वाला रिकशे पर बैठने को कहता रहा।
“बाऊ जी,दस दे देना,मगर मैं चलता रहा, फिर उसने पास आकर कहा,चलो पाँच ही दे देना।"
“अरे भाई, बात पाँच या दस की नहीं, मैंने कहा। मैं बैठना नहीं चाहता।"
मगर इस बार उस के कहने में एक तरला सा लगा, “बाऊ जी, बैठ जाओ न।“
आखिर, मैं रिक्शे पर बैठ कर घर की ओर चल पड़ा।
“बाऊ जी, अब ये तो जुआ है, अगर सवारी मिल गई तो जीत,वरना हार और ये हार कहाँ ले जाए, कुछ पता नहीं।
गेट पर खड़ी बीवी ने पूछा, "ठीक तो हो आप ।"
मैंने जेब से इक नोट निकाल कर उस को दिया।
गेट अंदर जाते हुए, सोच रहा हूँ कि जुआ हार जीत जाने की तरह, क्या रिक्शे वाला भी जीत गया कि हार गया इस खेल में ?

मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 596

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 7, 2018 at 11:25pm

बहुत ही उपेक्षित मुद्दे को उभारकर बेहतरीन उम्दा कथानक के साथ बढ़िया विचारोत्तेजक सृजन। हार्दिक बधाई और आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल साहिब।

Comment by babitagupta on July 7, 2018 at 8:10pm

रिकशा वाला जीता जरूर लेकिन वास्तव में जीत बाबूजी की हुई।बेहतरीन लघु कथा, हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।

Comment by नाथ सोनांचली on July 5, 2018 at 3:41pm

आद0 मोहन बोगोवाल जी सादर अभिवादन। बढ़िया विषय लिया आपने। अक्सर ऐसा होता है कि हमारी हार में भी जीत छुपी होती है। आपकी लघुकथा में शब्दों की कसावट की अभी कमीं है। सुधार के बावजूद आप बार बार पढ़िए और जहाँ त्रुटि लग रही है उसे नोट कीजिये। फिर सुधारिये। बहुत बहुत बधाई आपको। आद0 समर साहब की बातों को गम्भीरता से लीजिएगा।

Comment by Samar kabeer on July 5, 2018 at 2:29pm

'उस पास आकर कहा'

"उसने पास आकर कहा"

'और गेट अंदर जाते'

",गेट से अंदर जाते"

ऐसी कई त्रुटियाँ हैं अभी ।

जहाँ जुमला ख़त्म हो वहाँ फुल स्टॉप, जहाँ प्रश्न है वहाँ प्रश्न वाचक लगायें ,जहाँ पेराग्राफ बदलना है,वहाँ बदलें,ध्यानपूर्वक एक बार और इसे पढ़ें ।

Comment by Mohan Begowal on July 5, 2018 at 12:51pm

   ड्यूटी के बाद मैं घर को पैदल चल पड़ा। ऐसा आजकल मैं अकसर ही करता हूँ। कयूँकि डाक्टर ने मुझे ज्यादातर पैदल चलने को कहा है। कुछ कदम चलते ही मेरे साथ रिक्शा चलने लगा।
चलते हुए बार बार रिक्शे वाला बैठने को कहता।
इस बार उस के कहने में एक तरला कि बाऊ जी बैठ जाओ न । मगर मैं सिर हिला व इशारे के साथ न कर दी।
“बाऊ जी,दस दे देना,मगर मैं चलता रहा, फिर  उस पास आकर कहा,चलो पाँच ही दे देना।"
“अरे भाई, बात पाँच या दस की नहीं, मैंने कहा। मैं बैठना नहीं चाहता।"
आखिर मैं रिक्शे पर बैठ कर घर की तरफ चल पड़ा। “बाऊ जी, अब ये तो जुआ है, अगर सवारी मिल गई तो जीत, नहीं तो , हारा और ये हार कहाँ ले जाए, हमें कुछ पता नहीं।
गेट पर खड़ी बीवी ने पूछा, "ठीक तो हो आप ।"
मैंने जेब से नोट निकाल कर उसे दिया और गेट अंदर जाते हुए, सोच रहा हूँ कि जुआ हार जीत जाने की तरह, क्या रिक्शे वाला भी जीत गया कि हारा इस खेल में ?

Comment by Samar kabeer on July 5, 2018 at 12:14pm

मेरे निवेदन पर भी ध्यान दें भाई ।

Comment by Mohan Begowal on July 5, 2018 at 12:09pm

 आदरनीय समर जी, लघुकथा की तनकीद के लिए शुक्रिया ।अपनी इस कमी को सुधारने की कोशिश करूंगा।

Comment by Samar kabeer on July 5, 2018 at 11:53am

जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब, लघुकथा का प्रयास अच्छा हुआ है,लेकिन जुमले कुछ अधूरे से हैं, कुछ और कसावट की ज़रूरत है, बहरहाल कथानक अच्छा है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

एक निवेदन ये है कि मंच पर आई हुई रचनाएँ भी आपकी बहुमूल्य टिप्पणी की प्रतीक्षा में रहती हैं,उन पर भी ध्यान दें,और मंच पर अपनी सक्रियता दिखाएँ ।

Comment by Neelam Upadhyaya on July 5, 2018 at 11:12am

सच है,  अगर सवारी मिल गई तो जीत नहीं तो हार होती है।  कुआं खोद कर पानी पीने जैसा है रिक्शेवाले की रोजमर्रा की जिंदगी। 
बहुत ही अच्छी लघुकथा  हुई  है। हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल जी । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
Thursday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service