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मोहन बेगोवाल's Blog – May 2017 Archive (3)

झूठ का साया(लघुकथा)

                       

महिंद्र की सेवानिवृत्ति पार्टी शुरू हो गई | विभाग के कर्मचारियों के साथ महिंद्र के करीब के रिश्तेदार भी आ कर हाल में  बैठ गए | थोड़ी देर बाद साहिब  भी आ गए | साहिब और कार्यालय के कर्मचारियों ने महिंद्र और उसकी पत्नी को आगे पड़ी कुर्सियों पे बिठाया और उनके गले में हार डाले और उनको गिफ्ट दिए |

इसी समय सब को भोजन परोसा गया और सभी ने खाना शुरू किया, समारोह के चलते, कुछ लोगों को महिंद्र के बारे में कुछ कहने के लिए क्रमवार बुलाया गया |

मगर सभी…

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Added by मोहन बेगोवाल on May 28, 2017 at 6:02am — 4 Comments

ड्रामा और हकीकत(लघुकथा)

गेट के सामने भीड़ इकठ्ठी हो रही है, कुछ लोग क्रोध से भर कार्यालय के अंदर जाने की कोशिश कर रहे हैं । द्वारपाल भीड़ को रोकने की कोशिश में नकाम हो रहा है।

प्रेस अपने वीडियो कैमरे के साथ कार्यालय तक पहुँच गई है, और पत्रकार कई तरह के सवाल पुछ रहे हैं जैसे “वार्ड नं ३ में होने वाली मौत के बारे आप क्या कहना चाहेंगा। आप बताएँ मौत कि लिए जिम्मेदार चिकित्सक पर क्या एकशन लिया गया है।“

"आप कैसे कह सकते हैं कि मौत के लिए चिकित्सक ही जिम्मेदार है ?" बड़े टेबल की दुसरी तरफ़ बैठे साहिब ने कहा। मैने…

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Added by मोहन बेगोवाल on May 15, 2017 at 4:30pm — 6 Comments

बंद दरवाज़े (लघुकथा )

“आंटी जी, अगर उस दिन आप ने मेरे सर पर हाथ न रखा होता तो पता नहीं मैं कहाँ होती”

“कीमत तो वो मेरी पहले ही लगा चुके थे,उस रोज़ तो बस पैसे देने ही आए थे ”।

“मुझ को तो कुछ पता ही नहीं चलने दिया था”  ऋतू ये कहती जा रही थी।

“ये तो भला हो, मेरे साथ डांस पार्टी में काम करने वाली सुनीता का,

 "उस बता दिया मुझको  कि  मालिक तो मेरे पैसे ले रहा  हैं, कल तुम किसी और डांस पार्टी में काम करोगी "

  "तब मुझे आप के पास तो आना ही था, आंटी जी" 

 “घर से तो अमली ने  पहले ही…

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Added by मोहन बेगोवाल on May 10, 2017 at 12:30pm — 8 Comments

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