२२१ २१२१ १२२१ २१२
ये हैं मरासिम उसकी मेरी ही निगाह के
तामीरे-कायनात है जिसका ग़वाह के
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सजदा करूँ मैं दर पे तेरी गाह गाह के
पाया खुदा को मैंने तो तुमको ही चाह के
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हाँ इस फ़कीरी में भी है रुतबा-ए-शाह के
यारब मै तो हूँ साए में तेरी निगाह के
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जो वो फ़रिश्ता गुजरे तो पा खुद-ब-खुद लें चूम
बिखरे पडे हैं फूल से हम उसकी राह के
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छूटा चुराके दिलको…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 22, 2015 at 9:13am — 40 Comments
२१२ १२१२ २२
खुशबू ओढ़ कर निकलता है
फूल जैसे कोई चलता है
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रास्ते महकते हैं सारे
जिस भी सिम्त वो टहलता है
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हुस्न आफ़रीं कि क्या कहने
जो भी देखे हाथ मलता है
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गो धनुक है पैरहन उसका (धनुक=इन्द्रधनुष)
सात रंग में वो ढलता है
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रंगा मुझको जाफ़रानी यूँ (जाफ़रानी=केसरिया)
रात-दिन चराग़ जलता है
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इश्क मुझको भी है…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 16, 2015 at 10:00am — 14 Comments
२२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२ / २२
मुद्दत से जिसने दुनिया वालों से मेरा नाम छुपा रक्खा है
जलने वालों ने ज़माने में उसका ही नाम बेवफा रक्खा है
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रातों-रातों उठ उठ कर हमने आँसू बोयें हैं दिल की जमीं पर
तुम क्या जानोंगे कैसे हमने बाग़-ए-इश्क ये हरा रक्खा है
**
वो मेहरबां है तो कुछ और न सुनाई दे,गर हो जाय खफा तो
चूड़ी ,कंगन, पायल, बादल..कासिद कायनात को बना…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 5, 2015 at 10:30am — 25 Comments
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