पलों को बीतने में लग रहीं सदियां
बेक़रारी हो औ सुकूं आये कब हुआ है ये
हसीन पल भी ज़िन्दगी के नहीं कटते काटे
और वो हैं क़ि रुक गए दहलीज़ पे आते आते
छा गए हैं वो ख़्वाब में क़हर बन के
कि पलकें भी अब झुकाने में बहुत डर लगता
उनके जाने की तारीख तो मुकम्मल लेकिन
वो आंएगे कब इसका कहाँ पता चलता...
आँख के आंसू सब बयां करते है
भरे गले से शब्द कहाँ झरा करते हैं
ये वफा थी न थी अब परवा कहाँ किसको
टूट कर दिल तो बस आहे…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on June 27, 2016 at 5:30pm — 3 Comments
जबतक तलाश थी सहारे की ऐ नादां !
तन्हा हमें यूँ छोड़, कारवां गुज़र गये...
अब हम सहारा खुद के जब से बना किए
हम एक हैं, पर देखो कन्धे अनेक हैं
कागज़ की नाव की क्या थी बिसात, तैरे
जबतक न हवाएं-लहरें हो साथ मेरे
तिनके भी आंधियों मे वृक्षों से ऊपर लहरें
नामुमकिन होता मुमकिन, जब वक्त लेता फेरे
रुक न पाया सफर ये चलता रहा है राही
पर साथ साथ बढ़ती राहों की भी लम्बाई
किससे करे वो शिकवे होनी कहाँ सुनवाई
मंज़िल की…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on June 26, 2016 at 1:00pm — 5 Comments
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